विश्व सिकलसेल दिवस (19 जून) पर विशेष
World Sickle Cell Day : मध्यप्रदेश के हर पांचवें व्यक्ति से जुड़े सिकलसेल रोग पर जागरूकता की कमी ही इसके फैलाव को रोकने में मदद नहीं कर पा रही है। विवाह पूर्व रिश्ते तय करते समय सिकलसेल जांच करवा कर ही इस जन्मजात बीमारी का फैलाव रोका जा सकता है। यह बात नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने विश्व सिकल सेल दिवस के अवसर पर जागरूकता कार्यक्रम में कही।
इस अवसर पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बीसी राय नेशनल अवार्ड प्राप्त मेदांता मेडिकल एजुकेशन डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि इस रोग में लाल रक्त कोशिकायें गोल तथा नरम न होकर कठोर और हंसिये के आकार की हो जाती हैं। यह जन्मजात रोग है। इसे रोकने की अब तक कोई दवाई नहीं है। ये कोशिकायें जल्दी नष्ट हो जाती हैं और कई बार धमनियों में जम कर रक्त प्रवाह में रूकावट पैदा करती है जो कि दर्द के साथ जानलेवा भी हो जाता है। बीमारी का पता जन्म के एक साल के अंदर लग जाता है। संक्रमण, सीने में दर्द, जोड़ों में दर्द जैसे लक्षण दिखते हैं।
सारिका ने बताया कि सिकलसेल रोगी दो प्रकार के होते हैं- एक रोगी और दूसरा वाहक। यदि माता-पिता दोनों सिकलसेल रोगी होंगे तो उनके सभी बच्चे सिकल सेल रोगी होंगे। अत: रोगी या वाहक का किसी सामान्य पार्टनर के साथ विवाह करके रोग के फैलाव को रोका जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 19 जून को सिकलसेल रोग को सार्वजनिक स्वास्थ्य की चिंता के रूप में मान्यता का संकल्प अपनाया गया था। इसलिये 19 जून को विश्व सिकलसेल दिवस मनाया जाता है।
सारिका ने बताया कि उन्होंने मध्यप्रदेश क राज्यपाल महामहिम मंगूभाई पटेल की उत्प्रेरणा से स्वप्रयास के अंतर्गत बिना किसी अशासकीय या शासकीय मदद के 7 गीतों का संग्रह तैयार किया है। इसमें सरल एवं रोचक तरीके से सिकल सेल के लक्षण एवं विवाह पूर्व सिकलसेल कुंडली मिलाने का संदेश दिया गया है। इन गीतों को मध्यप्रदेश के 12 आदिवासी बहुल जिलों में स्वयं जाकर पोस्टर एवं पपेट शो के माध्यम से प्रस्तुत किया है।