Taro Root Farming: किसानों को मालामाल बना रही अरबी की खेती, कुछ समय में हो जाती लाखों में कमाई

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Taro Root Farming: किसानों को मालामाल बना रही अरबी की खेती, कुछ समय में हो जाती लाखों में कमाई
Source: Credit – Social Media

Taro Root Farming: अरबी को यदि पैसों का खजाना कहा जाए तो कम नहीं होगा। ये एक ऐसी फसल है जो किसानों को कम समय में ही धनवान बना रही हैं। देश में कई किसान अब इस फसल को लगा रहे है और बंपर मुनाफा भी कमा रहे है। हम आपको अरबी की खेती से जुड़ी जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं।

यहां होती है अरबी की खेती (Taro Root Farming)

अरबी की खेती भारत के पंजाब, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, असम, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, आंध्रप्रदेश, उत्तराखंड, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक और तेलंगाना आदि प्रदेशों में मुख्य रूप से की जाती है। यदि आपको अरबी की खेती से अच्छी आमदनी करना चाहते है तो ये खबर आपको पूरी पढ़नी चाहिए।

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अरबी की खेती कैसे करें ? Arbi ki Kheti

अरबी कंद वाली सब्जी के रूप में जानी जाती है इसको घुईया, कोचई आदि भी कहा जाता है। अरबी के कंद में स्टार्च प्रमुख रूप से पाया जाता है। इसकी पत्तियों में विटामिन ए, कैल्शियम, फॉस्फोरस और आयरन पाया जाता है। अरबी का इस्तेमाल सब्जी के लिए मुख्य रूप से किया जाता है जबकि तथा इसके नर्म पत्तियों से साग तथा पकोड़े बनाये जाते हैं।

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अरबी की उन्नत किस्म (Varieties)

इंदिरा अरबी 1:- इस वेरायटी की अरबी करीब 210 से 220 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके पत्ते मध्य आकर के और हरे रंग के होते है तथा तने का ऊपरी भाग का रंग नीचे बैंगनी तथा बीच में हरा होता हैं।

नरेन्द्र अरबी:- इस किस्म की अरबी 170 से 180 तैयार हो जाती है। इसके पत्ते मध्यम आकार के तथा हरे रंग के होते हैं। इसकी औसतन उपज 12 से 15 टन प्रति हेक्टेयर हैं।

बिलासपुर अरूम:- यह 180 से 190 दिनों तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 30 टन प्रति हेकटेयर है।

आजाद अरबी:- यह वैरायटी 130 से 135 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 28 से 30 टन प्रति हेक्टेयर है।

अरबी की अन्य वैरायटी:- राजेंद्र अरबी, व्हाइट गौरैया, पंचमुखी, मुक्ताकेशी

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अरबी की खेती का सही समय (Taro Root Farming)

अरबी की खेती (Arabic Farming) खरीफ और रबी दोनों मौसम में की जाती हैं। खरीफ की फसल की बुवाई जुलाई माह में की जाती हैं। जो दिसंबर और जनवरी महीने तक तैयार हो जाती है। वहीं रबी सीजन की फसल अक्टूबर महीने में लगाई जाती हैं, जो अप्रैल और मई माह में तैयार हो जाती हैं।

अरबी की खेती के उपयुक्त भूमि

अरबी की खेती किसी भी तरह की जीवांश युक्त उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती हैं। किन्तु अरबी के लिए पर्याप्त जीवांश एवं उचित जल निकास युक्त रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। पर्याप्त जानकारी के अनुसार इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी वाली भूमि को सबसे उपयुक्त पाया गया है। इसकी खेती में भूमि का पी.एच मान 5.5 से 7 के मध्य होना चाहिए। उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु को अरबी की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता हैं।

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खेती के लिए उपयुक्त वातावरण एवं तापमान

यह गर्म मौसम की फसल है, जिसे गर्मी और बरसात दोनों मौसम में उगा सकते हैं। इसके पौधे बारिश और गर्मियों के मौसम में अच्छे से विकास करते है, किन्तु अधिक गर्म और सर्द जलवायु इसके पौधों के लिए हानिकारक होता हैं। सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला पौधों की वृद्धि रोक देता हैं। अरबी के कंद अधिकतम 35 डिग्री तथा न्यूनतम 20 डिग्री तापमान में ही अच्छे से वृद्धि करते हैं। इससे अधिक तापमान पौधों के लिए हानिकारक होता हैं।

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होती है अच्छी कमाई (Taro Root Farming)

Taro Root Farming: उत्तरप्रदेश के किसानों के मुताबिक एक बीघा खेत में 4500 रुपए का 3 क्विंटल बीज बोया था। 3 माह की अरबी की खेती में उन्होंने लगभग 9000 रुपए खर्च किए थे।अब अरबी निकलनी शुरू हो गई है, एक बीघे में 50 क्विंटल अरवी की पैदावार हुई है। बाजार में अरबी 30 से 40 रुपए प्रति किलो बिक रही है, जिससे किसानों को अच्छे मुनाफे की उम्मीद जगी है। अरबी की उपज कुछ ही समय में प्राप्त हो जाती है जिससे आसानी से अन्य फसलों का काम भी किया जा सकता है और समय की बचत होती है।

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