Soybean ki Kheti: देश में सोयाबीन की फसल कई राज्यों में होती है और सोयाबीन खासतौर पर तिलहनी फसलों में आती है। भारत में सोयाबीन की खेती प्रमुखता से की जाती है। आज के समय में अगर आप खेती से पैसा कमाना चाहते हैं तो आपको पारंपरिक खेती छोड़कर कुछ अलग तरह की फसलों की खेती करनी चाहिए। ऐसे में आप अच्छी आमदनी के लिए सोयाबीन की खेती कर सकते हैै। जिसे लोग ”पीला सोना” भी कहते हैं। सोयाबीन खरीफ सीजन की महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जिसकी बुवाई जून से लेकर जुलाई तक की जाती है।
आपको बता दें कि सोयाबीन की खेती के लिये सबसे ज्यादा जरूरी है उन्नत किस्म के बीजों का चुनाव करना और साथ ही अच्छी मिट्टी का चुनाव करना सही होता है। ऐसा करने से ना सिर्फ अच्छी उपज तो होती है, बल्कि फसल में कीड़े और बीमारियों की संभावना भी कम होती है।
लोग इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ ताजा फल-सब्जियों के साथ ही प्रोटीन के लिए दूध, दही और दाल के सेवन की भी सलाह दे रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ”पीला सोना” सोयाबीन भी प्रोटीन का उत्तम स्रोत होता है। जी हां, शाकाहारी मनुष्यों के लिए मांसाहारी लोगों के भोजन के समान ही सोयाबीन शक्ति अर्जित कर प्रोटीन के रूप में देता है। सोयाबीन की विशेषता यह है कि इसमें अधिक प्रोटीन होता है। सोयाबीन में 38-40 प्रतिशत प्रोटीन, 22 प्रतिशत तेल, 21 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 12 प्रतिशत नमी तथा पांच प्रतिशत भस्म पाई जाती है। सोयाबीन का वैज्ञानिक नाम ‘ग्लाइसीन मेक्स’ है।
किसानों के लिए पीला सोना है सोयाबीन
मध्य प्रदेश के किसान सोयाबीन को पीला सोना कहते हैं। प्रदेश के मालवा क्षेत्र में सोयाबीन का क्षेत्रफल लगभग 23/25 लाख हेक्टेयर का है। किसानों का मानना है कि सोयाबीन की खेती से निश्चित रूप से लाभ मिलता है, यदि बीज के अंकुरण के बाद तुरंत ही पदगलन यानि कि फफूंद से इसकी रक्षा सही समय पर कीटनाशक का उपयोग कर हो जाए, तो इसमें नुकसान की संभावना कम होती है।
सोयाबीन की उन्नत किस्में (Soybean ki kheti)
सोयाबीन की उन्नत किस्मों में आपको एनआरसी 2 (अहिल्या 1), एनआरसी -12 (अहिल्या 2), एनआरसी -7 (अहिल्या 3) और एनआरसी -37 (अहिल्या 4) मिल जाएंगी। किसान चाहें तो सोयाबीन की नवीनतम विकसित किस्म एमएसीएस 1407 की बुआई भी कर सकते हैं। ये किस्म कीटरोधी तो है ही इसके साथ साथ दूसरी किस्मों के मुकाबले उपज भी ज्यादा देगी।
सोयाबीन की बुआई से पहले खेत में गहरी जुताई करनी चाहिए, इससे मिट्टी का अच्छे से सौरीकरण हो जाता है और कीड़े-मकोड़े बाहर निकल जाते हैं। इसके बाद मिट्टी में जरूरत के अनुसार जैविक खाद और जैव उर्वरकों का इस्तेमाल करें और फिर आखिरी जुताई का काम करें।
जरूरी है मिट्टी का परीक्षण
सोयाबीन की खेती अधिक हल्की, हल्की व रेतीली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जा सकती है। परंतु पानी के निकास वाली चिकनी दोमट भूमि सोयाबीन के लिये अधिक उपयुक्त होती है। जिन खेतों में पानी रुकता हो, उनमें सोयाबीन की खेती ना करें।
संतुलित उर्वरक व मृदा स्वास्थ्य के लिए मिट्टी में मुख्य तत्व-नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, द्वितीयक पोषक तत्व जैसे सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जस्ता, तांबा, लोहा, मैंगनीज, मोलिब्डेनम, बोरॉन साथ ही पी.एच., ई.सी. एवं कार्बनिक द्रव्य का परीक्षण कराने से यह समय रहते पता चल जाता है, कि यहां खेती कितनी अच्छी होगी और बीज कितना फलेगा।
खेत में जल निकासी की भी व्यवस्था करनी चाहिए, इससे बारिश होने पर जल-भराव की स्थिति पैदा नहीं होती और पानी खुद ही बाहर निकल जाता है। ध्यान रखें कि कम से कम 100 मिमी वर्षा होने पर ही फसल की बुआई का काम करें। इससे मिट्टी को पोषण और नमी दोनों ही मिल जाती है और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी पहले के मुकाबले बढ़ जाती है।
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सिंचाई (Soybean ki kheti)
खरीफ बारिश की फसल होने के कारण सामान्यत: सोयाबीन को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। फलियों में दाना भरते समय अर्थात् सितम्बर माह में यदि खेत में नमी पर्याप्त न हो तो आवश्यकतानुसार एक या दो हल्की सिंचाई करना सोयाबीन के विपुल उत्पादन लेने हेतु लाभदायक है।
बुआई के समय रखें ध्यान
कृषि वैज्ञानिक नरेन्द्र कुमार तांबे बताते हैं कि समान आकार के स्वस्थ दानों का बीज के रूप में उपयोग करें, जिसमें कि बीज दर छोटा दाना 60-65 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, मध्यम दाना 70-75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एवं मोटा दाना 80-85 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। सोयाबीन बीज अंकुरण 70 प्रतिशत होना चाहिए। अंकुरण परीक्षण के लिए किसान भाई गीले टाट के बोरे अथवा ट्रे में 100 दाने गिनकर रख दें और हल्की-हल्की बौछारों के रूप में पानी देते रहें। जब चार-पांच दिन बाद बीज का अंकुरण हो जाता है, तो अंकुरित दानों को गिन लेते हैं। यदि 100 दानों में से 70 दाने अंकुरित हो जाते हैं, तो वह बीज बुवाई के लिए उत्तम होता है। यदि अंकुरण 5-10 प्रतिशत तक कम आता है। यदि एक प्रतिशत कम आता है, तो 1 से 1.5 किलोग्राम बीज, दो प्रतिशत कम आता है, तो 2-3 किलोग्राम बीज तथा 10 प्रतिशत कम आने पर 10-15 किलोग्राम बीज मात्रा बनाकर बुवाई की जानी चाहिए।