▪️ पंडित मधुसूदन जोशी, भैंसदेही (बैतूल)
Somvati Amavasya 2024: सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। सोमवार चंद्र देवता को समर्पित दिन है। भगवान चंद्र को मन का कारक माना जाता है। अतः इस दिन अमावस्या पड़ने का अर्थ है कि यह दिन मन सम्बन्धित दोषों को दूर करने के लिए उत्तम है। हमारे शास्त्रों में चंद्रमा को ही दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों का कारक माना जाता है। अतः पूरे वर्ष में एक या दो बार ही पड़ने वाले इस पर्व का बहुत अधिक महत्त्व माना जाता है।विवाहित स्त्रियों के द्वारा इस दिन पतियों की दीर्घ आयु के लिये व्रत का विधान है।
सोमवती अमावस्या कलयुग के कल्याणकारी पर्वों में से एक है। लेकिन, सोमवती अमावस्या को अन्य अमावस्याओं से अधिक पुण्य कारक मानने के पीछे भी पौराणिक एवं शास्त्रीय कारण है। सोमवार को भगवान शिव एवं चंद्र का दिन माना जाता है।
सोम यानि चन्द्रमा अमावस्या और पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा यानि सोमांश या अमृतांश सीधे-सीधे पृथ्वी पर पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार सोमवती अमावस्या के दिन चन्द्रमा का अमृतांश पृथ्वी पर सबसे अधिक पड़ता है।
अमावस्या अमा और वस्या दो शब्दों से मिलकर बना है। शिव पुराण में इस संधि विच्छेद को भगवान् शिव ने माँ पार्वती को समझाया था।क्योंकि सोम को अमृत भी कहा जाता है, अमा का अर्थ है एकत्रित करना और वास को वस्या कहा गया है। यानि जिसमे सभी वास करते हो, वह अति पवित्र अमावस्या कहलाती है।
भक्तों को होती अमृत प्राप्ति (Somvati Amavasya 2024)
यह भी कहा जाता है कि सोमवती अमावस्या में भक्तों को अमृत की प्राप्ति होती है। निर्णय सिंधु व्यास के वचनानुसार इस दिन मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्त्र गौ दान का पूण्य मिलता है। शास्त्रों के अनुसार पीपल की परिक्रमा करने से, सेवा पूजा करने से, पीपल की छाया से स्पर्श करने से समस्त पापों का नाश, अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है व आयु में वृद्धि होती है।
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यह चढ़ाने से पूरी होती मनोकामना
पीपल के पूजन में दूध, दही, मिठाई, फल, फूल, जनेऊ का जोड़ा चढ़ाने से और घी का दीप दिखाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। कहते है कि पीपल के मूल में भगवान् विष्णु, तने में शिव जी तथा अगर भाग में ब्रह्मा जी का निवास है। इसलिए सोमवार को यदि अमावस्या हो तो पीपल के पूजन से अक्षय पुण्य लाभ तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
विवाहित महिलाएं करती हैं परिक्रमा (Somvati Amavasya 2024)
इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के पेड़ की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन आदि से पूजा और पीपल के चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान होता है। हर परिक्रमा में कोई भी मिठाई या फल चढ़ाने से विशेष लाभ होता है। ये सभी 108 फल या मिठाई परिक्रमा के बाद ब्राह्मण या निर्धन को दान करे। इस प्रक्रिया को कम से कम 3 सोमवती तक करने से सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। इस प्रदक्षिणा से पितृ दोष का भी निश्चित समाधान होता है। इस दिन जो भी स्त्री तुलसी या माँ पार्वती पर सिंदूर चढ़ा कर अपनी मांग में लगाती है वह अखंड सौभाग्यवती बनी रहती है।
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काल सर्प दोष का निदान भी संभव
जिन जातकों की जन्म पत्रिका में कालसर्प दोष है। वे लोग यदि सोमवती अमावस्या पर चांदी के बने नाग-नागिन की विधिवत पूजा कर उन्हें नदी में प्रवाहित करे, शिव जी पर कच्चा दूध चढाये, पीपल पर मीठा जल चढ़ा कर उसकी परिक्रमा करें, धूप दीप दिखाए, ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान दक्षिणा दे कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करें तो निश्चित ही काल सर्प दोष की शांति होती है।
ऐसे होगा व्यवसाय में लाभ
इस दिन जो लोग व्यवसाय में परेशानी उठा रहे हैं, वे पीपल के नीचे तिल के तेल का दिया जलाकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मन्त्र का कम से कम 5 माला जप करे तो व्यवसाय में आ रही दिक्कतें समाप्त होती है। इस दिन अपने पितरों के नाम से पीपल का वृक्ष लगाने से जातक को सुख, सौभग्य, पुत्र की प्राप्ति होती है एवं पारिवारिक क्लेश दूर होते हैं।
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इस दिन क्या करें, क्या नहीं करें (Somvati Amavasya 2024)
- इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, ब्राह्मण भोज, गौदान, अन्नदान, वस्त्र, स्वर्ण आदि दान का विशेष महत्त्व माना गया है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशिष्ट महत्त्व है।
- माँ गंगा या किसी पवित्र सरोवर में स्नान कर शिव-पार्वती एवं तुलसी की विधिवत पूजा करें।
- भगवान् शिव पर बेलपत्र, बेल फल, मेवा, मिठाई, जनेऊ का जोड़ा आदि चढ़ा कर ॐ नमः शिवाय की 11 माला करने से असाध्य कष्टों में भी कमी आती है।
- प्रातः काल शिव मंदिर में सवा किलो साबुत चावल दान करें।
- सूर्योदय के समय सूर्य को जल में लाल फूल,चन्दन डाल कर गायत्री मन्त्र जपते हुए अर्घ देने से दरिद्रता दूर होती है।
- सोमवती अमावस्या को तुलसी के पौधे की ॐ नमो नारायणाय जपते हुए 108 बार परिक्रमा करने से दरिद्रता दूर होती है।
- जिन लोगों का चन्द्रमा कमजोर है वो गाय को दही और चावल खिलाये तो अवश्य ही मानसिक शांति मिलेगी।
मन्त्र जप, साधना एवं दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। - इस दिन स्वास्थ्य, शिक्षा, कानूनी विवाद, आर्थिक परेशानियों और पति-पत्नी संबंधी विवाद के समाधान के लिए किये गए उपाय अवश्य ही सफल होते हैं।
- सोमवती अमावस्या को भांजा, ब्राह्मण, और ननद को मिठाई, फल, खाने की सामग्री देने से उत्तम फल मिलाता है।
- इस दिन अपने आसपास के वृक्ष पर बैठे कौओं और जलाशयों की मछलियों को (चावल और घी मिलाकर बनाए गए) लड्डू दीजिए। यह पितृ दोष दूर करने का उत्तम उपाय है।
- सोमवती अमावस्या के दिन दूध से बनी खीर दक्षिण दिशा में (पितृ की फोटो के सम्मुख) कंडे की धूनी लगाकर पितृ को अर्पित करने से भी पितृ दोष में कमी आती है।
- अमावस्या के समय जब तक सूर्य चन्द्र एक राशि में रहे, तब कोई भी सांसरिक कार्य जैसे-हल चलाना, कसी चलाना, दांती, गंडासी, लुनाई, जोताई, आदि तथा इसी प्रकार से गृह कार्य भी नहीं करने चाहिए।
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यह है सोमवती अमावस्या कथा
सोमवती अमावस्या से सम्बंधित अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। परंपरा है कि सोमवती अमावस्या के दिन इन कथाओं को विधिपूर्वक सुना जाता है। एक गरीब ब्रह्मण परिवार था, जिसमें पति, पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। पुत्री धीरे धीरे बड़ी होने लगी। उस लड़की में समय के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था। लड़की सुन्दर, संस्कारवान एवं गुणवान भी थी, लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन ब्राह्मण के घर एक साधु पधारे, जो कि कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए।
कन्या को लम्बी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधु ने कहा कि कन्या की हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है। ब्राह्मण दम्पति ने साधु से उपाय पूछा कि कन्या ऐसा क्या करे कि उसके हाथ में विवाह योग बन जाए। साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गाँव में सोना नाम की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो की बहुत ही आचार-विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिन्दूर लगा दे तो उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती जाती नहीं है।
यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से महिला की सेवा करने की बात कही। कन्या तड़के ही उठ कर सोना के घर जाकर, सफाई और अन्य सारे काम करके अपने घर वापस आ जाती। सोना अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो तड़के ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा कि माँजी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम ख़ुद ही ख़तम कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूँ।
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इस पर दोनों सास-बहू निगरानी करने करने लगी कि कौन है जो तडके ही घर का सारा काम करके चला जाता हा। कई दिनों के बाद उन्होंने देखा कि एक कन्या मुँह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती है। तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई। सोना पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई। सोना के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा। सोना ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, उसका पति गुजर गया। उसे इस बात का पता चल गया कि वह घर से निराजल ही चली थी।
यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भँवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी। उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्रह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से 108 बार भँवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में कम्पन होने लगा।
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