
▪️धार्मिक एवं पर्यटन नगरी ओरछा में श्रीराम-जानकी विवाह महोत्सव 16-17 दिसंबर को
▪️500 वर्षों की है परम्परा, देश-विदेश से पहुंचते हैं हजारों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक
▪️लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल)
Orchha Ke Ramraja : श्री रामलला के 22 जनवरी 2024 को अयोध्या राम मंदिर में होने वाले भव्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह की धूम पूरे देश भर में अभी से देखी जा रही है। विश्व हिंदू परिषद के माध्यम से देश भर के राम भक्तों के बीच अक्षत कलश पहुंच रहे हैं।
इसी बीच छोटी अयोध्या यानी मध्य प्रदेश के ओरछा में श्री रामराजा के विवाह की तैयारियां जोरों पर है। महाकाल लोक की तर्ज पर बन रहे ओरछा में श्री राम राजा लोक का भी निर्माण कार्य प्रगति पर है। (Orchha Ke Ramraja)
झाँसी से 20 किलोमीटर की दूरी पर निवाड़ी जिले के ओरछा में विश्व का अकेला मंदिर है जहां श्रीराम की पूजा राजा के रूप में होती है। उन्हें आरती के समय बंदूक की सलामी दी जाती है। ओरछा को दूसरी अयोध्या के रूप में मान्यता प्राप्त है। (Orchha Ke Ramraja)
बाल रूप में विराजमान हैं रामराजा (Orchha Ke Ramraja)
यहां पर रामराजा अपने बाल रूप में विराजमान हैं। यह जनश्रुति है कि श्रीराम दिन में यहां तो रात्रि में अयोध्या विश्राम करते हैं। शयन आरती के पश्चात उनकी ज्योति हनुमानजी को सौंपी जाती है, जो रात्रि विश्राम के लिए उन्हें अयोध्या ले जाते हैं। (Orchha Ke Ramraja)

500 सालों से चली आ रही परंपरा (Orchha Ke Ramraja)
पिछले करीब 500 सालों से विवाह पंचमी पर रामराजा की नगरी ओरछा में 3 दिवसीय विवाहोत्सव आयोजित किया जाता है। जिसमें देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं। इसके लिए प्रशासन द्वारा व्यापक तैयारियां की जाती। (Orchha Ke Ramraja)
विवाह के बंधन में ऐसे बंधेंगे (Orchha Ke Ramraja)
विवाहोत्सव के दौरान 16 दिसंबर को मण्डप पूजन हल्दी प्रीति भोज, 17 दिसम्बर को शाम 7.30 बजे श्री रामजी की बारात निकाली जाएगी। जिसमें जगह-जगह भजन कीर्तन किए जाएंगे। इसके अलावा मंदिर प्रांगण के नजदीक ही धनुष यज्ञ लीला का मंचन भी होगा। (Orchha Ke Ramraja)
18 दिसम्बर को जानकी मंदिर में श्री राम कलेवा के बाद शाम को बारात वापस जाएगी। श्री राम विवाहोत्सव की सभी रस्मों को मन्दिर प्रबन्धक, एवं यजमान के रूप में जिला कलेक्टर द्वारा संपन्न किया जाता है। (Orchha Ke Ramraja)

बारातियों का होगा भव्य स्वागत (Orchha Ke Ramraja)
श्री राम विवाह उत्सव में हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहते हैं तथा बाराती बनकर श्री राम राजा सरकार की बारात में जाते हैं। भगवान श्री राम राजा सरकार की भव्य बारात रात्रि 8 बजे मंदिर से ठाट बाट और राजसी वैभव के साथ निकलती है। भगवान राम पालकी में विराजमान होकर नगर के प्रमुख मार्गों से गाजे बाजे, हाथी घोड़ों के साथ जनक भवन के लिए निकलते हैं। (Orchha Ke Ramraja)
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कुछ श्रद्धालु माता जानकी के मंदिर में रहकर बारात की अगवानी करते हैं। पूरे नगर में बारात का भव्य स्वागत किया जाता है तथा दूल्हा बने श्री राम राजा सरकार का तिलक भी किया जाता है। (Orchha Ke Ramraja)

सशस्त्र पुलिस जवान देते हैं सलामी (Orchha Ke Ramraja)
सालों से चली आ रही परम्परा के अनुसार सशस्त्र पुलिस बल के जवानों द्वारा सलामी दी जाती है। बारात के सबसे आगे रघुकुल का प्रतीक चिह्न, उसके बाद मशाल थामे मशालची, फिर चांदी की छड़ी लिये दरबान और भगवान को चांवर हिलाते हुए सेवक चलते है। रामराजा की बारात का ओरछा नगरवासियों द्वारा बुंदेली परंपरा से घर-घर आरती उतारी जाती है और स्वागत किया जाता है। (Orchha Ke Ramraja)
अयोध्या से ओरछा आने की मनोहारी कथा (Orchha Ke Ramraja)
एक दिन ओरछा नरेश मधुकर शाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन, रानी राम भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। क्रोध में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ। (Orchha Ke Ramraja)
रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे। संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना दृढ़ से दृढ़तर होती गई। लेकिन रानी को कई महीनों तक रामराजा के दर्शन नहीं हुए। (Orchha Ke Ramraja)
अंतत: वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए। रानी ने उन्हें अपना मंतव्य बताया। (Orchha Ke Ramraja)
इसके बाद चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवा, रामराजा ने ओरछा चलना स्वीकार किया किन्तु उन्होंने तीन शर्तें रखीं-
पहली- यह यात्रा पैदल होगी,
दूसरी- यात्रा केवल पुष्प नक्षत्र में होगी
तीसरी- रामराजा की मूर्ति जिस जगह रखी जाएगी वहां से पुन: नहीं उठेगी।
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इसके बाद रानी ने राजा को संदेश भेजा कि वो रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं। राजा मधुकर शाह ने रामराजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए करोड़ों की लागत से चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। (Orchha Ke Ramraja)
जब रानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने यह मूर्ति अपने महल में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुहूर्त में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। लेकिन राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया। (Orchha Ke Ramraja)

श्रीराम ने मंदिर में जाने से किया इंकार (Orchha Ke Ramraja)
कहते हैं कि श्रीराम यहां बाल रूप में आए और अपनी मां का महल छोड़कर वो मंदिर में कैसे जा सकते थे। श्रीराम आज भी इसी महल में विराजमान हैं और उनके लिए बना करोड़ों का चतुर्भुज मंदिर आज भी वीरान पड़ा है। यह मंदिर आज भी मूर्ति विहीन है। यह भी एक संयोग है कि जिस संवत 1631 को रामराजा का ओरछा में आगमन हुआ, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन भी पूर्ण हुआ। (Orchha Ke Ramraja)
जो मूर्ति ओरछा में विद्यमान है उसके बारे में बताया जाता है कि जब श्रीराम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी। मां कौशल्या उसी को बाल भोग लगाया करती थीं। (Orchha Ke Ramraja)
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ओरछाधीश के रूप में मान्य श्रीराम (Orchha Ke Ramraja)
जब श्रीराम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। यही मूर्ति गणेशकुंवरि को सरयू की मझधार में मिली थी। यहां श्रीराम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं। (Orchha Ke Ramraja)
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चारों ओर हैं हनुमान जी के मंदिर (Orchha Ke Ramraja)
रामराजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं। किसी में छारद्वारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं। (Orchha Ke Ramraja)
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ओरछा की यह हैं बहुमूल्य धरोहरें (Orchha Ke Ramraja)
ओरछा की अन्य बहुमूल्य धरोहरों में लक्ष्मी मंदिर, पंचमुखी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर, राजामहल, रायप्रवीण महल, हरदौल की बैठक, हरदौल की समाधि, जहांगीर महल और उसकी चित्रकारी प्रमुख हैं। (Orchha Ke Ramraja)
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