Insurence Policy: Insurence पॉलिसी में नामित नॉमिनी को पूरा पैसा नहीं मिलेगा, अगर मृतक के कानूनी वारिस दावा करते हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ किया है कि बीमा पॉलिसी में दर्ज नॉमिनी सिर्फ एक ट्रस्टी की तरह होता है, न कि पूरी रकम का हकदार।
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 39 का यह मतलब नहीं है कि यह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 जैसे कानूनों को खत्म कर सकती है। यह फैसला नीलव्वा उर्फ नीलम्मा बनाम चंद्रव्वा उर्फ चंद्रकला उर्फ हेमा और अन्य मामले में आया, जिसमें बीमा राशि के असली दावेदारों को लेकर विवाद था।
कानूनी वारिस कर सकते हैं दावा
न्यायमूर्ति अनंत रामनाथ हेगड़े ने कहा कि बीमा पॉलिसी में दर्ज नॉमिनी को तभी लाभ मिलेगा जब कानूनी वारिस कोई दावा न करें। अगर पत्नी, बच्चे या माता-पिता जैसे वारिस दावा करते हैं, तो बीमा राशि का बंटवारा उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार होगा।
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पूरा मामला क्या था?
इस मामले में एक शख्स ने शादी से पहले अपनी माँ को बीमा पॉलिसी में नॉमिनी बनाया था। शादी के बाद और बच्चे के जन्म के बावजूद, उसने नॉमिनी नहीं बदला। 2019 में उसके निधन के बाद, उसकी माँ और पत्नी के बीच बीमा राशि को लेकर विवाद शुरू हो गया।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि मृतक की माँ, पत्नी और बच्चे को बीमा राशि का एक-तिहाई हिस्सा मिलेगा। इस फैसले से यह साफ हो गया कि बीमा पॉलिसी में नॉमिनी को पूरी रकम नहीं मिलेगी, बल्कि कानूनी वारिसों का भी उस पर अधिकार रहेगा।