Mythological Knowledge : क्या होता है मृत्यु के बाद, कैसे होते हैं स्वर्ग-नरक, कौनसे त्योहार श्रेष्ठ, क्या है धर्म-मोक्ष, जानें सब कुछ

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▪️ पंडित मधुसूदन जोशी, भैंसदेही (बैतूल)

Mythological Knowledge : मित्रों वेद-पुराणों को समझने की यह पोस्ट आप सभी के सन्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। कृपया आप पढ़ें और ज्यादा से ज्यादा लोगों को पढ़वायें। वेदों मे स्वर्ग या नरक की गतियों को समझा जा सकता है। स्वर्ग और नर्क दो गतियां हैं। आत्मा जब देह छोड़ती है तो मूलत: दो तरह की गतियां होती है। एक है अगति और दूसरी है गति।

अगति में व्यक्ति को बार-बार जन्म लेना पड़ता है और गति में जीव को किसी लोक की प्राप्ती होती है या वह अपने शुभ कर्मों से मोक्ष (शान्ति) प्राप्त कर लेता है। वेदों में अगति चार प्रकार की बताई गई है- क्षिणोदर्क, भूमोदर्क, अगति और दुर्गति।

क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्यु लोक में आता है और संतों सा जीवन जीता है। भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है। अगति में जीव को नीच अथवा पशु योऩी में जाना होता है तथा दुर्गति में जीव कीट (कीड़ों) जैसी योनी पाता है। दोस्तों! वेदों में गति के भी चार प्रकार के लोक बताये गये हैं। पहला है ब्रह्मलोक, दूसरा है देवलोक, तीसरा है पितृलोक और अन्तिम है नर्कलोक। जीव अपने कर्मों के अनुसार उक्त लोकों मेंसे किसी एक में जाता है।

जब भी कोई मनुष्य मरता है या आत्मा शरीर को त्यागकर यात्रा प्रारंभ करती है तो इस दौरान उसे तीन प्रकार के मार्ग मिलते हैं। आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जायगा, यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है। ये तीन मार्ग हैं- अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग। अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिये है।

वेद-पुराणों में धर्म और मोक्ष के बारे में विस्तार से बताया गया हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार धर्म का अर्थ है यम और नियम को समझकर उसका पालन करना। नियम ही धर्म है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से मोक्ष ही अंतिम लक्ष्य होता है। सनातन धर्म के अनुसार व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति की ईच्छा और शास्त्रोक्त कर्म करने चाहिये, मोक्ष क्या है? स्थितप्रज्ञ आत्मा को मोक्ष मिलता है। मोक्ष का भावार्थ यह है कि आत्मा शरीर नहीं है, इस सत्य को पूर्णत: अनुभव करते हुये अशरीरी होकर स्वयं के अस्तित्व को पुख्‍ता करना ही मोक्ष की प्रथम सीढ़ी है।

वेद-पुराणों में व्रत और त्योहार के बारे में भी विस्तार से बताया गया हैं। हिन्दु धर्म के सभी व्रत, त्योहार या तीर्थ सिर्फ मोक्ष की प्राप्त हेतु ही निर्मित हुये हैं। व्यक्ति को मोक्ष तब मिलेगा जब व्यक्ति स्वस्थ रहकर प्रसन्नचित्त और खुशहाल जीवन जीयेगा। व्रत से शरीर और मन स्वस्थ होता है। त्योहार से मन प्रसन्न होता है और तीर्थ से मन और मस्तिष्क में वैराग्य और आध्यात्म का जन्म होता है। मौसम और ग्रह नक्षत्रों की गतियों को ध्यान में रखकर बनाये गये व्रत और त्योहार का वेदों में बहुत महत्व बताया गया है।

व्रतों में चतुर्थी, एकादशी, प्रदोष, अमावस्या, पूर्णिमा, सोमवार, श्रावण मास और कार्तिक मास के दिन व्रत रखना श्रेष्ठ बताया गया है यदि हम उपरोक्त सभी व्रत नहीं रख सकते हैं तो श्रावण के पूरे महीने व्रत रखना उत्तम बताया गया हैं। त्योहारों में मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, नवरात्रि, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी और हनुमानजी का जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाने की प्रेरणा दी गई हैं। पर्व में श्राद्ध कर्म जरूर करना चाहिये व कुंभ का पर्व जरूर मनाना चाहिये। व्रत करने से काया निरोगी और जीवन में शांति मिलती है।

वेदों में सूर्य-चंद्र की अनेक प्रकार की संक्रांतियाँ बताई गई है। सूर्य संक्रांतियों में उत्सव का अधिक महत्व है तो चंद्र संक्रांति में व्रतों का अधिक महत्व है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन। इसमें से श्रावण मास को व्रतों में सबसे श्रेष्ठ मास माना गया है। इसके अलावा प्रत्येक माह की एकादशी, चतुर्दशी, चतुर्थी, पूर्णिमा, अमावस्या और अधिमास में व्रतों का अलग-अलग महत्व है। सौरमास और चंद्रमास के बीच बढ़े हुये दिनों को मलमास या अधिकमास कहते हैं। साधु-संत चतुर्मास अर्थात चार महीने श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह में व्रत रखते हैं।

उत्सव, पर्व और त्योहार सभी का अलग-अलग अर्थ और महत्व है। प्रत्येक ऋतु में एक उत्सव है उन त्योहार, पर्व या उत्सव को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथ, धर्मसूत्र, स्मृति, पुराण और आचार संहिता में मिलता है। चंद्र और सूर्य की संक्रांतियों अनुसार कुछ त्योहार मनाये जाते हैं। सूर्य संक्रांति बारह प्रकार की कहीं गई हैं। जिसमें मकर, मेष, तुला और कर्क चार प्रकार की संक्रांती महत्वपूर्ण है। इन चार में भी मकर संक्रांति सबसे महत्वपूर्ण बताई गई है। सूर्योपासना के लिये प्रसिद्ध पर्व है छठ, संक्रांति और कुंभ।

पर्वों में रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, गुरुपूर्णिमा, वसंत पंचमी, हनुमान जयंती, नवरात्री, शिवरात्री, होली, ओणम, दीपावली, गणेश चतुर्थी और रक्षाबंधन प्रमुख हैं। हालांकि सभी में मकर संक्रांति और कुंभ को सर्वोच्च माना गया है। वेदों में तीर्थों के बारे में भी विस्तार से वर्णन मिलता हैं और तीर्थ और तीर्थयात्रा का बहुत पुण्य बताया गया है। जो मनमाने तीर्थ और तीर्थ पर जाने के समय हैं उनकी यात्रा का सनातन धर्म से कोई संबंध नहीं। तीर्थों में चार धाम, ज्योतिर्लिंग, अमरनाथ, शक्तिपीठ और सप्तपुरी की यात्रा का ही महत्व है।

अयोध्या, मथुरा, काशी और प्रयाग को तीर्थों का प्रमुख केंद्र माना जाता है, जबकि कैलाश मानसरोवर को सर्वोच्च तीर्थ बताया गया है। बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी ये चार धाम हैं। सोमनाथ, द्वारका, महाकालेश्वर, श्रीशैल, भीमाशंकर, ॐकारेश्वर, केदारनाथ विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, रामेश्वरम, घृष्णेश्वर और बैद्यनाथ ये द्वादश ज्योतिर्लिंग है। काशी, मथुरा, अयोध्या, द्वारका, माया, कांची और अवंति उज्जैन ये सप्तपुरी हैं। वेदों में उपरोक्त कहे गये तीर्थों की यात्रा ही धर्मसम्मत कहीं गई है।

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