▪️ पंडित मधुसूदन जोशी, भैंसदेही (बैतूल)
Mundan Sanskar: हिंदू धर्म में मुंडन 8वां संस्कार माना गया है। इसे चूड़ाकर्म संस्कार भी कहते हैं। बच्चे में गर्भावस्था की अशुद्धियों को दूर करने के लिए मुंडन संस्कार किया जाता है। ये बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरुरी है। शास्त्रों में लिखा कहा गया है ‘तेन ते आयुषे वपामि सुश्लोकाय स्वस्तये’ अर्थात, मुंडन संस्कार से जातक दीर्घायु होता।
शिशु के जन्म लेने के बाद 1 साल के अंत या तीसरे, 5वें या फिर 7वें साल में शुभ मुहूर्त देखकर ही मुंडन संस्कार कराए जाने की प्रथा है। हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यता के अनुसार, 84 लाख योनियों के बाद मनुष्य योनी मिलती है। ऐसे में पिछले सभी जन्मों के ऋण का पाप उतारने के लिए शिशु के बाल काटे जाते हैं। पंचांग के अनुसार आषाढ़ (मुंडन आषाढ़ी एकादशी से पहले करें), माघ और फाल्गुन मास में बच्चों का मुण्डन संस्कार कराना चाहिए।
यह तिथियां होती हैं शुभ (Mundan Sanskar)
मुंडन संस्कार के लिए द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथि शुभ मानी जाती है। साथ ही अश्विनी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, पुनर्वसु, चित्रा, स्वाति, ज्येष्ठ, श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र में भी चूड़ाकर्म संस्कार करना उत्तम होता है।
मुंडन के लिए यह स्थान श्रेष्ठ (Mundan Sanskar)
बच्चे का मुंडन संस्कार घर के आंगन में तुलसी के पास या फिर किसी धार्मिक स्थल पर करना श्रेष्ठ होता है। इस दौरान हवन किया जाता है। मां बच्चे को अपनी गोद में लेकर उसका मुंह पश्चिम दिशा में अग्नि की तरफ रखती है। इसके बाद बच्चे के बाल उतारे जाते हैं और फिर गंगाजल से उसका सिर धोकर हल्दी का लेप लगाया जाता है और उसे नए वस्त्र पहनाएं जाते हैं।
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