▪️ राकेश अग्रवाल, मुलताई
MP News : गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है। शास्त्रों में उन्हें प्रथम पूज्य देव भी माना गया है। इसी के चलते हर शुभ काम की शुरुआत गणेश पूजन के साथ की जाती है। इन दिनों गणेश उत्सव भी चल रहा है। ऐसे में हर गांव और शहर में प्रथम पूज्य श्री गणेश की प्रतिमा स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना चल रही है। लोग बप्पा की आराधना में लीन हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के बैतूल जिले का एक गांव ऐसा भी है जहां ऐसा कोई माहौल नहीं है।
यह गांव है मुलताई अनुविभाग का ग्राम तरोड़ा बुजुर्ग। इस गांव में पिछले 100 सालों से अधिक समय से गणेश प्रतिमाओं की स्थापना नहीं की जाती है। ग्रामीणों की मान्यता है कि गणेश प्रतिमाओं की स्थापना करने पर मौतों का सिलसिला शुरू हो जाता है और गांव में मातम पसर जाता है। ऐसे में ग्रामीणों ने गणेश प्रतिमा बिठाना बंद कर दिया है।
गांव के बुजुर्ग से बुजुर्ग व्यक्ति का कहना है कि उन्होंने कभी गांव में गणेश प्रतिमा बैठते नहीं देखी है। 25 साल पहले बाहर से आए एक साहू परिवार ने एक दिन के लिए गणेश प्रतिमा बिठा ली थी, लेकिन उनके घर में भी मौत हो गई थी। जिसके चलते दूसरे ही दिन गणेश प्रतिमा का विसर्जन कर दिया गया था। गांव में ना तो घरों में और ना ही सार्वजनिक तौर पर गणेश प्रतिमाओं की स्थापना होती है।
तरोड़ा बुजुर्ग में लगभग 250 घरों की बस्ती में 2200 की जनसंख्या निवास करती है। गांव में मुख्य काम खेती और मजदूरी है। इसी के साथ गांव के लोग बहुत धार्मिक भी हैं। गांव में हर साल धूमधाम से दुर्गा उत्सव मनाया जाता है, लेकिन गणेश उत्सव मनाने पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
गांव के सरपंच दयाल पंवार ने बताया कि पुरानी मान्यता के चलते गाँव में किसी भी घर में गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं की जाती है। वे सालों से यही परम्परा चलती आ रही देख रहे हंै। गांव में गणेश उत्सव का पर्व कोई भी नहीं मनाता। ग्रामीण मदन मरकाम ने बताया कि गांव में गणेश जी का मंदिर भी नहीं है। हनुमान जी का एक मंदिर है। वहीं शंकर जी का मंदिर गांव के समीप दूसरे गांव कोपीढाना में है। जहां जाकर लोग पूजा अर्चना कर लेते हैं।
मदन ने बताया कि उन्हें उनके बुजुर्गों से यह बात पता चली थी कि गणेश प्रतिमा की स्थापना करने पर आपदा आ जाती है। जानवरों की मौत होने लगती है। लोग बीमार होने लगते हैं और गांव में मौतों का सिलसिला शुरू हो जाता है। इसलिए वह भी इसी परंपरा को निभाते आ रहे हैं और गांव में गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं करते हैं।
अनिता नागले का कहना है कि उसकी शादी को 40 साल हो गए हैं और 40 सालों से उसने इस गांव में गणेश जी की प्रतिमा बैठी हुई नहीं देखी है। शारदा बाई (70 साल) का कहना है कि उन्हें उनकी दिवंगत सास ने यह बात बताई थी कि गणेश उत्सव गांव में नहीं मनाया जाता है। उन्होंने इसका कारण भी बताया था कि जब भी यहां गणेश जी की प्रतिमा आती है तो गांव में नुकसानी का दौर शुरू हो जाता है। इसी के चलते उनकी सास ने भी कभी गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं की थी। उनकी सास को यह बात उनकी भी सास ने बताई थी।
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पूजन करते हैं, बस प्रतिमा नहीं लाते
ग्रामीणों ने बताया कि भगवान गणेश की पूजा सभी करते हैं, लेकिन केवल गांव में गणेश उत्सव नहीं मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि गांव में केवल मूर्ति नहीं बिठाने की परंपरा है। जिसको पूरा गांव निभाता आ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि गणेश जी रिद्धि सिद्धि के दाता हैं और प्रथम पूज्य देवता है, लेकिन गांव की परंपरा के चलते उनकी स्थापना नहीं की जाती है।
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युवा पीढ़ी भी कर रही बुजुर्गों का अनुसरण
गांव के युवाओं का कहना है कि बुजुर्गों से उन्होंने गणेश उत्सव के बारे में इतनी बातें सुन रखी है कि उन्होंने कभी इस बात की हिम्मत नहीं की कि गांव में गणेश प्रतिमाओं की स्थापना की जाए। गणेश उत्सव के दौरान पास के ही गांव कोपीढाना में भगवान गणेश की प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। वहां लोग पूजन कर लेते हैं, लेकिन तरोड़ा बुजुर्ग में कभी गणेश प्रतिमा नहीं बिठाली जाती है।
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दो दिन के लिए स्थापना हुई तो हो गई मौत
ग्रामीणों ने बताया कि बस्ती के निचले भाग में पंचायत भवन के पास लगभग 30 साल पहले बाहर से एक साहू परिवार आकर रहने लगा था। इस साहू परिवार ने घर में एक गणेश प्रतिमा की स्थापना की थी। गणेश उत्सव के पहले दिन जब गणेश प्रतिमा लाई तो उनके घर में एक बुजुर्ग का स्वास्थ्य खराब हो गया और दूसरे दिन ही उस बुजुर्ग की मौत हो गई थी। वहीं उनके पड़ोसी का स्वास्थ्य भी खराब हो गया था। जिसके चलते तीसरे दिन ही प्रतिमा का विसर्जन कर दिया गया था।
ग्रामीणों ने बताया कि वह साहू परिवार अब गांव में नहीं रहता, उस समय भी ग्रामीणों ने उस परिवार को गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं करने की समझाइए दी थी। उन्होंने यह बात नहीं मानी थी, जिसके बाद गांव में उन्हीं के घर में मौत हो गई थी।