Manimahesh Kailash : मणिमहेश कैलाश शिखर पर है भगवान शिव का निवास

Manimahesh Kailash : मणिमहेश कैलाश शिखर पर है भगवान शिव का निवास
By Hiranmay – Own work, CC BY-SA 4.0, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=3456071

Manimahesh Kailash : देश के कई स्थान भगवान भोलेनाथ के धाम के रूप में मशहूर हैं। इनमें मणिमहेश कैलाश शिखर का नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं। इस पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। यही कारण है कि यह स्थान न केवल बेहद प्रसिद्ध है बल्कि आस्था का केंद्र भी है। यहां पर भादो के महीने अमावस्या के आठवें दिन मेला भी लगता है। जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।

मणिमहेश कैलाश शिखर के संबंध में लेखक हिरण्मय द्वारा विकिपीडिया वेबसाइट पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई गई है। विकिपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार मणिमहेश कैलाश शिखर की ऊंचाई 5653 मीटर या 18547 फीट है। यह हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के भरमौर उपमंडल में स्थित है। इसे चंबा कैलाश के नाम से भी जाना जाता है।

हिमालय में अलग-अलग स्थानों पर स्थित पांच अलग-अलग चोटियों के समूह में पांचवीं सबसे महत्वपूर्ण चोटी है। इन चोटियों को सामूहिक रूप से पंच कैलाश या पांच कैलाश के नाम से भी जाना जाता है। इनके नाम क्रमश: कैलाश पर्वत, आदि कैलाश, शिखर कैलाश, किन्नौर कैलाश हैं।

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Image Source : beingpahadi.com

इतनी ऊंचाई पर है मणिमहेश झील

मणिमहेश कैलाश शिखर के तल पर 3950 मीटर की ऊंचाई पर मणिमहेश झील स्थित है। हिमाचल प्रदेश ही नहीं बल्कि आसपास के लोगों में भी इस झील के प्रति गहरी आस्था है। इस झील के परिसर में ही वह मेला लगता है। झील तक जाने के लिए दो मार्ग हैं। पहला हडसर गांव से और दूसरा होली गांव से।

शिवजी ने किया था निर्माण

इस क्षेत्र में प्रचलित दंतकथाओं के अनुसार भगवान शिवजी ने देवी पार्वती से विवाह करने के पश्चात मणिमहेश पर्वत का निर्माण किया था। इसलिए इस पर्वत को माता गिरिजा के रूप में पूजा जाता है। एक स्थानीय मिथक के मुताबिक भगवान शिव को मणिमहेश कैलाश में निवास करने वाला माना जाता है।

इस पर्वत पर शिवलिंग के रूप में मौजूद एक चट्टान को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है। वहीं पहाड़ के तल पर बर्फ के मैदान को स्थानीय लोग शिव का चौगान या खेल का मैदान कहते हैं।

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Image Source : TV9 Bharatvarsh

मणिमहेश कैलाश यह खास बात

मणिमहेश कैलाश की सबसे खास बात यह है कि अभी तक इस पर्वत की चोटी पर कोई भी सफलतापूर्वक पहुंच नहीं पाया है। यही कारण है कि यह अभी तक कुंवारी चोटी बनी हुई है। इसे लेकर भी कई तरह की किंवदंतियां प्रचलित हैं।

वर्ष 1968 में नंदिनी पटेल के नेतृत्व में एक इंडो-जापानी टीम ने चोटी पर चढ़ने का प्रयास किया, लेकिन वह विफल हो गया। इस विफलता का श्रेय चोटी की दैवीय शक्ति को दिया जाता है।

इसी तरह वहां की एक स्थानीय जनजाति के एक चरवाहे ने भेड़ों के झुंड के साथ चढ़ाई करने की कोशिश की और माना जाता है कि वह अपनी भेड़ों के साथ पत्थर में बदल गया। माना जाता है कि मुख्य शिखर के चारों ओर छोटी चोटियों की श्रृंखला चरवाहे और उसकी भेड़ों के अवशेष हैं।

एक किंवदंती यह भी है कि एक सांप ने भी पहाड़ पर चढ़ने का प्रयास किया था, लेकिन वह भी असफल रहा और पत्थर में बदल गया। भक्तों का मानना है कि वे शिखर को तभी देख सकते हैं जब भगवान शिव ऐसा चाहेंगे। खराब मौसम के कारण शिखर पर बादल छा जाना भी भोलेनाथ की नाराजगी के रूप में माना जाता है।

यहां देखें मणिमहेश की विहंगम यात्रा का वीडियो…

उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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