MAHAMANDLESHVAR UPADHI: मध्यप्रदेश के बैतूल शहर निवासी देवेंद्र गिरी जी महाराज को श्री पंच दशनाम गुरुदत अखाड़ा द्वारा सर्वसम्मति से महामंडलेश्वर की उपाधि प्रधान की गई है। बैतूल के अर्जुन नगर हमलापुर डिपो रोड निवासी देवेंद्र गिरी महाराज को प्रेषित नियुक्ति पत्र में कहा गया है कि आप महामंडलेश्वर बनने के बाद समाज और देशभक्ति में अपने दायित्वों का निर्वाहन भलीभांति करेंगे तथा समाज की नई दिशा प्रदान करेंगे। देवेंद्र गिरी महाराज को महामंडलेश्वर बनने पर अनेक संतजनों ने उन्हें बधाई दी है।
महामंडलेश्वर पद की यह होती जिम्मेदारियां (MAHAMANDLESHVAR UPADHI)
जानकारी के मुताबिक बहुत पहले साधु-संतों की मंडलियां चलाने वालों को मंडलीश्वर कहा जाता था। 108 और 1008 की उपाधि वाले संत के पास वेदपाठी विद्यार्थी होते थे। अखाड़ों के संतों का कहना है कि ऐसे महापुरुष जिन्हें वेद और गीता का अध्ययन हो, उन्हें बड़े पद के लिए नामित किया जाता था। पूर्व में शंकराचार्य अखाड़ों में अभिषेक पूजन कराते थे। वैचारिक मतभेद के बाद यह काम महामंडलेश्वर के जिम्मे हो गया। अखाड़ों ने अपने महामंडलेश्वर बनाना शुरू कर दिए।
महामंडलेश्वर पद की यह हैं शर्तें (MAHAMANDLESHVAR UPADHI)
महामंडलेश्वर बनने के लिए कुछ शर्तें आवश्यक होती हैं। इसके लिए यह जरूरी होता है कि वे साधु संन्यास परंपरा से हो, वेद का अध्ययन, चरित्र, व्यवहार व ज्ञान अच्छा हो और अखाड़ा कमेटी निजी जीवन की पड़ताल से संतुष्ट हो।
पट्टाभिषेक के बाद बनते हैं महामंडलेश्वर(MAHAMANDLESHVAR UPADHI)
सब कुछ सामान्य होने के बाद संन्यासी का विधिवत पट्टकाभिषेक कर महामंडलेश्वर पद पर अलंकृत किया जाता है। फिर महामंडलेश्वर के बीच आपसी सहमति से आचार्य के पद पर अलंकृत किया जाता है। इसके बाद अखाड़े की सारी गतिविधियां आचार्य महामंडलेश्वर के हाथ संपन्न कराई जाती हैं।
शाही जुलूस में मिलता है मान(MAHAMANDLESHVAR UPADHI)
अखाड़े में महामंडलेश्वर सम्मान का पद है। शाही जुलूस में नागा संत अखाड़े के देवता को सबसे आगे लेकर चलते हैं। आचार्य महामंडलेश्वर के बाद वरिष्ठता के क्रम पर छत्र चंवर और सुरक्षा के साथ महामंडलेश्वर का रथ चलता है।