▪️ लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल)
Maa Narmada Parikrama : मैं लक्ष्मीकांत हजारे, निवास ग्राम मलकापुर (बैतूल), ग्राम में ही कृषि कार्य करता हूं। मां नर्मदा स्नान और दर्शन करने नर्मदापुरम जाया करता था। यहां पर ही मां नर्मदा का महत्व जाना। एक दिन स्वप्न में अचानक मैया ने दर्शन दिए और आदेश दिया कि पैदल परिक्रमा करना है।
बस फिर मैया की आज्ञा पर पद परिक्रमा का संकल्प लिया, परिक्रमा के बारे में पढ़ा और बैग में 2 जोड़ी कपड़े और कुछ आवश्यक सामान रखकर ओंकारेश्वर के लिए ट्रेन पकड़ी और पैदल ही नाप दिए 3500 किलोमीटर।
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पहली परिक्रमा 118 दिन में हुई पूरी (Maa Narmada Parikrama)
पहली बार मां नर्मदा की परिक्रमा 13/10/22 से 24/01/23 में ओंकारेश्वर से आरंभ की जो लगभग 3000 किमी की यात्रा 104 दिन में ओंकारेश्वर में भगवान ओमकार पर जल चढ़ाकर पूर्ण हुई थी। यह पहली एक अनूठी यात्रा भी थी, जिसे सदियों से श्रद्धालु पूरा कर रहे हैं। विंध्य-सतपुड़ा मेकल श्रेणियों के बीच से कल-कल बहती अप्रतिम सौंदर्य की धनी मां नर्मदा की परिक्रमा अपने आप में अनूठी यात्रा है। यह है विश्व की एकमात्र नदी परिक्रमा ‘नर्मदा परिक्रमा’ है।
श्रद्धा का भाव ऐसा, माई करेगी इंतजाम
वर्षाकाल के चार माह छोड़कर वर्ष भर युवा से लेकर बुजुर्ग, महिला-पुरुष अपना घर-परिवार त्यागकर बस एक झोला ले नर्मदा परिक्रमावासी बन निकल पड़ते हैं। संसार की सारी समस्याएं छोड़कर यहां तक कि भोजन-पानी का इंतजाम भी। नर्मदा परिक्रमावासी की दृढ़ आस्था होती है कि भोजन-आसरे जैसे मामूली इंतजाम तो हमारी नर्मदा मैया ही कर देंगी।
बता दें कि कोई भी परिक्रमावासी जब नर्मदा किनारे कस्बों, शहरों, गांवों से गुजरता है तो वहां के रहवासी स्वयं ही उनके भोजन-पानी और आश्रय तक की व्यवस्था करते आ रहे हैं। परिक्रमा वासी को मेडिकल, दवाई और डॉक्टर की सुविधा भी मार्ग के आश्रम में बड़े आदर पूर्वक की जाती है। परिक्रमावासी भोजन नहीं करना चाहते तो बांधकर जबरदस्ती दे दिया जाता है।
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वापस आकर की मां नर्मदा की स्थापना
मां नर्मदा की पहली पद परिक्रमा से लौटने के बाद मलकापुर के रेलवे स्टेशन चौक पर अपनी निजी भूमि में मां नर्मदा जी एवं नर्मदेश्वर महादेव का मंदिर बनाकर विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा करवाई। तत्पश्चात पुनः दूसरी यात्रा प्रारंभ की।

दूसरी पद परिक्रमा भी ओंकारजी से ही शुरू की
देवउठनी ग्यारस के बाद से दूसरी नर्मदा पद परिक्रमा ओमकार जी के दर्शन से 11/12/23 से शुरू की जो कि लगभग 3500 किलोमीटर की यात्रा माई के आशीर्वाद से निर्विघ्न 87 दिन में ही ओमकार जी वापस आकर पूर्ण हो गई। यात्रा के दौरान मार्ग भटकने से किलोमीटर का अंतर हो जाता है।
दूसरी यात्रा के दौरान मार्ग में माई के अनन्य भक्त पदयात्री साधु संतो के साथ-साथ डॉक्टर, मिलिट्री के रिटायर्ड जवान, बड़े-बड़े बिजनेसमैन, विदेशी यात्री भी मैया की पदयात्रा में साथ-साथ चले। 1 दिन में 25 किलोमीटर से 50 किलोमीटर तक की यात्रा की पैरों में फफोले आने पर भी यात्रा जारी रखी। पदयात्रा का रास्ता भटकने पर मैया किसी भी रूप में आकर साक्षात दर्शन देती है और मार्ग बता कर अंतर ध्यान हो जाती है। मन विचलित होने पर साधु महात्मा के वेश में आकर मैया आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाती है। मां रेवा की परिक्रमा के दौरान तट पर अनेक साधु महात्माओं के दर्शन होते हैं ऐसे ही एक श्रेष्ठ संत सियाराम बाबा के दर्शन हुए।
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नर्मदा को गंदा न करें
नर्मदा की पदयात्रा के साथ साथ लोगों को पर्यावरण और नदियों के जल संरक्षण का संदेश दिया। लोगों से अपील कि नर्मदा में गंदगी न करें। इनका कहना है परिक्रमा के दौरान नर्मदा नदी में जगह जगह गंदगी और अवैध रेत उत्खनन, नाव से रेता निकालते देखकर अच्छा नहीं लगा।
ग्राम वासियों ने किया गाजे बाजे से स्वागत
मां नर्मदा की परिक्रमा बाबा ओंकार को जल चढ़ाने के बाद पूर्ण कर जब क्षेत्र के पहले पद यात्री लक्ष्मीकांत हजारे जब मलकापुर पहुंचे तो ग्रामवासी रमेश वर्मा, जितेंद्र वर्मा, प्रेमकांत वर्मा, मनीष चौधरी, प्रदीप वर्मा, भद्दू पाठेकर, मनीष परिहार, लोकेश वर्मा, मन्ना हजारे, मोहित वर्मा, राजेश हजारे, राजू मालवी, मोटू हजारे आदि ने नर्मदे हर के जय घोष के साथ, फूल माला पहनाकर, पांव पखारकर गाजे बाजे से नर्मदा पद यात्री का स्वागत किया।
पदयात्रा के दौरान मां नर्मदा जी एवं यात्रा संबंधी संकलित की जानकारियां
मां नर्मदा विश्व की एकमात्र ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है। स्कंदपुराण में नर्मदा का वर्णन किया गया है। माना जाता है कि पैदल यात्रा करने पर यह यात्रा 3 साल 3 महीने और तेरह दिन में पूरी होती है। इसके लिए कुल 2600 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। कई यात्री 120 दिन में परिक्रमा पूरी करते हैं।

यह है परिक्रमा पथ
मां नर्मदा की परिक्रमा का आरंभ उद्गम स्थल अमरकंटक से शुरू होकर गुजरात भरूच तक 1312 किमी और फिर भरूच से अमरकंटक तक 1312 किमी की होती है। यात्रा तभी पूर्ण होती है जब आप ओंकारजी को जल अर्पित करते है, इसलिए अधिकतर लोग अपनी यात्रा ओंकारेश्वर से ही शुरू करते है। कई यात्री वाहनों से भी मां नर्मदा की परिक्रमा करते हैं।
हजारों आश्रम, अनवरत सदाव्रत
मां नर्मदा परिक्रमा मार्ग पर हजारों आश्रम और सदाव्रत (यात्रियों के लिए कच्चा भोजन) उपलब्ध होता है। नर्मदा तट पर पडऩे वाले गांवों में भी परिक्रमावासियों के लिए भंडारा प्रसादी और सदाव्रत की व्यवस्था ग्रामीणों, संत-महात्माओं द्वारा की जाती है।
नर्मदा नदी मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा है, परंतु इसका अधिकतर भाग मध्यप्रदेश में ही बहता है। मध्यप्रदेश के तीर्थ स्थल अमरकंटक से इसका उद्गम होता है और नेमावर नगर में इसका नाभि स्थल है। फिर ओंकारेश्वर होते हुए ये नदी गुजरात में प्रवेश करके खम्भात की खाड़ी में इसका विलय हो जाता है। नर्मदा नदी के तट पर कई प्राचीन तीर्थ और नगर हैं। हिन्दू पुराणों में इसे रेवा नदी कहते हैं। इसकी परिक्रमा का बहुत ही ज्यादा महत्व है।
नर्मदा का उद्गम स्थल (Maa Narmada Parikrama)
अमरकंटक में कोटितार्थ मां नर्मदा का उद्गम स्थल है। यहां सफेद रंग के लगभग 34 मंदिर हैं। यहां नर्मदा उद्गम कुंड है, जहां से नर्मदा नदी का उद्गम है जहां से नर्मदा प्रवाहमान होती है। मंदिर परिसरों में सूर्य, लक्ष्मी, शिव, गणेश, विष्णु आदि देवी-देवताओं के मंदिर हैं। समुद्रतल से अमरकंटक 3600 फीट की ऊंचाई पर स्थित अमरकंटक को नदियों की जननी कहा जाता है। यहां से लगभग पांच नदियों का उद्गम होता है जिसमें नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी प्रमुख है। नर्मदा की कुल 41 सहायक नदियां हैं।
उत्तरी तट से 19 और दक्षिणी तट से 22। नर्मदा बेसिन का जलग्रहण क्षेत्र एक लाख वर्ग किलोमीटर है। यह देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का तीन और मध्य प्रदेश के क्षेत्रफल का 28 प्रतिशत है। नर्मदा की आठ सहायक नदियां 125 किलोमीटर से लंबी हैं। मसलन- हिरन 188, बंजर 183 और बुढ़नेर 177 किलोमीटर। मगर लंबी सहित डेब, गोई, कारम, चोरल, बेदा जैसी कई मध्यम नदियों का हाल भी गंभीर है। सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में जंगलों की बेतहाशा कटाई से ये नर्मदा में मिलने के पहले ही धार खो रही हैं।
नर्मदा यात्रा कब करें
नर्मदा परिक्रमा या यात्रा दो तरह से होती है। पहला हर माह नर्मदा पंचक्रोशी यात्रा होती है और दूसरी नर्मदा की परिक्रमा होती है। प्रत्येक माह होने वाली पंचक्रोशी यात्रा की तिथि कैलेंडर में दी हुई होती है। यह यात्रा तीर्थ नगरी अमरकंटक, ओंकारेश्वर और उज्जैन से प्रारंभ होती है। जहां से प्रारंभ होती है वहीं पर समाप्त होती है।
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यह है परिक्रमा मार्ग (Maa Narmada Parikrama)
अमरकंटक, माई की बगिया से नर्मदा कुंड, मंडला, जबलपुर, भेड़ाघाट, बरमानघाट, पतईघाट, मगरोल, जोशीपुर, छपानेर, नेमावर, नर्मदासागर, पामाखेड़ा, धावड़ीकुंड, ओंकारेश्वर, बालकेश्वर, इंदौर, मंडलेश्वर, महेश्वर, खलघाट, चिखलरा, धर्मराय, कातरखेड़ा, शूलपाड़ी की झाड़ी, हस्तीसंगम, छापेश्वर, सरदार सरोवर, गरुड़ेश्वर, चंदोद, भरूच। इसके बाद लौटने पर पोंडी होते हुए बिमलेश्वर, कोटेश्वर, गोल्डन ब्रिज, बुलबुलकंड, रामकुंड, बड़वानी, ओंकारेश्वर, खंडवा, होशंगाबाद, साडिया, बरमान, बरगी, त्रिवेणी संगम, महाराजपुर, मंडला, डिंडोरी और फिर अमरकंटक।
नर्मदा तट के तीर्थ
वैसे तो नर्मदा के तट पर बहुत सारे तीर्थ स्थित है लेकिन यहां कुछ प्रमुख तीर्थों की लिस्ट। अमरकंटक, मंडला (राजा सहस्रबाहु ने यही नर्मदा को रोका था), भेड़ा-घाट, होशंगाबाद (यहां प्राचीन नर्मदापुर नगर था), नेमावर, ॐकारेश्वर, मंडलेश्वर, महेश्वर, शुक्लेश्वर, बावन गजा, शूलपाणी, गरुड़ेश्वर, शुक्रतीर्थ, अंकतेश्वर, कर्नाली, चांदोद, शुकेश्वर, व्यासतीर्थ, अनसूयामाई तप स्थल, कंजेठा शकुंतला पुत्र भरत स्थल, सीनोर, अंगारेश्वर, धायड़ी कुंड और अंत में भृगु-कच्छ अथवा भृगु-तीर्थ (भडूच) और विमलेश्वर महादेव तीर्थ।
क्यों करना चाहिए नर्मदा परिक्रमा
रहस्य और रोमांच से भरी यह यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। पुराणों में इस नदी पर एक अलग ही रेवाखंड नाम से विस्तार में उल्लेख मिलता है। हिन्दू धर्म में परिक्रमा का बड़ा महत्त्व है। परिक्रमा से अभिप्राय है कि सामान्य स्थान या किसी व्यक्ति के चारों ओर उसकी बाहिनी तरफ से घूमना। इसको ‘प्रदक्षिणा करना’ भी कहते हैं, जो षोडशोपचार पूजा का एक अंग है। नर्मदा परिक्रमा या यात्रा एक धार्मिक यात्रा है। जिसने भी नर्मदा या गंगा में से किसी एक की परिक्रमा पूरी कर ली उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा काम कर लिया।
उसने मरने से पहले वह सब कुछ जान लिया, जो वह यात्रा नहीं करके जिंदगी में कभी नहीं जान पाता। नर्मदा की परिक्रमा का ही ज्यादा महत्व रहा है। नर्मदाजी की प्रदक्षिणा यात्रा में एक ओर जहां रहस्य, रोमांच और खतरे हैं वहीं अनुभवों का भंडार भी है। इस यात्रा के बाद आपकी जिंदगी बदल जाएगी। कुछ लोग कहते हैं कि यदि अच्छे से नर्मदाजी की परिक्रमा की जाए तो नर्मदाजी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और 13 दिनों में पूर्ण होती है, परंतु कुछ लोग इसे 108 दिनों में भी पूरी करते हैं। परिक्रमावासी लगभग 1,312 किलोमीटर के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए परिक्रमा करते हैं। श्रीनर्मदा प्रदक्षिणा की जानकारी हेतु तीर्थस्थलों पर कई पुस्तिकाएं मिलती हैं।
नर्मदाजी वैराग्य की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप है। गंगाजी ज्ञान की, यमुनाजी भक्ति की, ब्रह्मपुत्रा तेज की, गोदावरी ऐश्वर्य की, कृष्णा कामना की और सरस्वतीजी विवेक के प्रतिष्ठान के लिए संसार में आई हैं। सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है व श्रद्धा से पूजन करता है। मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है। यही महत्व जीवन को स्वार्थ, परमार्थ से जोडता है। प्रकृति और मानव का गहरा संबंध है। यह नदी विश्व की पहली ऐसी नदी है जो अन्य नदियों की अपेक्षा विपरीत दिशा में बहती है।
कैसे करे मां नर्मदा परिक्रमा
तीर्थ यात्रा के लिए शास्त्रीय निर्देश यह है कि उसे पद यात्रा के रूप में ही किया जाए। यह परंपरा कई जगह निभती दिखाई देती है। पहले धर्म परायण व्यक्ति छोटी-बड़ी मंडलियां बनाकर तीर्थ यात्रा पर निकलते थे। यात्रा के मार्ग और पड़ाव निश्चित थे। मार्ग में जो गांव, बस्तियां, झोंपड़े नगले पुरबे आदि मिलते थे, उनमें रुकते, ठहरते, किसी उपयुक्त स्थान पर रात्रि विश्राम करते थे। जहां रुकना वहां धर्म चर्चा करना-लोगों को कथा सुनाना, यह क्रम प्रातः से सायंकाल तक चलता था। रात्रि पड़ाव में भी कथा कीर्तन, सत्संग का क्रम बनता था। अक्सर यह यात्राएं नवंबर माह के मध्य में प्रारंभ होती है।
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परिक्रमावासियों के सामान्य नियम (Maa Narmada Parikrama)
1. प्रतिदिन नर्मदाजी में स्नान करें। जलपान भी रेवा जल का ही करें।
2. प्रदक्षिणा में दान ग्रहण न करें। श्रद्धापूर्वक कोई भेजन करावे तो कर लें क्योंकि आतिथ्य सत्कार का अंगीकार करना तीर्थयात्री का धर्म है। त्यागी, विरक्त संत तो भोजन ही नहीं करते भिक्षा करते हैं जो अमृत सदृश्य मानी जाती है।
3. व्यर्थ वाद-विवाद, पराई निदा, चुगली न करें। वाणी का संयम बनाए रखें। सदा सत्यवादी रहें।
4. कायिक तप भी सदा अपनाए रहें- देव, द्विज, गुरु, प्राज्ञ पूजनं, शौच, मार्जनाम्। ब्रह्मचर्य, अहिसा च शरीर तप उच्यते।।
5. मनः प्रसादः सौम्य त्वं मौनमात्म विनिग्रह। भव संशुद्धिरित्येतत् मानस तप उच्यते।। (गीता 17वां अध्याय) श्रीमद्वगवतगीता का त्रिविध तप आजीवन मानव मात्र को ग्रहण करना चाहिए। एतदर्थ परिक्रमा वासियों को प्रतिदिन गीता, रामायणादि का पाठ भी करते रहना उचित है।
6. परिक्रमा आरंभ् करने के पूर्व नर्मदाजी में संकल्प करें। माई की कडाही याने हलुआ जैसा प्रसाद बनाकर कन्याओं, साधु तथा अतिथि अभ्यागतों को यथाशक्ति भोजन करावे।
7. दक्षिण तट की प्रदक्षिणा नर्मदा तट से 5 मील से अधिक दूर और उत्तर तट की प्रदक्षिणा साढ़े सात मील से अधिक दूर से नहीं करना चाहिए।
8. कहीं भी नर्मदा जी को पार न करें। जहां नर्मदा जी में टापू हो गए वहां भी न जावें, किन्तु जो सहायक नदियां हैं, नर्मजा जी में आकर मिलती हैं, उन्हें भी पार करना आवश्यक हो तो केवल एक बार ही पार करें।
9. चतुर्मास में परिक्रमा न करें। देवशयनी आषाढ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक सभी गृहस्थ चतुर्मास मानते हैं। मासत्मासे वैपक्षः की बात को लेकर चार पक्षों का सन्यासी यति प्रायः करते हैं। नर्मदा प्रदक्षिणा वासी विजयादशी तक दशहरा पर्यन्त तीन मास का भी कर लेते हैं। उस समय मैया की कढाई यथाशक्ति करें। कोई-कोई प्रारम्भ् में भी करके प्रसन्न रहते हैं।
10. बहुत सामग्री साथ लेकर न चलें। थोडे हल्के बर्तन तथा थाली कटोरी आदि रखें। सीधा सामान भी एक दो बार पाने योग्य साथ रख लें।
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