Jila Asptal Betul : जिंदगी की उम्मीद में जिला अस्पताल आने वालों को मौत के मुंह में पहुंचाने वालों को कौन देता है अभयदान..?

Jila Asptal Betul

▪️ उत्तम मालवीय, बैतूल

Jila Asptal Betul : जिले के सबसे बड़े और सर्व सुविधायुक्त स्वास्थ्य संस्थान जिला अस्पताल बैतूल (District Hospital Betul) में कल एक और जान मौत के मुंह में समा गई। जिले के दूरदराज और ग्रामीण अंचल के लोग इस आस के साथ यहां आते हैं कि यहां डॉक्टर से लेकर सारी सुविधा और संसाधन उपलब्ध हैं। इसलिए वे और उनके परिजन पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे, उनका बाल भी बांका नहीं होगा। लेकिन, यहां होता इसके उल्टा है। जिला अस्पताल खुद इतना बीमार है कि यहां सुरक्षित प्रसव तक नहीं हो पा रहे हैं। दूसरी ओर यहां पदस्थ भारी भरकम वेतन लेने वाले चिकित्सकों के हाल यह है कि वे बगैर रिश्वत लिए मरीज को देख तक नहीं रहे हैं, भले ही मरीज की जान क्यों न चली जाएं।

खैर, जिला अस्पताल में मरीज की जान जाना कोई नई बात नहीं रह गई है। यहां पहले भी कई जान जा चुकी है। हम आज चर्चा इस बात की करेंगे कि डॉक्टरों के हौसले इस कदर आखिर बढ़े क्यों हैं? इसकी सीधी सी वजह है कि वे कितना भी बड़ा जुर्म कर लें, उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती। जिला अस्पताल में इस तरह इलाज में लापरवाही से मौत के पहले भी कई मामले सामने आ चुके हैं। मौत के तुरंत बाद खूब हंगामा भी मचता है। शिकायत भी होती है। शिकायत के बाद जांच की रस्म अदायगी भी होती है। लेकिन, उसके बाद नतीजा जीरो बटे सन्नाटा ही रहता आया है। अभी तक हो चुके दर्जनों मामलों में आज तक किसी पर एफआईआर, बर्खास्त करना तो दूर किसी का निलंबन तक नहीं हुआ।

Jila Asptal Betul

दूसरी ओर अन्य विभागों में छोटी-छोटी गलती पर कर्मचारी और अधिकारी न केवल तत्काल निलंबित कर दिए जाते हैं बल्कि कई बार बर्खास्त तक कर दिए जाते हैं। अब यदि लापरवाह डॉक्टरों पर इस कदर मेहरबानी होगी तो उनके हौसले तो बुलंद होंगे ही। वे ना केवल खुलेआम रिश्वत मांगेंगे बल्कि ऐसी जानलेवा लापरवाही भी करेंगे ही। सवाल उठता है कि आखिर कौन बचाता है उन्हें? क्यों नहीं होती किसी की जान पर बन आने वाली लापरवाही करने वालों को? यदि सड़क हादसे में भी किसी की जान चली जाती है तो ड्राइवर पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज होता है। फिर यहां जानबूझकर किसी को मौत के मुंह में पहुंचाने वालों को साफ-साफ अभयदान आखिर कैसे मिल जाता है। पूर्व में कई मामले तो ऐसे भी आए हैं कि बेहद मामूली बीमारी के इलाज के लिए आए व्यक्ति तक की जान यहां नहीं बच पाई।

बड़ा अफसोस होता है यह देख और सुनकर कि ऐसे मामले होने पर अस्पताल के जिम्मेदार पूरी गलती मरीज के परिजनों पर ही थोपने की कोशिश करते हैं कि उन्होंने मरीज को लाने में देरी कर दी। जब जिम्मेदारों का यह रवैया रहता हो तो फिर यह कैसे संभव है कि जांच करने वाले उन्हीं के मातहत किसी डॉक्टर को जांच में दोषी ठहरा देंगे। यही कारण है कि हर बार डॉक्टर को क्लीन चिट मिल जाती है और उन्हें साफ बचा लिया जाता है। दूसरी ओर प्रशासनिक अधिकारियों का रवैया भी केवल चलताऊ होता है।

अब तो प्रशासन ने जिला अस्पताल का निरीक्षण कर व्यवस्थाओं की टोह लेना पूरी तरह बंद ही कर दिया है। ऐसा कोई मामला होता है और परिजन शिकायत करते हैं तो केवल आक्रोश शांत करने भर को जांच बिठा दी जाती है। उसके बाद क्या होता है, किसी को कोई लेना देना नहीं। बेहतर यह होता कि ऐसे मामलों की जांच में किसी जानकार प्रशासनिक अधिकारी को भी शामिल किया जाता और जांच पूरी ईमानदारी से कराई जाती। शुद्ध विभागीय लोगों से ईमानदार जांच की उम्मीद कैसे की का सकती है। आज जो जांच कर रहे हैं, कल में उनकी जांच भी तो हो सकती है।

इस मामले में सबसे लापरवाह रवैया तो हमारे जनप्रतिनिधियों का है। उन्हें न अस्पताल की व्यवस्थाओं से कोई लेना-देना है और न ही ऐसा कोई मामला होने पर ही उनका कोई ध्यान जाता है। ऐसे मामलों में जांच के बाद इसके निष्कर्ष को लेकर जवाब तलब करने की तो फिर उनसे कोई उम्मीद ही नहीं की जा सकती। कई जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी और अस्पताल के जिम्मेदार कई बार यह कहते भी नजर आते हैं कि वैसे ही डॉक्टर कम हैं, इन्हें भी निलंबित कर देंगे तो काम किससे लेंगे।

इस बारे में हमारा साफ कहना यह है कि डॉक्टर कम हैं तो किसी को किसी की जान लेने का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता। हर डॉक्टर को भरपूर वेतन और सुविधा सरकार दे रही है फिर अस्पताल में आने वालों से इलाज के लिए रिश्वत की मांग क्यों? यदि वे वेतन पूरे अधिकार से ले रहे हैं तो अपनी ड्यूटी भी ईमानदारी से करें। यदि उनकी लापरवाही से किसी की जान जाती है तो उन पर नियमानुसार कार्रवाई भी हो। जब तक कार्रवाई का खौफ नहीं होगा तब तक जिला अस्पताल की व्यवस्थाओं में भी सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती। वैसे भी एक-दो डॉक्टर निलंबित भी हो जाए तो कोई जिला अस्पताल में ताला ही नहीं लटकाना पड़ेगा।

उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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