▪️ पंडित मधुसूदन जोशी, भैंसदेही (बैतूल)
Dakshina Ka Mahatva : हम देखते ही रहते हैं कि किसी भी शुभ कार्यों में दक्षिण देना अनिवार्य होता है। अमीर हो या गरीब, सभी अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देते ही हैं। लेकिन, इस बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी होगी कि दक्षिणा क्या होती है और इसे देने की वजह क्या है। आज के इस लेख में हम इसी बारे में विस्तार से जानेंगे।
देवी ‘दक्षिणा’ महालक्ष्मी जी के दाहिने कन्धे (अंश) से प्रकट हुई हैं। इसलिए दक्षिणा कहलाती हैं। ये कमला (लक्ष्मी) की कलावतार व भगवान विष्णु की शक्ति स्वरूपा हैं। दक्षिणा को शुभा, शुद्धिदा, शुद्धिरूपा व सुशीला नामों से भी जाना जाता है। ये उपासक को सभी यज्ञों, सत्कर्मों का फल प्रदान करती हैं।
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श्रीकृष्ण और दक्षिणा का सम्बन्ध (Dakshina Ka Mahatva)
गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण को अत्यन्त प्रिय सुशीला नाम की एक गोपी थी जो विद्या, रूप, गुण व आचार में लक्ष्मी के समान थी। वह श्रीराधा की प्रधान सखी थी। भगवान श्रीकृष्ण का उससे विशेष स्नेह था।
श्री राधा जी को यह बात पसन्द न थी और उन्होंने भगवान की लीला को समझे बिना ही सुशीला को गोलोक से बाहर कर दिया। गोलोक से च्युत हो जाने पर सुशीला कठिन तप करने लगी और उस कठिन तप के प्रभाव से वे विष्णुप्रिया महालक्ष्मी के शरीर में प्रवेश कर गयीं।
भगवान की लीला से देवताओं को यज्ञ का फल मिलना बंद हो गया। घबराए हुए सभी देवता ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु का ध्यान किया। भगवान विष्णु ने अपनी प्रिया महालक्ष्मी के विग्रह से एक अलौकिक देवी ‘मर्त्यलक्ष्मी’ को प्रकट कर उसको ‘दक्षिणा’ नाम दिया और ब्रह्माजी को सौंप दिया।
यज्ञ पुरुष, दक्षिणा और फल (Dakshina Ka Mahatva)
ब्रह्माजी ने यज्ञ पुरुष के साथ दक्षिणा का विवाह कर दिया। देवी दक्षिणा के ‘फल’ नाम का पुत्र हुआ। इस प्रकार भगवान यज्ञ अपनी पत्नी दक्षिणा व पुत्र फल से सम्पन्न होने पर कर्मों का फल प्रदान करने लगे। इससे देवताओं को यज्ञ का फल मिलने लगा।
इसीलिए शास्त्रों में दक्षिणा के बिना यज्ञ करने का निषेध है। दक्षिणा की कृपा के बिना प्राणियों के सभी कर्म निष्फल हो जाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश व अन्य देवता भी दक्षिणाहीन कर्मों का फल देने में असमर्थ रहते हैं।
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दक्षिणाहीन कर्म हो जाता है निष्फल (Dakshina Ka Mahatva)
बिना दक्षिणा के किया गया सत्कर्म राजा बलि के पेट में चला जाता है। पूर्वकाल में राजा बलि ने तीन पग भूमि के रूप में त्रिलोकी का अपना राज्य जब भगवान वामन को दान कर दिया तब भगवान वामन ने बलि के भोजन (आहार) के लिए दक्षिणाहीन कर्म उसे अर्पण कर दिया। श्रद्धाहीन व्यक्तियों द्वारा श्राद्ध में दी गयी वस्तु को भी बलि भोजन रूप में ग्रहण करते हैं।
कर्म की समाप्ति पर तुरन्त देनी चाहिए दक्षिणा (Dakshina Ka Mahatva)
मनुष्य को सत्कर्म करने के बाद तुरन्त दक्षिणा देनी चाहिए तभी कर्म का तत्काल फल प्राप्त होता। यदि जानबूझकर या अज्ञान से धार्मिक कार्य समाप्त हो जाने पर ब्राह्मण को दक्षिणा नहीं दी जाती, तो दक्षिणा की संख्या बढ़ती जाती है। साथ ही सारा कर्म भी निष्फल हो जाता है।
संकल्प की हुई दक्षिणा न देने से (ब्राह्मण के अधिकार का धन रखने से) मनुष्य रोगी व दरिद्र हो जाता है व उससे लक्ष्मी, देवता व पितर तीनों ही रुष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में दक्षिणा के बहुत ही अनूठे उदाहरण देखने को मिलते हैं।
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