kheti : भीषण गर्मी में भी देना है पशुओं को हरा चारा तो उगाएं चारा चुकंदर

kheti : भीषण गर्मी के दिनों में पालतु पशुओं के लिए हरा चारा उपलब्ध नहीं हो पाना एक आम समस्या है। इसके चलते पशुओं की सेहत पर तो असर पड़ता ही है, दुधारू पशु दूध भी कम देते हैं। इससे पशु पालकों की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होती है। ऐसे में आप यदि चाहते हैं कि भीषण गर्मी में भी हरा चारा उपलब्ध होता रहे तो इसके लिए चारा चुकंदर सबसे बेहतर विकल्प है।

kheti : भीषण गर्मी में भी देना है पशुओं को हरा चारा तो उगाएं चारा चुकंदर

kheti : भीषण गर्मी के दिनों में पालतु पशुओं के लिए हरा चारा उपलब्ध नहीं हो पाना एक आम समस्या है। इसके चलते पशुओं की सेहत पर तो असर पड़ता ही है, दुधारू पशु दूध भी कम देते हैं। इससे पशु पालकों की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होती है। ऐसे में आप यदि चाहते हैं कि भीषण गर्मी में भी हरा चारा उपलब्ध होता रहे तो इसके लिए चारा चुकंदर सबसे बेहतर विकल्प है।

इस समस्या का महत्वपूर्ण समाधान प्रदान करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान जोधपुर, राजस्थान नई चारा फसल अर्थात चारा चुकंदर (बीटा वल्गरिस)लेकर आया है।

यह एक ऐसा पौधा है जो औसतन 5 से 6 किलोग्राम वजन के कंद पैदा करता है। 4 महीने के समय में 200 टन प्रति हेक्टेयर हरे बायोमास का उत्पादन करने की क्षमता रखने वाली इस फसल को पानी और मिट्टी की खराब गुणवत्ता के साथ बहुत लाभदायक तरीके से उगाया जा सकता है।

इन महीनों में उपलब्ध होता चारा

चारे के तौर पर यह फसल जनवरी से अप्रैल के बीच उपलब्ध रहती है, जब अन्य चारे की फसलों की अल्प उपलब्धता होती है। उत्पादित बायोमास के प्रति किलोग्राम 50 पैसे से कम उत्पादन की लागत के साथ फसल में प्रति एम3 पानी 28-32 किलोग्राम ग्रीन बायोमास की जल उपयोग दक्षता बहुत अधिक है। थारपारकर मवेशियों पर आहार परीक्षण से दूध की पैदावार में 8 से 10 फीसद सुधार दिखा है।

इन प्रदेशों में भी अपना रहे किसान

यह फसल अब राजस्थान के अलावा अन्य कृषि जलवायु क्षेत्रों में भी उगाई जा रही है। मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, केरल और उत्तर प्रदेश के किसानों ने भी इस चारा चुकंदर फसल के बारे में सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।

अक्टूबर से नवंबर का समय बेस्ट

इसके उच्च उत्पादन के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है, लेकिन इसे नमक प्रभावित मिट्टी पर भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। बुवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर के मध्य से नवंबर के मध्य तक है। फसल को एक बेहतर बीज क्यारी की आवश्यकता होती है और इसे मेड़ पर लगाया जाना चाहिए।

इस पद्धति से होती इसकी खेती

इसके लिए 3 से 4 हफ्ते पहले खेत की जुताई करनी चाहिए। इसके बाद क्रॉस हैरोइंग और प्लेंकिंग (पाटा फेरना) के साथ मिट्टी की जुताई और बुवाई करनी चाहिए। पहले 70 सेमी की दूरी पर बाँध के साथ 20 सेमी ऊँचाई की मेड़ तैयार की जानी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 1,00,000 पौधों की अनुकूलतम आबादी के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 2.0 से 2.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

बीजों को पौधों के बीच 2 से 4 सेमी की गहराई और 20 सेमी की दूरी पर मेड़ के एक तरफ आधा बोना चाहिए। जोमोन, मोनरो, जेके कुबेर और जेरोनिमो महत्त्वपूर्ण किस्में हैं। चूँकि, कई किस्में बहु-जीवाणु हैं, यानी एक बीज 3 से 4 अंकुर पैदा करता है; इसलिए 25 से 30 दिनों के बाद पतले होने की जरूरत होती है।

बुवाई के तुरंत बाद करें सिंचाई

बुवाई के तुरंत बाद खेत की सिंचाई करें। बाढ़ सिंचाई के मामले में गड्ढे का पानी मेंड़ या अतिप्रवाह की ऊँचाई के दो तिहाई (2/3) से अधिक नहीं जाना चाहिए। लगभग 25 टन कृषि क्षेत्र की खाद/हेक्टेयर+100 किलोग्राम नाईट्रोजन/हेक्टेयर+75 किलोग्राम पी2ओ5/हेक्टेयर की सिफारिश की जाती है। यदि कृषि क्षेत्र की खाद उपलब्ध नहीं है तो उर्वरक नाईट्रोजन की खुराक को 150 किलोग्राम/हेक्टेयर तक बढ़ाया जाना चाहिए।

तीन बार करें नाइट्रोजन का प्रयोग

नाइट्रोजन को तीन भागों अर्थात बुवाई के समय आधा और बुआई के 30 और 50 दिन बाद एक चौथाई में लागू किया जाना चाहिए। इसे लगभग 80-100 सेमी सिंचाई के पानी के साथ 10-12 छिड़काव वाले सिंचाई की आवश्यकता होती है।

पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद लागू करनी चाहिए, अगर पपड़ी गिरती है तो बुवाई के 4 दिन बाद हल्की सिंचाई देनी चाहिए।

बाद में नवंबर के दौरान 10 दिनों, दिसंबर से फरवरी के दौरान 13 से 15 दिनों और मार्च से अप्रैल के दौरान 7 से 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई दी जानी चाहिए। इसे खारे और क्षारीय पानी के साथ भी लाभप्रद तरीके से उगाया जा सकता है।

हाथों द्वारा निराई व छँटाई के साथ इसके ऊपर मिट्टी चढ़ाने का कार्य करना चाहिए। जरूरत पड़ने पर 15 दिन बाद दूसरी निराई की जानी चाहिए।

किसी बड़ी बीमारी और कीट की सूचना नहीं है। हालाँकि मिट्टी में पैदा होने वाले कीड़ों को नियंत्रित करने के लिए बुवाई से पहले क्विनालफॉस पाउडर (1.5 प्रतिशत) को 25 किग्रा/हेक्टेयर की दर से लगाएँ।

हर रोज उखाड़ सकते हैं फसल को

आमतौर पर जड़ से उखाड़ने की शुरुआत तब की जा सकती है जब जड़ें लगभग 1.0 से 1.5 किलोग्राम वजन (मध्य जनवरी के दौरान) का न्यूनतम वजन प्राप्त करती हैं। इस हिसाब से किसान अपने मवेशियों के लिए जरूरी आहार के अनुसार हर रोज फसल उखाड़ सकते हैं। चूँकि जड़ें 60 प्रतिशत मिट्टी के बाहर रहती हैं; वे खींचकर हाथों से काटा जा सकता है। पशुओं को चारा भी खिलाया जाना चाहिए।

इस तरह तैयार कर सकते हैं चारा

फसल की जड़ों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर सूखे चारे में मिलाया जा सकता है। गायों और भैंसों के लिए खुराकें प्रतिदिन 12 से 20 किलो/पशु और छोटे जुगाली करने वालों के लिए प्रतिदिन 4 से 6 किलो/पशु होती है। प्रगतिशील वृद्धि के साथ छोटी मात्रा में खिलाना शुरू करें ताकि सामान्य भोजन राशि 10 दिनों तक पहुँच सके।

यह पशु की कुल शुष्क पदार्थ आवश्यकता का 60 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। अधिक खिलाने से पशु में अम्लता हो सकती है। तीन दिन से अधिक पुराना काटा हुआ चारा न खिलाएँ। अभ्यासों और प्रचलित परिस्थितियों के अनुशंसित पैकेज के साथ 150 से 200 टन/हेक्टेयर के हरे चारे की उपज (जड़+पत्ते) प्राप्त की जा सकती है।

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उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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