IAS Success Story : पढ़ी-लिखी नहीं थी मां, पूरे परिवार के खिलाफ गई, लोन भी लिया और बेटी को बना दिया IAS अधिकारी, पूरे देश में आई थी 62वीं रैंक

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IAS Success Story : पढ़ी-लिखी नहीं थी मां, पूरे परिवार के खिलाफ गई, लोन भी लिया और बेटी को बना दिया IAS अधिकारी, पूरे देश में आई थी 62वीं रैंक

IAS Success Story : मां अपने बच्चों का भविष्य बनाने के लिए किसी भी हद से गुजर जाती है। वह चाहे पढ़ी-लिखी ना हो लेकिन अपने बच्चों को हमेशा शिक्षित करना चाहती है। आज हम आपको साधारण परिवार से आने वाली अनुराधा पाल के आईएएस बनने की कहानी के बारे में बता रहे हैं। उनकी मां जोकि पढ़ी-लिखी नहीं है। इसके बावजूद उन्होंने परिवार और समाज के खिलाफ जाकर बेटी को पढ़ाया और अनुराधा भी पूरे देश में 62वीं रैंक हासिल कर आईएएस अधिकारी बनी। (IAS Success Story)

अनुराधा पाल (IAS Anuradha Pal) जोकि हरिद्वार के एक बहुत ही सामान्य परिवार की है। उनके पिता 5वीं पास है और माता बिल्कुल ही अनपढ़ है। पिता दूध बेचकर परिवार का भरण पोषण करते थे और मां ग्रहणी है।

अनुराधा शुरू से ही पढ़ाई में बहुत होशियार थी। उनके इस गुण को देखकर उनकी मां भी बहुत खुश होती थी। वह हमेशा ही अपनी बेटी का पक्ष लेती थी। जब अनुराधा 5वी कक्षा पास हुई तो उन्होंने जवाहर नवोदय का फॉर्म भरवा दिया। अनुराधा इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई, तो परिवार उसको बाहर पढ़ाई के लिए भेजना नहीं चाहते थे।

मां बेटी को पढ़ाने की बात पर डटी रही और उन्होंने यह तक भी कह दिया “यदि इस घर में रहकर मेरी बेटी को नहीं पढ़ा जाएगा तो वह घर को छोड़ देगी” इसके बाद अनुराधा को बाहर पढ़ाई के लिए भेज दिया गया। उनकी 12वीं तक की पढ़ाई तो जवाहर नवोदय विद्यालय में ही हुई। फिर अनुराधा आईआईटी रुड़की (IIT Roorkee) में दाखिला लेने गई, लेकिन उनके पास इसके लिए पैसे नहीं थे। फिर उनकी मां ने लोन लिया और अनुराधा का आईआईटी में नामांकन करवाया।

IAS Success Story : पढ़ी-लिखी नहीं थी मां, पूरे परिवार के खिलाफ गई, लोन भी लिया और बेटी को बना दिया IAS अधिकारी, पूरे देश में आई थी 62वीं रैंक

अनुराधा के मन में इच्छा थी कि वह यूपीएससी की परीक्षा देंं, इसीलिए तैयारी करने वह दिल्ली चली गई। उन्‍हें अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के बारे में पता था, इसीलिए उन्होंने दिल्ली में ट्यूशन भी ली। अपनी पढ़ाई का खर्च उन्होंने ट्यूशन से ही निकाल लिया। फिर वहां यूपीएससी की तैयारी पूरी लगन के साथ करने लगी।

IAS Success Story : पढ़ी-लिखी नहीं थी मां, पूरे परिवार के खिलाफ गई, लोन भी लिया और बेटी को बना दिया IAS अधिकारी, पूरे देश में आई थी 62वीं रैंक

पहले प्रयास में ही हो गई सफल

बता दें कि वर्ष 2012 में अनुराधा ने पहले ही प्रयास में यूपीएससी क्लियर कर लिया था, उन्‍हें पूरे देश में 451वीं रैंक हुई थी और उन्हें आईआरएस का पद भी मिला था। उन्होंने 2 साल तक इस पद की नौकरी की, लेकिन उन्हें संतुष्टि नहीं मिली और उन्होंने फिर से यूपीएससी की तैयारी शुरू की और 2015 में परीक्षा दी। 2015 के परिणाम में वह पूरे देश में 62वीं रैंक के साथ सफल हुई और उन्हें IAS पद मिल भी गया। आईएएस बनकर अनुराधा ने साबित कर दिया कि यदि बेटियों अवसर मिले तो वह भी शिखर को छू सकती है।

आईएएस अनुराधा ने बताई सारी कहानी 

अनुराधा अपनी कामयाबी का श्रेय अपनी माता को देती है। वह कहती है कि मां ने मेरे लिये बहुत ही संघर्ष किया और बलिदान दिया है। आज अनुराधा के इस सफलता से उनका पूरा परिवार और पुरा गांव गर्व महसूस कर रहा है। (IAS Success Story)

IAS Success Story : पढ़ी-लिखी नहीं थी मां, पूरे परिवार के खिलाफ गई, लोन भी लिया और बेटी को बना दिया IAS अधिकारी, पूरे देश में आई थी 62वीं रैंक

बागेश्‍वर की है डीएम 

इस समय अनुराधा बागेश्वर की डीएम हैं।  हाल ही में उन्होंने एक जनता दरबार लगाया उसमें जनता की शिकायतें सुनी गईं।  इस दौरान 29 शिकायत मिलीं। साथ ही उन्होंने सभी समस्याओं को एक हफ्ते में निपटाने का निर्देश दिया साथ ही यह भी कहा कि जो शिकायतें इस बार आई हैं वह अगली बार न आएं। एक शिकायत में किसानों को मुआवजा नहीं मिलने की आई इस पर डीएम ने नाराजगी जताते हुए पीएमजीएसवाई बागेश्वर के अधिशासी अभियंता की सैलरी रोकने का आदेश दिया।

उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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