♦ लोकेश वर्मा, बैतूल
Holi Aur Fag Geet : आधुनिक समय में फाग गीतों की परंपरा नगरों में भले ही विलुप्त हो गई हो, मगर ग्रामीण अंचलों में फागुन मास आते ही जगह-जगह फाग गीतों की गूंज आनंदित कर देती है। फागुन मास में रात होते ही गीतों का दौर चालू हो जाता है।
देवी देवताओं पर आधारित भजन, फाग गीतों के माध्यम से बुजुर्ग बच्चे व युवा एक साथ बैठकर आनंद लेते हैं। नगर में भले ही फाग गाने वाले व ढोलक की थाप सुनने के लिए लोगों के कान तरस गए हो मगर ग्रामीण अंचल में अभी भी धुरेंडी पर्व के दिन फाग गाने वाली टोलियां घर-घर घूम कर फाग गाती है।
पांच दिवसीय रंगों का त्यौहार रात्रि में होलिका दहन होने के बाद से ही शुरू हो गया है। सोमवार सुबह से ही रंग खेलने का दौर शुरू होगा। बच्चों से लेकर युवा व बुजुर्ग वर्ग के लोग भी अपने तरीके से होली मनाएंगे ग्रामीण अंचल में भी होली पर्व को लेकर उत्साह देखा जा रहा है।
बाजारों में दिन भर रही चहल-पहल (Holi Aur Fag Geet)
जिला मुख्यालय में रविवार को त्यौहारी बाजार में काफी चहल-पहल रही। आम दिनों के मुकाबले दुकानें निर्धारित समय से पहले ही खुल गई थीं। शहर के अलावा आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में लोगों ने रंग गुलाल, पिचकारी, मुखौटे, किराना एवं अन्य जरुरत की सामग्री खरीदी।
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बदल गया होली का मतलब (Holi Aur Fag Geet)
होली का लोगों का बेसब्री से इंतजार रहता है। रंग गुलाल के बीच मस्ती हो या फिर परम्पराओं का निर्वहन। लोग साल दर साल से जमकर होली मनाते आ रहे हैं। इस पर्व का मकसद कुरीतियों व बुराइयों का दहन कर आपसी भाईचारा को कायम रखना है। कभी होली पर्व का अपना अलग महत्व था।
पहले फूलों की पत्तियों से रंग बनाए जाते थे। हफ्तों पहले से लोग रंग बनाने में लग जाते थे। होलिका दहन पर पूरे परिवार के लोग एक साथ मौजूद रहते थे और होली के दिन एक-दूसरे को रंग लगा व अबीर उड़ा पर्व मनाते थे। लोगों की टोली भांग की मस्ती में फगुआ गीत गाते व नाचते घूम-घूम कर घर-घर जाकर होली का प्रेम बांटते थे। लेकिन अब परंपराओं पर आधुनिकता हावी हो गया है।
पहले और अब, होली में जमीन आसमान का अंतर आ गया है। होली का मतलब अश्लीलता, फूहड़पन व नशापान तक सिमट कर रह गया है। लोग होली के बहाने आपसी दुश्मनी साधने में लगे हैं।
हालत यह है कि होलिका दहन लोगों के डाइनिंग रूम में सिमट गया है और 40 फीसदी आबादी होली के दिन खुद को कमरे में बंद कर लेती है और सोशल मीडिया के माध्यम से बधाई देने का दौर चलता है। जाहिर है होली के मायने बदल गए है।
यहां जमती है फाग की महफिल (Holi Aur Fag Geet)
जिला मुख्यालय के समीपी ग्राम मलकापुर में शिवरात्रि के बाद से ही रात होते ही फाग की महफिल जमती है। ढोलक की थाप और मंजीरे की झंकार दूर-दूर तक सुनाई देती है। होली के दिन युवाओं की टोली फाग गीत गाते जब गांव में निकलती है तो हर कोई घर से निकल कर झूमने के लिए विवश हो जाता है।
ग्राम के बुजुर्गों के साथ ही युवा एवं बच्चों ने आधुनिक युग में भी होली मनाने की वर्षों से चली आ रही फाग गीत गाने की परंपरा विलुप्त होने से बचा कर रखा है।
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तीसरी पीढ़ी के युवा भी समर्पित (Holi Aur Fag Geet)
होली के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों को फाग कहा जाता है। इन गीतों के माध्यम से होली खेलने, प्रकृति की सुंदरता, राधाकृष्ण और सीताराम के प्रेम के साथ ही हंसी ठिठोली का वर्णन होता है। मंडली के लोकेश वर्मा ने बताया की मलकापुर में फागुन में फाग गाने की पुरानी परंपरा है। जिसे अब तीसरी पीढ़ी निभा रही है।
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लिंबाजी बाबा भजन मंडली के मुख्य गायक है गिरधारीलाल महतो के सानिध्य में बुजुर्ग, युवा एवं बच्चे फाग गाकर होली का आनंद लेते हैं। वे बताते हैं, पुराने समय में जब दिन भर खेतों में मेहनत करके शाम को थके हारे घर आते थे तो रात्रि में फाग की महफिल की मस्ती पूरी थकान दूर कर तरोताजा कर देती थी।
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मंडली के निक्की महतो, नीरज वर्मा, श्रीकांत वर्मा, प्रीत वर्मा, पप्पू मालवी की ढोलक की थाप और प्रेमकांत वर्मा, लतेश वर्मा, अर्पित वर्मा, मुन्नालाल विश्वकर्मा के मंजीरो की झंकार तथा अखिल वर्मा की जोशीली आवाज हर किसी को झूमने पर मजबूर कर देती है।
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फाग मंडली में लल्ला चौधरी, दीपक वर्मा, राजू मालवी, बनवारी हजारे, मनीष परिहार, पुनीत मालवी, आयुष मालवी आदि स्वर दोहराते हैं। इनके साथ-साथ मंडली में नन्हे वंश चौधरी, शिवाय महतो, तनु वर्मा, डब्बू महतो, अनीक महतो मंजीरे बजाने में निपुण हो गए हैं।
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