इस नई तकनीक से कम बीज में होगा हल्दी का बंपर उत्पादन, लागत कम और मुनाफा ज्यादा

अगर आप खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं, तो हल्दी की खेती एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। हल्दी की मांग हमेशा बनी रहती है क्योंकि यह हर घर में इस्तेमाल होती है। इसके अलावा, आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दवाओं में भी हल्दी का खूब इस्तेमाल होता है। तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर द्वारा विकसित एक नई तकनीक से हल्दी की खेती की लागत कम होती है और उत्पादन बढ़ता है। इस विधि से पारंपरिक तरीके की तुलना में 60% तक कम बीज की आवश्यकता होती है।

नई तकनीक क्या है?

पारंपरिक तरीके में प्रति एकड़ 10 क्विंटल बीज की जरूरत होती है, लेकिन इस नई तकनीक से केवल 3-4 क्विंटल बीज ही काफी होते हैं, जिससे लगभग ₹30,000-₹40,000 की बचत होती है। सबसे पहले स्वस्थ और रोगमुक्त हल्दी के बीजों का चयन करें और इन्हें एक-एक अंकुर (Single Bud) में काट लें। इसके बाद, इन्हें 0.25% इंडोफिल M-45 घोल में 30 मिनट के लिए डुबोकर उपचारित करें, जिससे स्वस्थ पौधे उग सकें।

इस तकनीक में हल्दी की पौध पहले प्रो ट्रे (Pro Tray) में तैयार की जाती है। इसके लिए कोकोपीट, वर्मीकुलाइट और परलाइट को 3:1:1 के अनुपात में मिलाकर प्रो ट्रे के हर खाने में भरें। फिर, हल्दी का टुकड़ा इसमें डालकर हल्की मिट्टी से ढक दें। ट्रे को सात दिन तक पॉलीथीन शीट से ढककर रखें। फिर 50% छायादार जगह में रखकर पहले पत्ते निकलने पर 0.5% ह्यूमिक एसिड का छिड़काव करें। 30-35 दिन में पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

हल्दी की रोपाई से होगा ज्यादा उत्पादन

हल्दी अप्रैल से अगस्त के बीच बोई जाती है। जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा नहीं होती, वहां मानसून की शुरुआत में (जुलाई) इसकी बुआई की जाती है। अच्छी जल निकासी वाले खेतों में अगस्त के मध्य तक रोपाई संभव है। रोपाई के लिए 15 सेमी ऊंची, 1 मीटर चौड़ी और 3-4 मीटर लंबी बेड बनाएं। पंक्तियों के बीच 30 सेमी और पौधों के बीच 20 सेमी का अंतर रखें। पौधों को 5 सेमी गहरी नालियों में लगाएं और ड्रिप इरिगेशन अपनाएं, जिससे पानी की बचत होगी। इस तकनीक से हल्दी की फसल 6-8 महीनों में तैयार हो जाती है।

नई तकनीक के फायदे

  • बीज की आवश्यकता 60% कम होती है, जिससे लागत घटती है।
  • छाया में पौधे रखने से नमी बनी रहती है और सिंचाई की जरूरत कम होती है।
  • पारंपरिक विधि की तुलना में उत्पादन 15-20% ज्यादा होता है।
  • प्रति एकड़ खेती की लागत ₹30,000-₹40,000 तक कम हो जाती है।
  • स्वस्थ और रोगमुक्त पौधे तैयार होते हैं, जो बाजार में अच्छे दाम पर बिकते हैं।

हल्दी का वैश्विक बाजार

हल्दी स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है, जिससे इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। वैश्विक स्तर पर हल्दी का कारोबार करीब $304 मिलियन का है, जिसमें भारत का 60% से अधिक हिस्सा (लगभग $190 मिलियन) है। दुनिया भर में हर साल लगभग 11 लाख टन हल्दी का उत्पादन होता है। 2019-20 में भारत के कुल मसाला निर्यात में हल्दी की हिस्सेदारी 11% थी। ऐसे में इस नई तकनीक को अपनाकर किसान अपनी लागत घटाकर ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।

उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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