Gudi Padwa 2024: छत्रपति शिवाजी ने मनाया था पहली बार गुड़ी पड़वा पर्व, आज ही की थी ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना

Gudi Padwa 2024: Chhatrapati Shivaji celebrated Gudi Padwa festival for the first time, today Brahma ji had created the universe.

▪️ लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल)

Gudi Padwa 2024: हमारे देश में सभी त्योहारों का अपना अलग महत्व है। जहां एक तरफ होली-दीपावली मुख्य त्योहारों के रूप में पूरे देश में समान रूप से मनाए जाते हैं वहीं कुछ ऐसे भी त्योहार हैं जो भारत के कुछ ही क्षेत्रों में बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक है गुड़ी पड़वा।

ऐसी मान्यता है कि मुगलों से युद्ध करने के बाद जब मराठों के राजा छत्रपति शिवाजी की जीत हुई थी तब शिवाजी ने पहली बार गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया था। तभी से महाराष्ट्र में सभी लोग इस त्योहार को बड़े ही उत्साह से मनाते है।

गुड़ी पड़वा मुख्य रूप से चैत्र महीने की नवरात्रि तिथि की प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार नववर्ष की शुरुआत भी इसी दिन होती है। इस साल गुड़ी पड़वा 9 अप्रैल, मंगलवार के दिन मनाया जा रहा है और इसी दिन से चैत्र नवरात्रि का आरम्भ भी हो गया है।

गुड़ी पड़वा का महत्व (Gudi Padwa 2024)

गुड़ी का अर्थ है ध्वज यानी झंडा, वहीं मराठी में प्रतिपदा तिथि को पड़वा कहा जाता है। इसलिए इस पर्व को गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चैत्र माह की प्रतिपदा पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसलिए यह तिथि विशेष महत्व रखती है।

गुड़ी पड़वा का इतिहास

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने गुड़ी पड़वा के दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया और दिनों, हफ्तों, महीनों और वर्षों की शुरुआत की। कुछ लोग इसे वह दिन भी मानते हैं जब राजा शालिवाहन ने अपनी जीत का जश्न मनाया था और लोगों ने उनके पैठन लौटने पर झंडा फहराया था। मूलतः गुड़ी को बुराई पर विजय का प्रतीक कहा जाता है।

चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत

हिंदू पंचांग के अनुसार 9 अप्रैल, मंगलवार से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। हिंदू धर्म में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान से पहले कलश स्थापना की जाती है। नवरात्रि में दुर्गा की घटस्थापना या कलश स्थापना के बाद देवी मां की चौकी स्थापित की जाती है तथा 9 दिनों तक इन देवियों का पूजन-अर्चन किया जाता है। कलश को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है।

मां दुर्गा की पूजा करने से पहले कलश की पूजा की जाती है।

घोड़े पर सवार होकर आईं मातारानी (Gudi Padwa 2024)

नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। सालभर में कुल 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि का महत्व काफी ज्यादा होता है। माना जाता है कि नवरात्रि में माता की पूजा-अर्चना करने से देवी दुर्गा की खास कृपा होती है। मां दुर्गा की सवारी वैसे तो शेर है लेकिन जब वह धरती पर आती हैं तो उनकी सवारी बदल जाती है और इस बार की नवरात्रि में मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर धरती पर आई हैं।

शुभ मुहूर्त

  • चैत्र नवरात्रि मंगलवार, 9 अप्रैल 2024
  • घटस्थापना मुहूर्त- सुबह 6 बजकर 02 मिनट से सुबह 10 बजकर 16 मिनट तक
  • अवधि- 4 घंटे 14 मिनट्स
  • घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11 बजकर 57 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक

गुड़ी पड़वा से जुड़ी दिलचस्प बातें (Gudi Padwa 2024)

1-नव संवत्सर के राजा

09 अप्रैल 2024 से हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2081 की शुरूआत हो रही है। इस नव वर्ष के प्रथम दिन के स्वामी को पूरे वर्ष का स्वामी माना जाता है। हिंदू नववर्ष की शुरुआत मंगलवार से आरंभ हो रही है इस कारण से नए विक्रम संवत के स्वामी मंगलदेव होंगे।

2-सृष्टि के निर्माण का दिन

धार्मिक मान्यता के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना का कार्य आरंभ किया था और सतयुग की शुरुआत इसी दिन से हुई थी। यही कारण है कि इसे सृष्टि का प्रथम दिन या युगादि तिथि भी कहते हैं। इस दिन नवरात्रि घटस्थापन, ध्वजारोहण, संवत्सर का पूजन इत्यादि किया जाता है।

3-वानरराज बाली पर विजय

रामायण काल में जब भगवान राम की मुलाकात सुग्रीव से हुई तो उन्होंने श्री राम को बाली के अत्याचारों से अवगत कराया। तब भगवान राम ने बाली का वध कर वहां के लोगों को उसके कुशासन से मुक्ति दिलाई। मान्यता है कि यह दिन चैत्र प्रतिपदा का था। इसलिए इस दिन गुड़ी या विजय पताका फहराई जाती है।

4-शालिवाहन शक संवत

एक ऐतिहासिक कथा के अनुसार शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिए और इस सेना की मदद से दुश्मनों को पराजित किया। इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक संवत का प्रारंभ भी माना जाता है।

5-हिंदू पंचांग की रचना का काल

प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री ने अपने अनुसन्धान के फलस्वरूप सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए हिंदू पंचांग की रचना की थी। इस दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर विक्रम संवत का प्रवर्तन किया था। इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था, इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।

6-भगवान राम लौटे थे अयोध्या

धर्म शास्त्रों की मान्यताओं के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन ही भगवान राम ने रावण का वध करके माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने राज्य अयोध्या लौटे थे।

7-पहली बार छत्रपति शिवाजी ने मनाया था यह पर्व

ऐसी मान्यता है कि मुगलों से युद्ध करने के बाद जब मराठों के राजा छत्रपति शिवाजी की जीत हुई थी तब शिवाजी ने पहली बार गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया था। तभी से महाराष्ट्र में सभी लोग इस त्योहार को बड़े ही उत्साह और जोश के साथ मनाते आ रहे हैं।

8-फसल की पूजा करने का महत्व

गुड़ी पड़वा पर मराठियों के लिए नया हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। इस दिन लोग फसलों की पूजा आदि भी करते हैं।

9-नीम के पत्ते खाने की परंपरा

ऐसी परंपरा है कि गुड़ी पड़वा पर लोग नीम के पत्ते खाते हैं। मान्यता है कि गुड़ी पड़वा पर नीम की पत्तियों का सेवन करने से खून साफ होता है और रोगों से मुक्ति मिलती है।

10- सूर्यदेव की पूजा का महत्व

गुड़ी पड़वा पर सूर्यदेव की विशेष पूजा आराधना की जा जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग गुड़ी पड़वा पर सूर्यदेव की उपासना करते हैं उन्हे आरोग्य, अच्छी सेहत और सुख-समृद्धि मिलती है।

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