अमेरिका के न्याय विभाग (DOJ) ने गूगल के खिलाफ अपना रुख और सख्त कर लिया है। DOJ ने अदालत से मांग की है कि गूगल को अपनी वेब ब्राउज़र सेवा Chrome को बेचना पड़ेगा ताकि इंटरनेट की दुनिया में गूगल के बढ़ते एकाधिकार (Monopoly) को रोका जा सके। DOJ का यह कदम पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन की उस नीति का हिस्सा है जिसके तहत बड़ी टेक कंपनियों पर लगाम लगाने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन का क्या रुख होगा।
DOJ का गूगल के खिलाफ क्या तर्क है?
अमेरिकी सरकार का कहना है कि गूगल ने इंटरनेट और सर्च इंजन की दुनिया में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए कई अनुचित तरीके अपनाए हैं। DOJ का आरोप है कि गूगल अन्य कंपनियों को अरबों डॉलर का भुगतान करता है ताकि स्मार्टफोन और लैपटॉप के वेब ब्राउज़र में Google Search को डिफॉल्ट सर्च इंजन के रूप में सेट किया जा सके।
DOJ का दावा है कि अमेरिका में गूगल 70% से अधिक सर्च रिजल्ट्स पर नियंत्रण रखता है। गूगल की इस रणनीति के कारण छोटे सर्च इंजन कंपनियों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया गया है। DOJ का कहना है कि गूगल इतना ताकतवर हो चुका है कि अब प्रतिस्पर्धी कंपनियों के लिए गूगल को हराना नामुमकिन हो गया है।
गूगल की मोनोपॉली कैसे खत्म होगी?
DOJ ने गूगल के बढ़ते एकाधिकार को कम करने के लिए अदालत से कहा है कि गूगल को अपनी Chrome वेब ब्राउज़र सेवा को बेचना पड़ेगा। इसके अलावा, गूगल को एप्पल, मोजिला और अन्य कंपनियों के साथ सर्च इंजन से संबंधित पार्टनरशिप को समाप्त करना होगा। DOJ का यह भी कहना है कि अन्य कंपनियों को गूगल के सर्च रिजल्ट और डेटा तक पहुंच दी जानी चाहिए ताकि प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिल सके।
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गूगल का जवाब
गूगल ने DOJ के इन मांगों का कड़ा विरोध किया है। गूगल का कहना है कि वह कुछ हद तक अपने समझौतों में बदलाव करने के लिए तैयार है, लेकिन DOJ की मांगें अमेरिकी उपभोक्ताओं, अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं।
गूगल के खिलाफ इस मोनोपॉली केस की सुनवाई अप्रैल में होनी है। गूगल ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि अगर अदालत का फैसला उसके खिलाफ आता है, तो वह उच्च न्यायालय में अपील करेगा।