Elephant Grass : भारत में पशुओं के लिए कई तरह के चारे (घास) उपलब्ध है। लेकिन आपको बता दें कि नेपियर घास पशुओं के लिए बेहतर चारा है। नेपियर घास की खास बात जानकर आप चौक जाएंगे। यह घास पशुओं के लिए बहुत ही गुणकारी होती है। इस घास के सेवन से पशुओं में दूध उत्पादन बढ़ने के साथ उनके बेहतर स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। किसान को इसे अपने खेत में लगाने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत की जरूरत नहीं होती है और इसकी सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसे एक बार लगाने के बाद हरे चारे के लिए किसान को परेशान नहीं होना होगा।
यह एक बार लगाने के बाद लगातार 10 साल तक बढ़ता रहता है। इस घास हाथी घास इसलिए कहा जाता है अगर इसको काटा नहीं जाए तो यह लगभग 10 से 15 फुट तक लंबा बढ़ सकता है।
नेपियर की व्यावसायिक खेती (Elephant Grass)
नेपियर के तेज विकास के लिए गर्मियों की धूप और हल्की बारिश का संयोग बेहतरीन है। सर्दियों में इसकी वृद्धि कुछ धीमी रहती है। नेपियर की बुआई ज्यादातर जून-जुलाई में करते हैं। सिंचाई की सुविधा हो तो जड़-युक्त तनों की रोपाई फरवरी से जुलाई के बीच भी हो सकती है। बारिश के दिनों में बुआई करने से सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती। अन्य मौसम में बुआई के बाद 20-25 दिनों तक हल्की सिंचाई करनी चाहिए। जल भराव वाले खेत नेपियर के लिए अच्छे नहीं रहते।
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गन्ने की तरह होती है खेती (Elephant Grass)
नेपियर घास की खेती के लिए गहरी जुताई करके खेत के खरपतवार को ख़त्म कर लेना चाहिए। इसे तने को काटकर उसे बोते हैं, क्योंकि इसमें बीज नहीं बनता। नेपियर घास में प्रोटीन, वसा, फायबर, इत्यादि की मात्रा भरपूर पाई जाती है। यह पशुओं के लिए बहुत ही गुणकारी है। शुरुआत में गन्ने की खेती की तरह इस के तने की बुआई करते है। हाथी घास लगाते समय लगभग दो पौधों के बीच 50 सेंटीमीटर का फासला होना चाहिए।। ऐसा करने से घास की अच्छी पैदावार होती है। व्यावसायिक स्तर पर यदि नेपियर घास की खेती करनी हो तो प्रति हेक्टेयर में इसके 20 हज़ार तने की जरूरत पड़ेगी।
नेपियर घास की कटाई के समय करीब 6 इंच का पेड़ जमीन में ही गड़ा हुआ छोड़ना चाहिए। प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई ज़रूरी है। बुआई और हरेक कटाई के बाद निंदाई-गुड़ाई करके खरपतवार को हटाते रहने से फसल की बढ़वार अच्छी होती है। नेपियर घास को डेढ़ मीटर ऊंचा होने पर काट लेना चाहिए, क्योंकि इससे बड़े पौधों के तने सख्त तथा ज्यादा रेशेदार होने लगे हैं और पशुओं का कम पसंद आते हैं।
नेपियर घास की उम्दा किस्में (Elephant Grass)
पूसा जायंट, NB-21, CO-1, CO-3, IGFRI-3, IGFRI-6, IGFRI-7, IGFRI-10, यशवन्त, स्वातिका, गजराज, संकर-1, संकर-2 और शक्ति आदि हैं। इनकी सालाना पैदावार 90 से लेकर 300 टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। उत्पादन की मात्रा इस बात पर सबसे ज़्यादा निर्भर करेगी की नेपियर घास की खेती को कितने व्यावसायिक तरीके से किया जाता है। NB-21 को बहुत तेज़ी से बढ़ने वाली और स्वातिका को पाला रोधी किस्म बताया जाता है।
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जानवरों में बढ़ती है दूध उत्पादन की क्षमता (Elephant Grass)
इस घास को कम पानी में भी उगाया जा सकता है। इसलिए यह किसान के लिए बहुत ही फायदेमंद है। दुधारू पशु को नेपियर घास देने के बाद ज्यादा मात्रा में खाल या कड़ी देने की आवश्यकता नहीं होती है। वह अगर नेपियर घास लगातार उसे खिलाते हैं तो उसे पशु में दूध उत्पादन भी बढ़ता है। एक बार लगाने के बाद यह घास 10 साल तक लगातार अपने पशुओं को दिया जा सकता है। राजस्थान के किसानों को अभी ज्यादा जानकारी नहीं होने की वजह से चुनिंदा किसान ही इस घास की खेती कर रहे हैं।
ऐसे दूध उत्पादकों को नेपियर घास की खेती ज़रूर करनी चाहिए, जिनके पास खेती की ज़मीन कम है और जो अपनी गृहस्थी की ज्यादातर चीजें बाजार से ख़रीदते हैं। क्योंकि कम ज़मीन होने की वजह से उनकी अनाज और फल-सब्ज़ी की ज़रूरतें तो पूरी नहीं होती, लेकिन उनके मवेशियों के लिए पर्याप्त हरा चारा ज़रूर पैदा हो सकता है। क्योंकि करीब आधा बीघा खेत में नेपियर घास की खेती करके 4-5 पशुओं को पूरे साल हरा चारा उपलब्ध कराया जा सकता है। यदि किसान नेपियर घास की खेती अपनी ज़रूरत से ज़्यादा रक़बे में करे तो इससे नगदी फ़सल वाली कमाई भी हो सकती है। भूमिहीन दूध उत्पादक किसान भी कम उपजाऊ खेत को किराए पर लेकर वहां नेपियर घास उगा सकते हैं। ये उनकी आमदनी बढ़ाने में बहुत मददगार साबित होगा।