Cultivation Of White Butter Gourd : बहुत महंगा बिकता है सफेद करेला, आप भी खेती कर कमा सकते है करोड़ो रूपये, जानें पूरी प्रोसेस…

Cultivation Of White Butter Gourd : देश में कुछ ऐसी सब्जियां है जो कम लागत में करोड़ों का मुनाफा दे सकती है। वैसे भी कम लागत और बंपर मुनाफे के चलते किसान अब सब्जियों की खेती की तरफ अपना रुख करने लगे हैं। सफेद करेला भी एक महत्वपूर्ण सब्जी फसल है, जो सोने के भाव में बिक रही है।

हालांकि करेला कड़वा जरूर होता है, लेकिन इसमें अच्छे औषधीय गुण के साथ विटामिन और खनिज पदार्थ भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यह फसल भारत में सबसे ज्यादा पैमाने पर की जाती है। आइए जानते है करेले की खेती किस प्रकार कर सकते है।

 सफेद करेले की उपजाऊ किस्म (Cultivation Of White Butter Gourd)

सफेद करेले की उन्नत किस्म एवं व्हॅरायटी “ईश्वेद 452” पर मार्गदर्शन किया गया है। भारत में लाखों किसानों द्वारा इस सफेद करेला बीज का प्रयोग अपने खेतों में किया जा रहा है। “ईश्वेद 452” सफेद करेला बीज से कई किसानों ने अच्छी पैदावार प्राप्त की है।

ये हैं बुवाई का सही समय (Cultivation Of White Butter Gourd)

इस फसल के लिए गर्मी के मौसम की फसल के लिए जनवरी से मार्च तक इसकी बुवाई की जाती है, मैदानी इलाकों में बारिश के मौसम की फसल के लिए इसकी बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है, और पहाड़ियों में मार्च से जून तक बीज बोया जाता है।

इस बीज को डिब्बिंग विधि से 120×90 के फासले पर बोया जाता है, आमतौर पर 3-4 बीजों को 2.5-3.0 सेमी गहराई पर गड्ढे में बोया जाता है। बेहतर अंकुरण के लिए बुवाई से पहले बीजों को रात भर पानी में भिगोया जाता है। बता दें कि बीजों को 25-50 पीपीएम और 25 बोरान के घोल में 24 घंटे तक भिगोकर रखने से बीजों का अंकुरण बढ़ जाता है। फ्लैटबेड लेआउट में बीजों को 1 मीटर x 1 मीटर की दूरी पर डाला जाता है।

खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी (Cultivation Of White Butter Gourd)

सफेद करेला की खेती के लिए अच्छी जल निकासी और 6.5-7.5 पीएच रेंज के साथ कार्बनिक पदार्थों से भरपूर बलुई दोमट मिट्टी होनी चाहिए। इस फसल को मध्यम गर्म तापमान की आवश्यकता होती है। करेले के उत्पादन के लिए नदी के किनारे जलोढ़ मिट्टी भी अच्छी होती है।

जरूरी खाद एंव उर्वरक

  • करेले की फसल में उर्वरकों की मात्रा, किस्म, मिट्टी की उर्वरता, जलवायु और रोपण के मौसम पर निर्भर करती है।
  • आमतौर पर अच्छी तरह से विघटित एफवाईएम 15-20 टन/हेक्टेयर के हिसाब के अनुसार इसको जुताई के दौरान मिट्टी में मिलाया जाता है।
  • प्रति हेक्टेयर उर्वरक की अनुशंसित मात्रा 50-100 किग्रा नाइट्रोजन, 40-60 किग्रा फास्फोरस पेंटोक्साइड और 30-60 किग्रा 25 पोटेशियम ऑक्साइड है।
  • रोपण से पहले आधा नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम डालना चाहिए।
  • इसके बाद नाइट्रोजन फूल आने के समय दिया जाता है।
  • उर्वरक को तने के आधार से 6-7 सेमी की दूरी पर एक छल्ले में लगाया जाता है।
  • फल लगने से ठीक पहले सभी उर्वरक अनुप्रयोगों को पूरा करना बेहतर होता है।

सिंचाई के साथ ऐसे करें निराई और गुड़ाई

  • इस फसल की सिंचाई के लिए आपको सबसे पहले बीजों को डुबाने से पहले और उसके बाद सप्ताह में एक बार घाटियों में सिंचाई की जाती है।
  • फसल की सिंचाई वर्ष आधारित होती है।
  • फसल में में निकले खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए 2-3 बार निराई-गुड़ाई करनी पड़ती है।
  • सामान्यत: पहली निराई बुवाई के 30 दिन बाद की जाती है।
  • बाद की निराई मासिक अंतराल पर की जाती है।

सफेद करेले तोड़ने का सही समय

करेले की फसल को बीज बोने से लेकर पहली फसल आने में लगभग 55-60 दिन लगते हैं। आगे की तुड़ाई 2-3 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए, क्योंकि करेले के फल बहुत जल्दी पक जाते हैं और लाल हो जाते हैं। खासतौर पर करेले को तब तोड़ा जाता है जब फल हरे होते हैं, ताकि परिवहन के दौरान फल पीले या नारंगी न हो जाएं।

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उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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