गांधी जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2 अक्टूबर 2014 को शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता की अलख जगाने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई थी। जिसके तहत प्रत्येक जनपद पंचायत में स्वच्छता अभियान के लिए ब्लॉक समन्वयक नियुक्त किये गए। इसके साथ ही ग्राम पंचायतों में स्वच्छता के लिए जागरूक करने स्वच्छता प्रेरकों की नियुक्ति भी की गई। वर्ष 2014 से हर साल स्वच्छता के नाम पर लाखों रुपए खर्च किये जा रहे हैं, लेकिन इसका नतीजा सिफर दिखाई दे रहा है।
प्रत्येक ग्राम स्वच्छ और साफ-सुथरा रहे, इसके लिए करोड़ों रूपये खर्च कर दिए गए, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के हालात नहीं सुधर पाए। आमला ब्लॉक के गांवों की तस्वीर आज भी उसी तरह है जैसी पहले थी। जाहिर है कि सारा काम केवल कागजों पर हो रहा है।
स्वच्छता अभियान का एक नमूना आमला विकासखण्ड की ग्राम पंचायत तिरमहू में भी दिखाई पड़ रहा है। इस पंचायत में स्वच्छता अभियान का जैसे मख़ौल ही उड़ रहा है। इस ग्राम पंचायत में जगह-जगह कूड़े-कचरे के ढेर दिखाई पड़ रहे हैं। वहीं शौचालय भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। ग्राम के जागरूक नागरिक बताते हैं कि ग्राम में शौचालयों का निर्माण तो किया गया था, लेकिन यह शौचालय एक वर्ष भी नहीं टिक सके। किसी के दरवाजे टूटने लगे तो किसी की सीमेंट झड़ने लगी।
एक वर्ष में ही शौचालय की स्थिति खस्ताहाल होने लगी थी। जिसके कारण ग्रामीणों को पुनः शौच के लिए खुले में जाना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर शुरू में ही शौचालय निर्माण में अच्छी क्वालिटी का मटेरियल का उपयोग किया गया होता तो आज यह हालत नहीं होते। ग्रामीणों का साफ कहना है कि जिस तरह से शौचालय बनाए गए उससे तो ऐसा ही लगता है कि केवल नाम के लिए ही बनाए गए थे।