cause of childlessness : तेजी से बढ़ रही यह बीमारी बन सकती है नि:संतानता का कारण

cause of childlessness : यूनिसेफ की एक रिपोर्ट ने मई 2022 में सभी को चौंका कर रख दिया। उस रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में महिलाओं में पीसीओडी की समस्या बढ़ती जा रही है। इसका स्तर इतना बढ़ गया है कि अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इन दो क्षेत्रों में लगभग 9.13 प्रतिशत महिलाएं पीसीओएस और 22 प्रतिशत महिलाएं पीसीओडी से पीड़ित हैं।

आशा आयुर्वेदा की डायरेक्टर और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. चंचल शर्मा बताती हैं कि भारत में जहां लोग पीरियड्स के बारे में आपस में बात भी नहीं करते थे। वहीं अब खुल के स्त्रियों के मेंस्ट्रुअल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं पर बात हो रही है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। यहाँ तक आने में हमें कई दशक लगे हैं।

आजकल बदलती जीवनशैली के कारण लगभग हर घर में कोई न कोई महिला पीसीओडी या पीसीओएस जैसी बीमारी से ग्रसित है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यह रोग किसी एक खास उम्र की महिलाओं को प्रभावित नहीं करता है बल्कि युवावस्था से लेकर 30 के ऊपर की महिलाओं में से किसी को भी हो सकता है।

अभी भी लोगों में इस बीमारी को लेकर जागरूकता और जानकारी का अभाव है। बहुत सी ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें इस बीमारी के लक्षण, कारण और उपचार के बारे में कोई जानकारी नहीं है। सामान्यत: इस रोग से ग्रसित महिलाओं के चेहरे पर बाल, अनियमित पीरियड्स आदि जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं।

क्या है पीसीओडी-पीसीओएस

हार्मोनल असंतुलन के कारण होने वाली इस बीमारी में महिलाओं के अंडाशय (ovary) पर प्रभाव पड़ता है। अक्सर महिलाओं में मेंस्ट्रुअल साइकिल में दोनों ओवरी एक-एक करके फर्टिलाइज्ड एग रेडी करते हैं। लेकिन, जिन महिलाओं को पीसीओडी की समस्या होती है उनका अंडाशय हर बार पीरियड्स साइकिल के दौरान ऐसा अंडा रिलीज करता है जो अभी परिपक्व नहीं हुआ है और फिर वही सिस्ट बन जाता है।

वैश्विक स्तर पर बढ़ रही समस्या (cause of childlessness)

पीसीओडी हार्मोनल असंतुलन से उत्पन्न होने वाली एक समस्या है जो विश्व भर में लगभग 10 प्रतिशत महिलाओं को प्रभावित कर चुका है। कई बार उचित समय पर इसका इलाज न होने पर यह नि:संतानता की वजह भी बन सकता है।

इस बीमारी की शिकार होने वाली महिलाओं में मुख्यत: 20-35 वर्ष की महिलाएं शामिल हैं। इसका उपचार केवल दवाइयों से करना संभव नहीं है आपको अपनी लाइफस्टाइल में परिवर्तन करना होगा तभी यह रोग जड़ से समाप्त हो सकती है.

पीसीओडी से होने वाली परेशानी (cause of childlessness)

इस रोग का बढ़ता दायरा कई महिलाओं के माँ बनने के सपने में रुकावट बन जाता है और ताउम्र निराशा और अवसाद का कारण बन जाता है। महिलाओं के चेहरे और छाती पर अनचाहे बाल आने लगते हैं और पीरियड्स में अनियमितता देखी जाती है। महिलाओं में वजन का बढ़ना, डायबिटीज आदि जैसी गंभीर समस्या भी देखी जा सकती है।

बढ़ती समस्या का कारण क्या है?

भारत जैसे देश में आज भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ अक्सर महिलाएं अपने रिप्रोडक्टिव लाइफ के बारे में खुल के बात नहीं करती हैं। इसलिए अगर ऐसी कोई समस्या उन्हें होती भी है तो वो उससे अनजान होती हैं। धीरे-धीरे जब यह समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है और गर्भधारण में रुकावट उत्पन्न करती है तब उन्हें इसके बारे में पता चलता है।

आजकल लोगों का खानपान का तरीका, जीवन जीने का तरीका इसके पीछे का एक बड़ा कारण है जिसमे लोगों की फिजिकल एक्टिविटी कम होती जा रही है और मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा है ऐसे में हार्मोनल रोगों से ग्रसित मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।

पीसीओडी का यह है उपचार (cause of childlessness)

डॉ. चंचल शर्मा इस रोग के बारे में बताते हुए कहती हैं कि इसका कोई निर्धारित उपचार तो संभव नहीं है, लेकिन अगर कुछ सावधानियां बरते तो इससे खुद को सुरक्षित रख सकती हैं।

जैसे अपने जीवनशैली में बदलाव लाएं, प्राकृतिक रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थों का सेवन करें, प्रोसेस्ड और पैकेज्ड फूड आइटम्स से बचने की कोशिश करें, नियमित योग या व्यायाम करें, और किसी स्वास्थ्यसेवा प्रदाता की मदद से अपनी समस्या की जांच कराएं और उचित दवाओं का सेवन करें। ऐसा करने से आप इस रोग के हानिकारक प्रभावों से बच सकती हैं और भविष्य के जोखिम को कम करके एक बेहतर जीवन जी सकती है।

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उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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