▪️ पंडित मधुसूदन जोशी, भैंसदेही (बैतूल)
Braj Ki Holi 2024: ब्रज मण्डल भारत में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है। लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण की जन्म स्थली और लीला भूमि होने से ब्रज की चौरासी कोस की भूमि अपने दिव्य आध्यात्मिक आलोक से धर्म-प्राणजनों को आत्म विभेार करती है। ब्रज मण्डल में बरसाना कृष्ण स्थली मथुरा से लगभग 44 किलोमीटर की दूरी पर है। बरसाना का प्राचीन नाम बृहत्सान या वृषभानपुर था।
जब भी होली का जिक्र आता है तो ब्रज की होली का नाम सबसे पहले लिया जाता है, क्योंकि होली की मस्ती की शुरुआत इसी ब्रज की पावन धरती से हुई थी। रास रचैया भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का मंचन भी तो यहीं हुआ था।
ब्रज के बरसाना गांव में होली एक अलग तरह से खेली जाती है। जिसे लठमार होली कहते हैं। ब्रज में वैसे भी होली खास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है। यहां की होली में मुख्यत: नंदगाँव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगाँव के थे और राधा बरसाने की थीं।
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लाठियों से बचकर भिगोते हैं रंग से (Braj Ki Holi 2024)
नंदगाँव की टोलियाँ जब पिचकारियाँ लिए बरसाना पहुँचती हैं तो उन पर बरसाने की महिलाएँ खूब लाठियाँ बरसाती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है।
भांग और ठंडाई का होता इंतजाम (Braj Ki Holi 2024)
नंदगाँव और बरसाने के लोगों का विश्वास है कि होली की लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है। अगर चोट लगती भी है तो लोग घाव पर मिट्टी मलकर फिर शुरु हो जाते हैं।
इस दौरान भाँग और ठंडाई का भी ख़ूब इंतजाम होता है। कीर्तन मण्डलियाँ ‘कान्हा बरसाने में आई जइयो बुलाए गई राधा प्यारी’, ‘फाग खेलन आए हैं नटवर नंद किशोर’ और ‘उड़त गुलाल लाल भए बदरा’ जैसे गीत गाती हैं।
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एक दिन पहले लड्डूमार होली (Braj Ki Holi 2024)
कहा जाता है कि ‘सब जग होरी, जा ब्रज होरा’ याने ब्रज की होली सबसे अनूठी होती है। मथुरा में खेली जाने वाली इस लठ्ठ मार होली को देखने के लिये दूर-दूर से देश और विदेशों से लोग आते हैं।
इसके साथ ही मथुरा की खास परंपरा है कि लठ्ठमार होली के एक दिन पहले यहां पर लड्डूमार होली भी होती है। जिसमें लोग एक दूसरे पर लड्डू फेंक कर होली मनाते और नाचते गाते हैं।
राधा जी के जन्मदिन पर मेला (Braj Ki Holi 2024)
बरसाना की होली की विचित्रता देखते ही बनती है। कहा जाता है कि यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों को घेरा था। यहां पर भादों सुदी अष्टमी राधा के जन्म दिवस पर विशाल मेला लगता है। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को होली की लीला होती है।
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अन्य विविध मान्यताएं (Braj Ki Holi 2024)
- जिस समय कंस का अत्याचार बहुत ज्यादा बढ़ गया था, बृषभानु बाबा गोकुल जाकर नंद बाबा को अपने पास बुला लाए। वहां आकर नंदबाबा ने ब्रज की पहाड़ियों पर नंद गांव बसा लिया और जहां तक भी श्री वृषभानु जी का राज्य था, प्रथम तो वहां राक्षस आते नहीं थे और अगर कोई आ जाता था तो श्री जी की कृपा से गोपी भाव में आ जाता था।
- बरसाने की लठ्ठमार होली संपूर्ण जगत में नारी सशक्तिकरण का अनूठा प्रमाण है। नंदगांव बरसाने की यह प्रेम पगी परंपरा आज भी चली आ रही है। स्वयं श्री कृष्ण ठाकुर जी ने बरसाना व अष्ट सखियों के गांवों की गोपियों को इकठ्ठा करके श्री पूर्णमासी प्रोतानि जी की देख रेख में गोपियों का दल बनाया। पूर्णमासी प्रोतानी ने स्वयं गोपियों को लाठी चलाना सिखाया।
- स्वयं श्री ठाकुर जी ने गोपियों को उद्दत करते हुए कहा था कि हे गोपियों हम नंद गांव से आएंगे तुम अगर हमारे ऊपर लाठियों की बौछार कर देती हो तो हम यह मान लेंगे कि हमारी अनुपस्थिति में तुम राक्षसों (कंस के सैनिकों) को मारकर ढेर कर सकती हो। बरसाने की ल_मार होली का मूल उद्देश्य यही है।
- कैसा देश निगोड़ा जग होरी और बृज में होरा, बरसाना की होरी वैसे ही होरा नहीं है। किसी कवि ने कहा है कि फागुन में रसिया घरवारी, ब्रज बरसाना में ग्वाल बाल रसिया नहीं होते हैं। होरी में ब्रज की गोपी ही सही मायने में रसिया होती है।
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