Bhai Dooj: इसलिए मनाया जाता है भाई दूज का त्योहार; यहां पढ़ें इस पर्व का महत्व, तिथि और विधि

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Bhai Dooj: इसलिए मनाया जाता है भाई दूज का त्योहार; यहां पढ़ें इस पर्व का महत्व, तिथि और विधि
Bhai Dooj: इसलिए मनाया जाता है भाई दूज का त्योहार; यहां पढ़ें इस पर्व का महत्व, तिथि और विधि

Bhai Dooj: (बैतूल)। दीपावली का पर्व पंच पर्वों का महापर्व कहलाता है। इसकी शुरूआत धनतेरस से होती है और समापन भाई दूज (Bhai Dooj) पर्व के साथ होता है। देश भर में भाई दूज का पर्व बड़ी आस्था, श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भाई अपनी बहनों के घर पहुंचते हैं और उनसे तिलक करवाने के साथ ही उनके हाथों से बना भोजन ग्रहण करते हैं। इस पर्व का बड़ा महत्व है।

भारत में तिथियों के कारण कई बार त्योहारों को लेकर बड़ा भ्रम रहता है कि किस दिन मनाया जाएं। इसके साथ ही उसके पौराणिक महत्व, विधि को लेकर भी अधिकांश लोगों को पूरी जानकारी नहीं होती है। इस पर्व के बारे में पंडित मधुसूदन जोशी, भैंसदेही ने भाई दूज पर्व को लेकर विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई है। श्री जोशी बताते हैं कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भाई दूज (Bhai Dooj) या यम द्वितीया का पर्व मनाया जाता है। इस दिन यमराज की पूजा करना चाहिए। यमराज पूजन का महत्वपूर्ण मंत्र नीचे दिया गया है।

यम पूजा के लिए मंत्र

धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज।
पाहि मां किंकरै: सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते।।

यमराज को अर्ध्य के लिए मंत्र

एह्योहि मार्तंडज पाशहस्त यमांतकालोकधरामेश।
भ्रातृद्वितीयाकृतदेवपूजां गृहाण चार्घ्यं भगवन्नमोऽस्तु ते॥

इस तरह मनाए भाई दूज पर्व (Bhai Dooj)

पंडित श्री जोशी बताते हैं कि भाईदूज (Bhai Dooj) के दिन बहनों को अपने भाइयों को आसन पर बैठाकर उसकी आरती उतारकर एवं तिलक लगाकर उसे विभिन्न प्रकार के व्यंजन अपने हाथ से बनाकर खिलाना चाहिए। वहीं भाई को अपनी सामर्थ्य अनुसार बहन को द्रव्य (राशि), वस्त्र, स्वर्ण आदि देकर आशीर्वाद लेना चाहिए। इस दिन भाई का अपने घर भोजन न करके बहन के घर भोजन करने से उसे धन, यश, आयुष्य, धर्म, अर्थ एवं सुख की प्राप्ति होती है।

भाई दूज पर्व की पौराणिक कथा (Bhai Dooj)

सूर्यदेव की पत्नी छाया की कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन, यमराज व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को खड़ा देखकर हर्ष-विभोर हो गई। प्रसन्नचित्त हो भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर मांगने को कहा।

तब बहन ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाएं, उसे आपका भय न रहे। यमराज तथास्तु कहकर यमपुरी चले गए। ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं, उन्हें तथा उनकी बहन को यम का भय नहीं रहता।

चित्रगुप्त पूजा की कथा (Bhai Dooj)

भैयादूज के दिन चित्रगुप्त की पूजा के साथ-साथ लेखनी, दवात तथा पुस्तकों की भी पूजा की जाती है। यमराज के आलेखक चित्रगुप्त की पूजा करते समय यह कहा जाता है- लेखनी पट्टिकाहस्तं चित्रगुप्त नमाम्यहम्। वणिक वर्ग के लिए यह नवीन वर्ष का प्रारंभिक दिन कहलाता है। इस दिन नवीन बहियों पर श्री लिखकर कार्य प्रारंभ किया जाता है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को चित्रगुप्त का पूजन लेखनी के रूप में किया जाता है।

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