Betul News: बदल गई खेतों की तस्वीर, बैल और परंपरागत उपकरणों की जगह नजर आती हैं आधुनिक मशीनें

Betul News: The picture of the fields has changed, modern machines are seen in place of bullocks and traditional equipment

Betul News: बदल गई खेतों की तस्वीर, बैल और परंपरागत उपकरणों की जगह नजर आती हैं आधुनिक मशीनें▪️ लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल)

Betul News: मध्यप्रदेश सहित देश के कई गांवों में आज भी किसान पारंपरिक तरीके से ही दो बैलों की जोड़ी और हल के साथ खेतों की जुताई करते हैं। यह परंपरा शायद अंतिम दौर में है। पारंपरिक खेती का यह स्वरूप अब विलुप्त हो रहा है। नई पीढ़ी के किसान अब बैल-हल से खेती नहीं करते। इसकी बजाय वे मशीनों से खेती करते हैं। इसमें काम भले ही जल्द हो जाता है पर पर्यावरण को खासा नुकसान पहुंच रहा है।

परंपरागत खेती में बैलों से जुताई और बैलगाड़ी के जरिये फसलों व अनाज की ढुलाई की जाती थी। खेत से खलिहान तक, खलिहान से घर तक और घर से बाजार तक किसान बैलगाड़ियों से अनाज ढोते थे। आधुनिक युग में परंपरागत किसानी की विरासत, गाय-बैल-किसान की पहचान धुंधली पड़ती जा रही है। हालांकि गांव देहात के कुछ भूमिपुत्र ऐसे अभी भी हैं, जो बैलों की जोड़ियों के गले में बंधी घंटी की खनक के साथ, खेतों में कछुआ गति से कदम ताल करते यदा-कदा नजर आ ही जाते हैं।

मेरे देश की धरती सोना-हीरा-मोती उगले गीत यदि किसी पर सटीक बैठता है तो वह है हरे-भरे खेत में बैलों की जोड़ी, हल के साथ खेत जोतता किसान। इन किसानों को देखकर पता लगाया जा सकता है कि किस तरह हमारे पूर्वज अन्नदाता किसानों ने हल और बैलों की मदद से, अथक परिश्रम कर देश का पेट, मिट्टी में से अनमोल अनाज उगा कर भरा था।

Betul News: बदल गई खेतों की तस्वीर, बैल और परंपरागत उपकरणों की जगह नजर आती हैं आधुनिक मशीनें
बैलों के गले में जब घुंघरू: धान रोपने की तैयारी करने नए हीरा- मोती प्रसन्नता से ले जाती राठीपुर की महिला कृषक। आज भी गांव देहात में कुछ किसान पारंपरिक तरीके से ही दो बैलों की जोड़ी और हल के साथ खेतों की जुताई करते हैं। यह परंपरा शायद अंतिम दौर में है।

खेत जोतने से लेकर कटाई, ढुलाई सब मशीनी

आज के मशीनी दौर में किसानी के उपयोग में आने वाले मददगार उपकरणों की सुलभता ने भी पारंपरिक किसानी को पीछे किया है। बैलों की शक्ति के मुकाबले कई अश्वों की ताकत से लैस, कई हॉर्सपॉवर का शक्तिशाली ट्रैक्टर चंद घंटे में कई एकड़ जमीन जोत सकता है। दैत्याकार मशीनें अब कटाई-ढुलाई भी पल भर में करने में मददगार हैं। प्रतिकूल मौसम में भी मशीनी मदद से समय और श्रम की भी बचत होती है। जहां पहले किसान डोरा चलाकर निंदा और खरपतवार नष्ट कर देता था वही अब इसकी जगह पावर टिलर, रोटावेटर और निंदानाशक दवाई ने ले लिया। बुवाई करने के लिए तीफन यंत्र का प्रयोग होता था। वहीं अब सीड ड्रिल उपयोगी यंत्र हो गया।

खेतों में अब इन मशीनों का दिखता है दबदबा

खेत की जुताई के लिए जहां हल और बक्खर प्रयोग में आते थे उनका स्थान प्लाउ और कल्टीवेटर ने ले लिया। इन मशीनों से खेत में काम करने से मिट्टी की गुणवत्ता में वह सुधार संभव नहीं जो पारंपरिक तरीके की किसानी में निहित है। मशीनों आधारित अधिक गहरी खुदाई से जमीन और खेत की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जीव-जंतुओं को नुकसान होता है। जबकि खेत में बैलों, जानवरों के उपयोग से प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। कहना गलत नहीं होगा कि, तकनीक आधारित ट्रैक्टर के धुएं ने हल-बैल और किसान की परंपरा का गुड़-गोबर कर अतीत की स्मृति को धुंधला दिया है।

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