▪️उत्तम मालवीय, बैतूल
akhadi festival : गुरु पूर्णिमा पर्व पर शहरी क्षेत्रों में गुरुओं का पूजन होता है। यह पर्व गुरुजनों के प्रति अपनी आस्था, श्रद्धा और सम्मान को व्यक्त करने का होता है। अमूमन ग्रामीण अंचलों में भी यह पर्व शिक्षा और स्कूलों के शुभारंभ (school open day) का होता है। गांवों में पहले विधिवत आज से ही पढ़ाई शुरू होती थी। लेकिन, इस पर्व का ग्रामों और ग्रामवासियों के लिए गुरु पूजन से कहीं बढ़ कर महत्व है। इस दिन को नागदेवता का दिन माना जाता है। उनका ही प्रमुखता से पूजन-अर्चन किया जाता है।
ग्रामीण क्षेत्र में गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का पर्व अखाड़ी पर्व (akhadi parva) के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा नाम को सार्थक करते हुए इस दिन स्कूलों में गुरुओं का पूजन किया जाता है। इसके बाद ही पढ़ाई शुरू होती है। इसे पट्टी पूजा (Slate Worship) के रूप में भी जाना जाता है। पहले अखाड़ी पर बच्चे अपने घर से स्लेट लेकर जाते थे। साथ ही नारियल और पूजन सामग्री भी होती थी। स्लेट पर नागदेवता की आकृति बनाई जाती थी। स्कूलों में नागदेवता और गुरुजनों दोनों की ही पूजा की जाती थी।
यह तो हुई केवल शिक्षा-दीक्षा और गुरु पूजन से जुड़ी बातें। अब बात करते हैं ग्रामीणों के लिए अखाड़ी पर्व के व्यापक अर्थ की। इस पर्व को लेकर ग्रामीणों में कई मान्यताएं और परंपराएं हैं। इनका आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में शिद्दत से पालन किया जाता है। आज हम इन्हीं मान्यताओं को लेकर चर्चा करेंगे। वैसे तो शहरी क्षेत्रों में भी अधिकांश लोग यह पर्व गुरु पूजन की जगह नागदेवता के पूजन के रूप में मनाते हैं। लेकिन, नागदेवता का ग्रामों में कहीं महत्व है। इसी के चलते कई मान्यताएं और परपंराएं भी चल पड़ी हैं।
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ग्रामीण इलाकों में लोगों का नागदेवता से सीधा वास्ता पड़ता है। गर्मी, बारिश, ठंड हर मौसम में उन्हें खेतों में काम करना पड़ता है। दूसरी ओर घर भी उतने सुरक्षित नहीं होते हैं। ऐसे में कहीं भी कहीं भी उनका सामना नागदेवता से होते रहता है। यही कारण है कि उन्हें भगवान के रूप में पूजा जाता है। अखाड़ी का यह पर्व सिर्फ उनको ही समर्पित किया जाता है। उनकी पूजा-अर्चना कर उनसे यह प्रार्थना की जाती है कि गलती से भी उनसे (नागदेवता) उन्हें या उनके मवेशियों को कोई नुकसान न पहुंचे।
इस दिन को केवल नागदेवता का ही माने जाने के कारण घरों में रोटी और चावल भी नहीं पकाए जाते हैं। बुजुर्गों के अनुसार जिस तवे पर रोटी बनाई जाती है, उसे नागदेवता का फन माना जाता है। इसी तरह चावल को नागदेवता के दांत माने जाते हैं। मान्यता है कि तवा को गर्म करने से नागदेवता को कष्ट पहुंचेगा। वहीं आज नागदेवता को किसी भी तरह का कष्ट न पहुंचे, इस सोच के साथ न तो आज रोटी बनाई जाती है और न ही चावल पकाए जाते हैं। इस नियम का केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी पालन किया जाता है।
इसी तरह आज का दिन नागदेवता के पूरी तरह विश्राम का दिन माना जाता है। वहीं धरती या जमीन को उनका घर माना जाता है। यही कारण है कि आज किसान खेतों में हल भी नहीं चलाते हैं। हल चलाना तो दूर जमीन में किसी भी तरह की किसी भी कार्य के लिए खुदाई भी नहीं की जाती। माना जाता है कि ऐसा करने से नागदेवता के विश्राम में विघ्र पड़ेगा और उनका कोप झेलना होगा। इतना ही नहीं महिलाओं के बालों को भी नागदेवता का फन का आकार माना जाता है। यही वजह है कि ग्रामीण अंचलों में आज महिलाएं बालों में कंघी तक नहीं करतीं। बुजुर्ग महिलाएं आज भी इस नियम का पालन करती है।