Aghor Sadhna:: अघोर अग्नि साधना: भीषण गर्मी में खुले आसमान तले चारों ओर जल रहे कंडे के बीच बैठकर हो रही कठोर तपस्या

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Aghor Sadhna:: अघोर अग्नि साधना: भीषण गर्मी में खुले आसमान तले चारों ओर जल रहे कंडे के बीच बैठकर हो रही कठोर तपस्या

▪️ मनोहर अग्रवाल, खेड़ी सांवलीगढ़

Aghor Sadhna: योगी, तपस्वी और इस संसार से विरक्त साधु-संतों की कठोर साधना से ही इस पृथ्वी का संतुलन बना हुआ है। वे अपनी कठोर साधना से अपने शरीर को ऐसा तपाते हैं जैसे एक कुम्हार अपने मटके को अग्नि में समर्पित कर उपयोग के योग्य बनाता है। आए दिन हमें कठोर साधना के ऐसे-ऐसे उदाहरण देखने और सुनने को मिलते हैं, जिन पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है। ऐसी ही एक कठोर साधना इन दिनों गुजरात में चल रही है। यह साधना कर रहे हैं बैतूल और हरदा जिले की सीमा से लगे कालीभीत मकड़ई के घनघोर जंगल में ब्रम्हलीन संत श्री घनश्याम दास उदासी के प्रिय शिष्य पंकज मुनि।

इस भीषण गर्मी में कोई यह भी नहीं चाहेगा कि वह घर से बाहर निकले। इस मौसम में सभी यही चाहते हैं कि एसी की ठंडक न सही मगर कूलर की ठंडी हवा उन्हें जरूर मिलती रहे। इसके उलट क्या आप यकीन करेंगे कि इस चिलचिलाती धूप में कोई अपने आसपास गोबर के कंडे का घेरा बनाकर और उन्हें जलाकर खुले आसमान तले लगातार 11 दिनों की साधना कर सकता है। आप शायद यकीन न करें, लेकिन गुजरात के कच्छ क्षेत्र के भचाऊ गांव में हनुमान मंदिर के सामने पंकज मुनि यही अग्नि साधना कर रहे हैं। यह घनघोर साधना कर एक महान तपस्वी होने के लिए उन्होंने अपने शरीर की परवाह नहीं की और अपने गुरु के द्वारा बताई गई योग विद्या में वे निपुण हो गए।

Aghor Sadhna:: अघोर अग्नि साधना: भीषण गर्मी में खुले आसमान तले चारों ओर जल रहे कंडे के बीच बैठकर हो रही कठोर तपस्या

वे भचाऊ गांव में हनुमान मंदिर के सामने आपसी भाईचारे और शांति के लिए ग्यारह दिनी यह अग्नि साधना कर रहे हैं। इस साधना से गांव में शांति का वातावरण रहता है। अघोर अग्नि साधना जहाँ भी होती है वहां पर महामारी नहीं आती। इसमें साधक अपने चारों ओर गोबर के कंडे का घेरा बनाकर उन्हें आग में जलाकर अग्नि का घेरा बनाते हैं और बीच में बैठकर अग्नि साधना करते हैं।

तेज गर्मी में खुले आसमान के नीचे कंडे जलाकर अग्नि साधना करने के बावजूद साधक को जरा भी कष्ट नहीं होता। पंकज मुनि सर्दी के दिनों में जल साधना एवं वायु साधना करते हैं। कुछ सालों पूर्व इन्होंने राजस्थान के मालवाड़ा के कोटड़ा में 108 दिन तक निराहार और बिना मूत्र विसर्जन किये एक ही स्थान पर बैठकर साधना की थी। वे बदन पर सिर्फ टाट का फट्टा लपेटे रहते हैं। (Aghor Sadhna)

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