Bhakti : संत प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि अक्सर ऐसा होता है कि आप खूब भक्ति करते हैं, खूब भजन करते हैं, लेकिन आपको हमेशा कुछ न कुछ कमी महसूस होती रहती है। देखा जाएं तो वास्तव में ऐसी कोई कमी रहती नहीं है, बल्कि इस कमी का अनुभव स्वयं प्रभु करवाते हैं। अगर आपको इस कमी का अनुभव न रहे तो आपको अहंकार हो जाएगा। आपको अहंकार न हो, इसीलिए प्रभु ऐसा करते हैं।
प्रेमानंद जी महाराज आगे कहते हैं कि भगवान की उन पर बड़ी कृपा है जिन्हें अहंकार नहीं अपनी साधना का। इसलिए सब कुछ भूलकर उनके हो जाओ, भरोसे में हो जाओ और खूब नाम जपो। अगर भगवत मार्ग पर चलते हैं तो मुझे चिंता नहीं, सब अपने आप आ जाएगा। ब्रहम बोध आ जाएगा, ज्ञान आ जाएगा। सब हो जाएगा।
कर्ता नहीं समर्पण सर्वश्रेष्ठ
उन्होंने कर्म और समर्पण की तुलना सीढ़ी और लिफ्ट के सफर से करते हुए कहा कि करता रहोगे तो बहुत समय लगेगा। समर्पित हो जाओगे तो सब हो जाएगा। सीढ़ी से चलोगे तो थक जाओगे। लिफ्ट में बैठोंगे तो फ्लोर पर पहुंच जाओगे। लिफ्ट है तो चढ़ना नहीं है। केवल बटन दबाना है। आठवां फ्लोर की। वह सीधे आठवें फ्लोर पर खुलेगा। श्यामाश्याम का निकुंज फ्लोर।
नाम जप शुरू तो हम लिफ्ट में
महाराज आगे कहते हैं कि गुरूचरणों का आश्रय ले लिया, प्रभु के भरोसे हो गए और नाम जप शुरू तो मानो हम लिफ्ट में। लिफ्ट में यात्रा समझ नहीं आती। शुरू में थोड़ा झटका लगता है और खुलने पर थोड़ा झटका लगता है।
बीच में नंबर की तरफ न देखों तो ऐसा लगता ही नहीं है कि हम चल रहे। ऐसा ही परमार्थ है। यदि बीच में देखों तो ऐसा लगता है कि हमारा कुछ बढ़ ही नहीं रहा। लेकिन आपका फ्लोर क्रॉस होता चल रहा है।
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