▪️ लोकेश वर्मा, नर्मदापुरम से
Narmada Jayanti Festival 2023 : मध्यप्रदेश में जीवनदायिनी मां नर्मदा का दो दिवसीय नर्मदा जयंती महोत्सव शुक्रवार 27 जनवरी से शुरू हो गया है। प्रात: आवाहन चरण में भजन के साथ पूजन हुआ। नर्मदा जयंती के लिए नर्मदापुरम को आकर्षक अंदाज में सजाया गया है। जगह-जगह तोरण गेट बनाए गए हैं। सेठानी घाट को दुल्हन की तरह सजाया गया है। सेठानी घाट रंग-बिरंगी लाइटों से जगमगा उठा है।
सेठानी घाट भारत में मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम में नर्मदा नदी के किनारे 19वीं सदी का निर्माण है। यह भारत के सबसे बड़े घाटों में से एक है। नर्मदा जयंती समारोह के दौरान घाट उस समय जीवंत हो जाता है जब हजारों लोग घाटों पर जुटे होते हैं। इस घाट का निर्माण होशंगाबाद के शर्मा परिवार की जानकीबाई सेठानी द्वारा नदी तक पहुंचाने में हो रही कठिनाई के बारे में श्रद्धालुओं द्वारा की गई शिकायत के बाद किया गया था। इसलिए इस घाट का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
नर्मदा के किनारे बसे नर्मदापुरम में 100 से ज्यादा मंदिर एवं सात मुख्य घाट हैं। जगदीश मंदिर से पर्यटन घाट तक का 2000 मीटर क्षेत्र में सुबह शाम मंदिरों में आरतियां और घंटियों से प्रफुल्लित हो उठता है। नर्मदा माई के प्रति अटूट श्रद्धा, भक्ति और समर्पण के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष माघ शुक्ल सप्तमी को नर्मदापुरम में नर्मदा जयंती बड़े हर्षोल्लास से मनाई जाती है। सन् 1978 से यह नर्मदा उत्सव प्रारंभ हुआ था। प्रारंभ में यह छोटे पैमाने पर था। धीरे-धीरे आज यह नर्मदा महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
दीपदान के दृश्य होते दिव्य स्वरूप में
इस दिन सामूहिक रूप से नर्मदा जी के तट पर एकत्र होकर नर्मदापुर के निवासी एवं उसके आसपास के ग्रामवासी सामूहिक पूजन करते हैं। इस अवसर पर रात्रि को नर्मदा नदी में दीपदान के दृश्य का अत्यधिक दिव्य स्वरूप रहता है, क्योंकि भक्त अपनी श्रद्धानुसार दीप जलाकर नदी में प्रवाहित करते हैं। इस प्रकार नदी में असंख्य दीप रात्रि में प्रवाहित होते हैं। दीपों की ज्योति से पूरी नर्मदा जगमगा उठती हैं। बलखाती हुई लहरों में दीप का दृश्य अत्यंत ही मनोहारी दिखाई देता है।
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नर्मदा जयन्ती समारोह में नर्मदा के भुक्ति-मुक्ति दायी स्वरूप पर विद्वानों के भाषण एवं महात्माओं के प्रवचन होते हैं। यह सब नर्मदा उत्सव की रात्रि में ही आयोजित होता है। दीपदान और नर्मदा अभिषेक इस उत्सव के मुख्य अंग हैं। नर्मदापुरम की पूर्व दिशा में लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर तवा नदी, नर्मदा से बांद्राबांध नामक जगह पर संगम करती है। जहां संत महात्माओं की अनेक अनेक कुटिया एवं मंदिर हैं।
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तैयार हो रहे हैं सवा लाख दीपक
इस वर्ष मध्यप्रदेश सरकार द्वारा गौरव दिवस के रूप में नर्मदा जयंती महोत्सव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में नर्मदापुरम में 28 जनवरी को मनाया जा रहा है। दीपमालिका के लिए एक लाख दीपक तैयार किए जा रहे हैं। जिसमें आटे के तथा अन्य जैविक दिए तैयार हो रहे हैं। जिससे नर्मदा जी में प्रदूषण न हो सके, इस बात का ध्यान रखा जा रहा है। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल मंदिर में भी मां नर्मदा जयंती पर शिप्रा नदी के तट पर 5 हजार दीपों से दीपमालिका सजाई जा रही है।
नर्मदा के कंकर कंकर में हैं शंकर
नर्मदा ने भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया था कि प्रलय में भी उसका नाश ना हो। उसका हर पाषाण शिवलिंग के रूप में बिना प्राण प्रतिष्ठा के पूजित हो। इसीलिए कहा जाता है कि नर्मदा के कंकड़ कंकड़ में शंकर हैं। यही कारण है कि श्रद्धालु अपने घर में बिना प्राण प्रतिष्ठा के ही नर्मदा के पत्थरों से बने नर्मदेश्वर ज्योतिर्लिंग लाकर पूजन पाठ करते हैं।
नर्मदा तट पर हैं ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर (Jyotirling Omkareshwar) मां नर्मदा के तट पर ही स्थित है। हिंदू पुराणों में नर्मदा परिक्रमा यात्रा का बहुत महत्व है। नर्मदा, जिसे रेवा के नाम से भी जाना जाता है, पश्चिम की ओर बहने वाली सबसे लंबी नदी है। यह अमरकंटक से निकलती है, फिर ओंकारेश्वर से गुजरती हुई गुजरात में प्रवेश करती है। लगभग 12 सौ किलोमीटर का सफर तय कर खंभात की खाड़ी में मिल जाती है।
क्यों महत्वपूर्ण है नर्मदा यात्रा (Why is Narmada Yatra important?)
नर्मदा नदी के किनारे बसे आंवली घाट के जेष्ठ श्रेष्ठ संत जमुनागिरी जी महाराज बताते हैं कि नर्मदाजी वैराग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनकी पवित्रता और जीवंतता और मंगलमयता के कारण सारा संसार श्रद्धापूर्वक उनका सम्मान करता है और उनकी पूजा करता है। रहस्य और रोमांच से भरी नर्मदा यात्रा बेहद अहम है।
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नर्मदा यात्रा कब शुरू होती है (When does Narmada Yatra start)
नर्मदा परिक्रमा या यात्रा दो तरह से की जाती है। पहली हर महीने नर्मदा पंचकोशी यात्रा और दूसरी नर्मदा की परिक्रमा। हर महीने होने वाली पंचकोशी यात्रा तीर्थ नगरी अमरकंटक, ओंकारेश्वर और उज्जैन से शुरू होती है। यह वहीं समाप्त होती है, जहां से यह शुरू होती है।
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नर्मदा तट पर स्थित तीर्थस्थल (pilgrimage centers on the banks of the Narmada)
नर्मदा तट पर कई तीर्थ स्थित हैं। लेकिन, यहाँ कुछ प्रमुख तीर्थ हैं अमरकंटक, मंडला, भेड़ाघाट, नर्मदापुरम, नेमावर, ओंकारेश्वर, मंडलेश्वर, महेश्वर, शुक्लेश्वर, बावन गज, शूलपानी, गरुड़ेश्वर, शुक्रतीर्थ, अंकेश्वर, करनाली, चंदोद, शुकेश्वर, व्यसतीर्थ, अनसुयामाई तप स्थल, कंजेठा शकुंतला पुत्र भारत स्थल, सिनोर, अंगारेश्वर, धायडी कुंड और अंत में भृगु-कच्छ या भृगु-तीर्थ और विमलेश्वर महादेव तीर्थ।
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यह है नर्मदा यात्रा परिक्रमा मार्ग (Narmada Yatra Parikrama Marg)
अमरकंटक, माई की बगिया से नर्मदा कुंड, मंडला, जबलपुर, भेड़ाघाट, बरमनघाट, पतिघाट, मगरोल, जोशीपुर, छपनेर, नेमावर, नर्मदा सागर, पामाखेड़ा, धव्रीकुंड, ओंकारेश्वर, बल्केश्वर, इंदौर, मंडलेश्वर, महेश्वर, खलघाट, चिखलरा, धर्मराय, कतरखेड़ा, शूलपदी झाड़ी, हस्तिसंगम, छपेश्वर, सरदार सरोवर, गरुड़ेश्वर, चांदोद, भरूच। इसके बाद बिमलेश्वर, कोटेश्वर, गोल्डन ब्रिज, बुलबुलकांड, रामकुंड, बड़वानी, ओंकारेश्वर, खंडवा, नर्मदापुरम, सादिया, बर्मन, बरगी, त्रिवेणी संगम, महाराजपुर, मंडला, डिंडोरी और फिर अमरकंटक होते हुए पोंडी होते हुए वापसी।