▪️ लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल)
Palash flowers : दूरदर्शन पर पहले एक धारावाहिक प्रसारित हुआ करता था पलाश के फूल। इसका शीर्षक गीत बड़ा मधुर व कर्ण प्रिय हुआ करता था… जब-जब मेरे घर आना, तुम फूल पलाश के ले आना। साथ ही लता मंगेशकर का प्रसिद्ध वंश फिल्म का गीत आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिंदूरी…. आखिर और भी सुंदर-सुंदर फूल है दुनिया में गुलाब, जूही, मोगरा, चंपा परंतु पलाश पर ही सभी ज्यादा मोहित हैं। इसीलिए तो संत कबीर ने कहा है –
कबीर गर्व न कीजिए, इस जीवन की आस।
टेसू फुला दिवस दस, खेखर भया पलाश।
अर्थात कबीर ने पलाश की तुलना एक ऐसे नवयुवक से की जो अपनी जवानी में सब को आकर्षित कर लेता है परंतु बुढ़ापे में अकेला रह जाता है। टेसू के साथ भी कुछ ऐसा ही है। बसंत से ग्रीष्म ऋतु तक जब तक टेशु में फूल रहते हैं, उसे सभी निहारते हैं। मगर बाकी के 8 महीने में उसकी तरफ कोई नहीं देखता।
कहलाता है जंगल की आग (Palash flowers)
पलाश वृक्ष के फूल बहुत ही आकर्षक होते हैं। इसके आकर्षक फूलों के कारण इसे जंगल की आग भी कहा जाता है। पलाश का फूल उत्तर प्रदेश और झारखण्ड का राज्य पुष्प भी है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते इस बार फागुन मास आने के पहले ही पलाश के पेड़ इन दिनों फूलों से लदे हुए नजर आ रहे हैं। नगर के आसपास सड़कों पर व क्षेत्र के जंगल में बड़ी संख्या में पलाश के पेड़ हैं।
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हर्बल रंगों के रूप में उपयोग
पलाश के फूल औषधीय महत्व के होते हैं और हर्बल रंगों के रूप में प्रयोग में आते हैं। इन दिनों पलाश के फूल लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। बसंत के आगमन पर जहां पतझड़ होता है, सभी पेड़ों के पत्ते गिरने लगते हैं, वहीं दूसरी ओर पलाश के पेड़ पर केसरिया रंग के फूल खिलने लगते हैं। इस बार पतझड़ के पहले ही पलाश अपना रंग बिखेर रहा हैं।
इन फूलों से बनता था रंग (Palash flowers)
फागुन में पलाश के फूल से रंग बनता था। एक समय था जब हमारे पूर्वज पलाश के फूल से ही रंगोत्सव मनाया करते थे। इसके लिए पलाश के फूलों को होली से एक दिन पहले एकत्र कर उसे मिट्टी के पात्र में रख कर गरम किया जाता था। इससे प्राकृतिक रंग तैयार होता था। अब कृत्रिम रंगों की प्रचुरता के कारण इससे कोई रंग नहीं बनाता।
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पलाश में हैं कई औषधी गुण
आयुर्वेदिक पौधों के जानकार रमेश पटेल बताते हैं कि बरसात में अनेक बीमारियों के रोगाणु-जीवाणु व अन्य कीटाणुओं का प्रादुर्भाव घरों में हो जाता है। वे पलाश के पेड़ की गंध से या उसके सम्पर्क में आने से मर जाते हैं। ऐसी शक्ति पलाश के पेड़ की डालियों व बक्कलों में होती है। इसीलिए किसान वर्ग पोला पर्व पर पलाश की डंडी तोड़कर घर के मुख्य द्वार पर रखते हैं। पलाश के पत्ते में भोजन करने से रक्त शुद्धि के साथ ही बवासीर जैसे रोगों से मुक्ति मिलती है।
पत्तों व लकड़ी का यह महत्व
भिलाई छत्तीसगढ़ में शिवपुराण कर रहे पूज्य कान्हा महाराज बताते हैं कि पलाश के पत्तों पर भोजन करना स्वर्ण पात्र में भोजन करने के बराबर आरोग्य प्रदान करता है। साथ ही पलाश की लकड़ी से हवन करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। जो मनुष्य पलाश का पेड़ काटता है, उसे गुरु हत्या या ब्रह्म हत्या का दोष लगता है, जिसका कोई निवारण नहीं है। शिवपुराण की कथा सुनने के बाद प्रत्येक व्यक्ति ने बेलपत्र या पलाश का पौधा अवश्य लगाना चाहिए। जिससे शिवपुराण कथा का पूर्ण प्रतिफल मिलता है।