Kheti Kisani: यहां किसान आज भी नहीं करते थ्रेशर का उपयोग, गोवंश के सहारे ही होती है दावन, वजह जानकर हैरान हो जाएंगे आप

Kheti Kisani: यहां किसान आज भी नहीं करते थ्रेशर का उपयोग, गोवंश के सहारे ही होती है दावन, वजह जानकर हैरान हो जाएंगे आप

Kheti Kisani: अब खेती किसानी भी लगभग पूरे भारत में हाईटेक हो चुकी है। कृषि में लगभग हर काम मशीनों से होने लगा है। पहले फसल आने के बाद उसकी कटाई करना, खलिहान तक पहुंचाना, उसके बाद कई-कई दिनों तक दावन करने के बाद कहीं उपज घर पहुंच पाती थी। अब तो ऐसी मशीनें आ चुकी हैं जिनके कारण फसल काटने की भी जरूरत नहीं पड़ती। मशीन एक चक्कर खेत का लगाती है और कुछ घंटों में ही उपज पौधों से सीधे ट्रॉली में आ जाती है और घर पहुंच जाती है।

कुछ साल पहले तक पंजाब जैसे राज्य ही हाईटेक खेती करते थे। वहां हर किसान के पास बड़े-बड़े खेत और मजदूरों की कमी के कारण यह एक मजबूरी भी थी। लेकिन, अब देश के अधिकांश हिस्सों में मशीनों का उपयोग बड़े पैमाने पर होने लगा है। मध्यप्रदेश के बैतूल जिले (Betul In Madhyapardesh) में भी यही नजारा देखा जा सकता है। खेत तैयार करने से लेकर बुआई तक और फसल आने पर कटाई से लेकर थ्रेसिंग तक सब कुछ मशीनों से हो रहा है। कहीं यह मजदूर नहीं मिलने के कारण मजबूरी है तो कहीं काम जल्द निपटाने के लिए अनिवार्य जरूरत। यही कारण है कि मजदूरों की जरूरत अब बहुत कम पड़ती है।

Kheti Kisani: यहां किसान आज भी नहीं करते थ्रेशर का उपयोग, गोवंश के सहारे ही होती है दावन, वजह जानकर हैरान हो जाएंगे आप

इन सबके विपरीत खेती के मशीनीकरण के तमाम फायदों के बावजूद बैतूल जिले में आज भी कई किसान फसलों की थ्रेशिंग के लिए थ्रेशर का उपयोग नहीं करते हैं। वे आज भी बैलों से दावन करके ही फसल से उपज के एक-एक दाने अलग करते हुए नजर आ जाते हैं। चिचोली ब्लॉक के जोगली निवासी सायबू पन्द्राम भी इन्हीं किसानों में शामिल हैं। उनके पास करीब ढाई एकड़ खेत हैं। वे चाहे तो जल्द काम पूरा करने के लिए थ्रेशर मशीन का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन ऐसा उन्होंने आज तक नहीं किया। केवल वे ही नहीं बल्कि इसी गांव और बैतूल जिले के कई गांवों के सैकड़ों किसान भी आज भी बैलों से दावन करके ही फसल से उपज को अलग करते हैं (देखें वीडियो)।

इसमें मशीन के मुकाबले समय थोड़ा ज्यादा भले ही लगता हो पर इसके कई लाभ भी हैं।

जोगली गांव के ही कृषक हौसीलाल गंगारे इसे लेकर बताते हैं कि थ्रेसर मशीन के बजाय बैलों से दावन करने के एक नहीं बल्कि कई लाभ हैं। जो किसान इनके लाभ जानते हैं, वे मशीन से थ्रेशिंग बिलकुल नहीं करवाते हैं। वे बताते हैं कि इस तरह दावन करने से फसल के दाने टूटते नहीं हैं। उपज का एक-एक दाना साबूत रहता है। इसकी जगह थ्रेशर का उपयोग करने पर दाने टूट जाते हैं। यदि दाने पूरे-पूरे साबूत हैं तो ऐसी उपज के मार्केट में दाम भी अच्छे मिलते हैं। जिससे किसान को आर्थिक लाभ मिलता है। इसलिए किसान भले ही थोड़ा समय ज्यादा लगे, पर दावन करने को ही तवज्जो देते हैं।

बैतूल बाजार के उन्नत कृषक विनय वर्मा बताते हैं कि दावन करने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि किसान को बोआई करने के लिए बाजार से महंगे दामों का बीज नहीं खरीदना पड़ता। पूरे सबूत दाने होने और उत्पादन के मामले में देखा-परखा होने के कारण उसी उपज का किसान बीज के रूप में भी उपयोग कर लेते हैं। थ्रेशर का उपयोग करने पर दाने टूट-फूट जाते हैं। ऐसे में बीज के रूप में उपयोग करने के लायक हरगिज नहीं रहते, भले ही उत्पादन कितना भी अच्छा हो। ऐसे में किसानों को बाजार से ही बीज लेने को मजबूर होना पड़ता है। बाजार में मिलने वाले बीज जहां महंगे होते हैं वहीं कई बार खराब या नकली भी निकल जाते हैं। ऐसे में किसानों को पूरी फसल से ही हाथ धोना पड़ता है और तगड़ा नुकसान उठाना पड़ता है।

पर्यावरण भी रहता है साफ और स्वच्छ | Kheti Kisani

थ्रेशर का उपयोग करने पर पर्यावरण पर भी विपरीत असर पड़ता है। जिस भी गांव में थ्रेशर चलती है, उस गांव और पूरे क्षेत्र के हाल बेहाल हो जाते हैं। थ्रेशर चलने से भूसा उड़कर गांव और घरों तक उड़ कर आ जाता है। ऐसे में मजबूरी में लोगों को सफाई अभियान चलाना पड़ता है। लोग उस दौरान घरों से बाहर तक नहीं निकल पाते हैं। यहां तक कि इससे लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। इन सबके विपरीत दावन करने पर इन सभी स्थितियों का सामना बिलकुल नहीं करना पड़ता। लोगों को पता भी नहीं चलता और फसल से उपज निकल कर घर पर भी पहुंच जाती है, समय और श्रम जरूर थोड़ा ज्यादा लगता है पर फायदे ज्यादा मिलते हैं।

उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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