◼️ उत्तम मालवीय, बैतूल
रविवार को जिले के 3 नगरीय निकायों बैतूल, आमला और शाहपुर के चुनाव परिणाम आ चुके हैं। इन चुनावों में कुल जीते पार्षदों की दृष्टि से फौरी तौर पर भाजपा भले ही भारी दिख रही है पर ऐसा नहीं है। वहीं कांग्रेस के लिए तो यह बिलकुल साफ संकेत है। इन दोनों ही दलों को सबक लेना होगा। ऐसा नहीं किया तो आने वाले दिनों और चुनावों में इनके लिए सफलता की राह और मुसीबतों भरी हो जाएगी।
आज घोषित नतीजों में बैतूल नगर पालिका में भाजपा ने 23 और कांग्रेस ने 10 सीटें जीती हैं। इसी तरह आमला नगर पालिका में भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही हिस्से में 8-8 सीटें आई हैं। जबकि 2 पर मतदाताओं ने निर्दलीय प्रत्याशियों को जिताया है। शाहपुर नगर परिषद के लिए पहली दफा हुए चुनावों में चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं। वहां 9 वार्डों में जनता ने निर्दलीय प्रत्याशियों के सिर पर जीत का सेहरा बांधा है। भाजपा को 4 और कांग्रेस को 2 वार्डों में विजय मिली है।
चुनाव के यह परिणाम बताते हैं कि इन प्रमुख दलों ने प्रत्याशियों को चुनने के लिए जनभावनाओं का बहुत अधिक ध्यान नहीं रखा। दरअसल, स्थानीय निकाय के चुनाव ही ऐसे होते हैं जहां मतदाता अपना वोट देते समय न तो केंद्र और राज्य सरकारों की उपलब्धियों के बखान पर ध्यान देता है और न ही यह देखता है कि प्रत्याशी किस दल से हैं। मतदाता तो सिर्फ यह देखता है कि कौन प्रत्याशी उसके सुख-दुख में हमेशा साथ रहेगा और वार्ड में अधिक से अधिक सुविधाएं उपलब्ध करवा सकता है। उसी आधार पर अवलोकन और मूल्यांकन कर वह अपना मत देता है। इस कसौटी पर यह दल पूरी तरह खरे नहीं उतरे हैं।
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सबसे पहले चर्चा करते हैं शाहपुर नगर परिषद की। यहां टिकट वितरण को लेकर दोनों ही दलों में भारी विरोध की स्थिति बनी थी। दोनों दलों से कई पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ी तो कुछ को पाटियों ने निष्काषित किया। इस बगावत का नतीजा रहा कि यहां जनता ने इन पार्टियों के प्रत्याशियों के बजाय निर्दलीय प्रत्याशियों पर भरोसा जताया। यहां भाजपा से बगावत कर चुनाव लड़े एक प्रत्याशी तो चुनाव जीतने में भी सफल रहे। बाकी जगह बागियों ने ऐसा गणित बिगाड़ा कि पार्टियों को मात्र 4 और 2 वार्डों में जीत हासिल हो सकी।
आमला नगर परिषद में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। यहां नगरवासियों ने दोनों ही दलों को 8-8 सीटों पर समेट दिया है। जाहिर है कि यहां सत्ताधारी दल भाजपा को बिल्कुल एकतरफा समर्थन नहीं मिला। यहां भी संकेत साफ है कि भाजपा पर पूरी तरह एतबार नहीं किया गया है। वहीं कांग्रेस भी ऐसे वार्ड में गहरी पैठ वाले उम्मीदवार नहीं उतार पाई। अन्यथा किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो जाता। दो वार्डों में वार्डवासियों ने दोनों ही दलों के प्रत्याशियों को नकार कर निर्दली प्रत्याशियों पर भरोसा जताया।
अब बात करें बैतूल की। यहां भाजपा निश्चित रूप से बहुमत में है और भारी जीत का दावा भी कर सकती है, लेकिन तस्वीर का एक और पहलू भी है। बैतूल में 85173 कुल मतदाताओं में से 57702 मतदाताओं ने मतदान किया था। आपको जानकर यह हैरानी होगी कि इनमें 782 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया है। जाहिर है कि उन्हें कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं था। बैतूल में 67.75 प्रतिशत मतदान हुआ है। जाहिर है कि बड़ी संख्या में लोग मतदान करने पहुंचे ही नहीं।
भाजपा अपनी कुशल रणनीति के सहारे हो सकता है कि शाहपुर और आमला में भी अपनी नगर सरकारें जरुर बना लें। लेकिन, पार्टी को इस बात पर भी आत्ममंथन करना होगा कि इन दोनों ही नगरों में उसके आधे से अधिक प्रत्याशियों को जनता ने क्यों नकारा और बैतूल में इतने लोगों ने भाजपा के बजाय नोटा को क्यों चुना। वहीं कांग्रेस को भी अपनी सक्रियता और कार्यशैली पर चिंतन करना होगा। यदि यही सिलसिला जारी रहा तो आने वाले चुनावों में हालात और गंभीर हो सकते हैं।
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