• डॉ. कृष्णा मोदी
अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (international labor day) की शुरुआत एक मई 1886 को अमेरिका के शिकागो में एक आंदोलन से हुई थी। इस आंदोलन के दौरान अमेरिका में मजदूर काम करने के लिए 8 घंटे का समय निर्धारित किए जाने को लेकर आंदोलन पर चले गए थे। 1 मई 1886 के दिन मजदूर लोग रोजाना 15-15 घंटे काम कराए जाने और शोषण के खिलाफ पूरे अमेरिका में सड़कों पर उतर आए थे। इस दौरान कुछ मजदूरों पर पुलिस ने गोली चला दी थी जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए।
इसके बाद 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की दूसरी बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें यह ऐलान किया गया कि 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन सभी कामगारों और श्रमिकों का अवकाश रहेगा। इसी के साथ भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में काम के लिए 8 घंटे निर्धारित करने की नींव रखी।
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 में हुई। भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी। यही वह मौका था जब पहली बार लाल रंग झंडा मजदूर दिवस के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। यह भारत में मजदूर आंदोलन की एक शुरुआत थी जिसका नेतृत्व वामपंथी व सोशलिस्ट पार्टियां कर रही थीं। दुनियाभर में मजदूर संगठित होकर अपने साथ हो रहे अत्याचारों व शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे।
गुलामी की जंजीरों से मजदूरों को बांध रही है केंद्र सरकार
मौजूदा सरकार फिर से अंग्रेजों के जमाने के नियम लागू करने की ओर तेजी से काम कर रही है। जैसे काम के घंटों को 8 से 12 घंटे किए जा रहे हैं, तय किए वेतन, सामाजिक सुरक्षा आदि सवालों को पूरा नहीं करने का प्रस्ताव पारित कर देश के मजदूरों के साथ बेईमानी कर रही है। 1 मई को हम सभी एकत्रित होकर अमेरिका के शिकागो के शहीद हुए लोगों को याद कर एकता को मजबूत बनाएं। यही मेरी श्रमिकों एवं अन्य सहयोगी नागरिकों से अपील है।
(लेखक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और एटक कोल उद्योग के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष हैं।)