हनुमान जयंती भगवान हनुमानजी के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भक्त बजरंगबली के नाम का व्रत रखते हैं। हर साल हनुमान जयंती चैत्र मास (हिन्दू माह) की पूर्णिमा को मनाई जाती है, हालांकि कई जगहों पर यह पर्व कार्तिक मास (हिन्दू माह) के कृष्णपक्ष के चौदवें दिन भी मनाई जाती है। इस साल चैत्र मास की पूर्णिमा 16 अप्रैल, शनिवार को है। जानिए हनुमान जयंती या हनुमान जन्मोत्सव पर बनने वाले शुभ योग, मुहूर्त, पूजन विधि व मंत्र-
हनुमान जयंती पर बनने वाला शुभ योग
16 अप्रैल को सुबह 05 बजकर 34 मिनट से हर्षण योग शुरू होगा, जो कि 17 अप्रैल 2022 को देर रात 02 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगा।
हर्षण योग का महत्व
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि हर्ष का अर्थ खुशी व प्रसन्नता होती है। ज्योतिष के अनुसार, इस योग में किए गए कार्य खुशी प्रदान करते हैं। हालांकि इस योग में पितरों को मानने वाले कर्म नहीं करने चाहिए।
कितने बजे से शुरू होगी चैत्र पूर्णिमा 2022
हिंदू पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 16 अप्रैल 2022, शनिवार को देर रात 02 बजकर 26 मिनट से शुरू होगी,जो कि 17 अप्रैल 2022, रविवार को सुबह 12 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी।
इस विधि से करें हनुमान जी की पूजा
√ व्रत की पूर्व रात्रि को जमीन पर सोने से पहले भगवान राम और माता सीता के साथ-साथ हनुमान जी का स्मरण करें।
√ प्रात: जल्दी उठकर दोबारा राम-सीता एवं हनुमान जी को याद करें।
✓ जल्दी सबेरे स्नान ध्यान करें।
✓ अब हाथ में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प करें।
✓ इसके बाद, पूर्व की ओर भगवान हनुमानजी की प्रतिमा को स्थापित करें।
✓ अब विनम्र भाव से बजरंगबली की प्रार्थना करें।
✓ विधि विधान से श्री हनुमानजी की आराधना करें।
हनुमान जन्मोत्सव पर बनने वाले शुभ मुहूर्त
• ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:26 से 05:10 बजे तक।
• अभिजित मुहूर्त- सुबह 11:55 से दोपहर 12:47 बजे तक।
• विजय मुहूर्त- दोपहर 02:30 से 03:21 बजे तक।
• गोधूलि मुहूर्त- शाम 06:34 से 06:58 बजे तक।
• अमृत काल- सुबह 01:15 (17 अप्रैल) से सुबह 02:45 बजे तक।
• रवि योग- सुबह 05:55 बजे से 08:40 बजे तक।
हनुमान जी के मंत्र
श्री हनुमंते नम:
हनुमान जी का मूल मंत्र
ओम ह्रां ह्रीं ह्रं ह्रैं ह्रौं ह्रः॥ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्।
हनुमान जयंती से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अंजना एक अप्सरा थीं, हालांकि उन्होंने श्राप के कारण पृथ्वी पर जन्म लिया और यह श्राप उनपर तभी हट सकता था जब वे एक संतान को जन्म देतीं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार केसरी श्री हनुमान जी के पिता थे। वे सुमेरू के राजा थे और केसरी बृहस्पति के पुत्र थे। अंजना ने संतान प्राप्ति के लिए 12 वर्षों की भगवान शिव की घोर तपस्या की और परिणाम स्वरूप उन्होंने संतान के रूप में हनुमानजी को प्राप्त किया। ऐसा विश्वास है कि हनुमानजी भगवान शिव के ही अवतार हैं।