बैतूल जिले के मुलताई तहसील के ग्राम रिधोरा में रविवार को रामनवमी के अवसर पर रामादेव बाबा मंदिर का लोकार्पण किया जाएगा। रामादेव बाबा की सवा तीन फीट ऊंची मनमोहक मूर्ति राजस्थान के जयपुर से मुलताई के ग्राम रिधोरा पहुंच चुकी है। लोकार्पण कार्यक्रम के साथ ही घोड़े पर सवार बाबा रामादेव की प्रतिमा की स्थापना की जाएगी। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आसपास के गांवों से हजारों श्रद्धालुओं के आने की संभावना जताई जा रही है।
उल्लेखनीय है कि रामादेव बाबा से रिधोरा सहित आसपास के ग्रामों के हजारों ग्रामीणों की आस्था जुड़ी हुई है। मंदिर निर्माण एवं बाबा की प्रतिमा स्थापित करने के लिए लगभग 450 श्रद्धालुओं ने इसमें विशेष रूप से आर्थिक सहयोग किया है। खास बात यह है कि गांव के जो लोग बाहर कार्यरत है।
उन्होंने रामादेव बाबा रिधोरा वेलफेयर सोसाइटी का गठन कर गांव से दूर रह रहे श्रद्धालुओं को इसमें सदस्य बनाया है। इन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से परस्पर एक-दूसरे से संपर्क में रहते हुए ना सिर्फ बड़ी राशि एकत्रित की बल्कि आज मंदिर निर्माण का कार्य पूर्ण कर ऐतिहासिक आयोजन किया जा रहा है। सोसाइटी ने निर्णय लिया है कि रविवार को मंदिर का लोकार्पण गांव के बुजुर्गों के हाथों करवाया जाएगा।
सोसाइटी से मिली जानकारी के अनुसार मंदिर निर्माण में लगभग 18 लाख की राशि खर्च हुई है। रामादेव बाबा रिधोरा वेलफेयर सोसाइटी भोपाल के सदस्य कन्हैयालाल परिहार, गेंदलाल शिवहरे, बाबूलाल परिहार, शिवचरण डोंगरदिए सहित ग्रामवासियों का सराहनीय सहयोग रहा है।
कलश यात्रा के साथ होगा शुभारंभ
रामादेव बाबा वेलफेयर सोसायटी और ग्रामीणों ने कार्यक्रम का आयोजन किया है। रामादेव बाबा की मूर्ति स्थापना और मंदिर का लोकार्पण कार्यक्रम का शुभारंभ सुबह 9 बजे से हनुमान मंदिर में पूजा अर्चना के साथ शुरू होगा। 10 बजे हनुमान मंदिर से विशाल कलश यात्रा और रामादेव बाबा का ग्राम भ्रमण किया जाएगा जो रामादेव बाबा के मंदिर परिसर में समाप्त होगा।
दोपहर 12 बजे से मंदिर का लोकार्पण एवं रामादेव बाबा की प्रतिमा स्थापना की जाएंगी। डेढ़ बजे से विशाल भंडारे का आयोजन किया जाएगा। रिधोरा के ग्रामीणों और रामादेव बाबा वेलफेयर सोसायटी ने इस भव्य कार्यक्रम में श्रद्धालुओं को बड़ी संख्या में पंहुचने की अपील की है।
इस तरह रही बाबा की जीवन यात्रा
रामादेव बाबा के मंदिर का ऐतिहासिक, दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध न होने के कारण ग्रामीण केवल पौराणिक कथाओं, किंवदंती पर ही विश्वास करते है। किंवदंती है कि बाबा की जीवन यात्रा का प्रारम्भ एक चरवाहे के रूप में हुआ।
उन्होंने वर्तमान रिधोरा के समीप पान्ड्री ग्राम में गवली समाज के एक सामान्य परिवार में जन्म लिया। बाबा दो भाई थे रामा और गोमा। बालक रामा बाबा रामादेव ग्राम रिधोरा के ग्राम देवता के नाम से एवं बालक गोमा गोमादेव ग्राम सिपावा के ग्राम देवता के नाम से प्रसिद्ध हुए।
जिस प्रकार कबीरदास ने जुलाहे का साधारण कार्य किया, समर्थ गुरू रामदास ने मोची का, उसी प्रकार बाबा ने चरवाहे का साधारण कार्य करते हुए जनमानस को साधारण से असाधारण कार्य करने की प्रेरणा दी। बाबा प्रतिदिन अपने पशुओं को चराने के लिये मयावाड़ी मार्ग पर बने हुए तालाब के पास ले जाते थे।
इसी तरह बाबा अपनी दैनिक दिनचर्या में प्रभुस्मरण एवं कार्य के प्रति तन्मयता रखते थे। बाबा को अपने पशुओं से असीम स्नेह था। एक दिन बाबा प्रतिदिन की तरह ही तालाब के पास बैठकर अपने पशुओं को तालाब में नहाते हुए निहार रहे थे कि यकायक सभी पशु एक-एक कर तालाब में समा गये। यह दृश्य देखकर बाबा ने भगवान से अपने पशुओं की वापसी के लिए बहुत ही आर्तभाव से प्रार्थना की।
बाबा निरंतर प्रभु स्मरण करते रहे, लेकिन जब वे पशु वापस नहीं मिल पाए तो उनके प्रति अथाह प्रेम एवं विछोह में बाबा ने भी समाधि ले ली। तभी से बाबा रामादेव की बड़े ही आदर और सम्मान के साथ पूजा-अर्चना की जाने लगी। कहते हैं कि बाबा आज भी सफेद घोड़े पर बैठक गांव का भ्रमण करते हैं और गांव एवं ग्रामीणों की रक्षा करते हैं।