बैतूल जिले के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों और खासकर जनजातीय परिवारों के लिए महुआ की पैदावार बेहद मायने रखती है। उनकी आर्थिक स्थिति कैसी रहेगी, वह महुआ की फसल पर ही निर्भर करता है। जंगल से महुआ बीनकर जमा करने के बाद उसकी बिक्री करके ही वे अपनी जरूरत की वस्तुओं की व्यवस्था करते हैं। महुआ की पैदावार अच्छी हो गई तो उनकी माली हालत भी बेहतर रहती है और पैदावार कम रही तो माली हालत भी खराब हो जाती है।
इस साल महुआ बीनने वाले ग्रामीण महुआ से लदे पेड़ों को देखकर खुशी से झूम रहे हैं। इसकी वजह यह है कि महुआ की फसल इतनी अच्छी है कि यह सभी को मदहोश कर रही है। लोगों का तो यह तक कहना है कि प्रति वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष महुआ ने पिछले कई वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। अधिकांश आदिवासी परिवारों का कहना है कि रात-दिन पेड़ों के नीचे अनवरत महुए की बरसात हो रही है।
‘बैतूल अपडेट’ टीम ने इस विषय में गांव-गांव भ्रमण कर विस्तार से जानकारी एकत्र की है। ताप्ती नदी के किनारे बसे सिमोरी गांव के आदिवासी सुमरत उइके, राजू मरकाम का कहना है कि हमने इतना महुआ टपकते आज तक नहीं देखा। हमें तो इस महुए की बरसात ने घबरा ही दिया है। वे बताते हैं कि पहले एक-एक महुआ बीनना पड़ता था। लेकिन इस साल अधिक टपकने के कारण अब उसे बीनने की स्थिति नहीं है। इस बार तो खरेटा या झाड़ू से इकट्ठा कर टोकरी में भरने की नौबत आ गई है।
सिहार गांव के गब्बू भुसुमकर का कहना है कि महुआ बहुतायत में गिरने से नींद हराम हो गई है। रात और दिन एक जैसी रफ्तार से महुआ गिर रहा है। पहले महुआ बीनने को लेकर आपस मे झगड़े होते थे। अब इतना अधिक महुआ बरस रहा है कि उसे उठाना मुश्किल हो रहा है।
सराड गांव के कैलाश बडोदे बताते हैं कि आदिवासियों ने महुआ के लिए बड़ी खुशी जताई है। उनका यही कहना है कि हमने अपनी जिंदगी में इतना महुआ गिरते नहीं देखा। इसका कारण यह है कि महुआ फसल के पूर्व मौसम ने इस वर्ष साथ दिया। बिजली-पानी से बचने के कारण महुआ और चार की फसल बेहद अच्छी है। जिस घर में देखो महुए का अम्बार लग रहा है। इस बार महुआ तेज रफ्तार और प्रचुरता से गिर रहा है। जिससे महुए के कारण ग्रामीण इलाकों में खासकर वन ग्रामों में निवास कर रहे आदिवासियों एवं अन्य समाज के लोगों को महुए से अच्छा मुनाफा मिलने के आसार हैं।
ग्राम बोथी के मोहनलाल उइके (85) का कहना है कि हमने उम्र भर कभी इस रफ्तार से महुआ टपकते नहीं देखा। पहले हम महुआ बीनते थे, अब झाड़ू लगाकर बटोर कर टोकरियां भरना पड़ रहा है। कुल मिलाकर महुआ की फसल इस वर्ष रिकॉर्ड तोड़ रही है। जो आदिवासी परिवारों की उन्नति के लिए एक अच्छी खबर है।
क्या है महुआ के उपयोग
आदिवासी वर्ग के लिए महुआ का पेड़ बहुत महत्व रखता है। महुआ का वैज्ञानिक नाम मधुका लोंगिफोलिया है। यह पेड़ बहुत तेजी से बढ़ता है और लगभग 12 से 15 मीटर तक इसकी लंबाई पहुंच सकती है। इसमें मार्च के माह में सफेद रंग के छोटे-छोटे फूल लगते हैं। यूं तो इसके फूल के असंख्य गुण हैं, लेकिन मध्य भारत में इस फूल का इस्तेमाल महुआ वाइन बनाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा महुआ में कई औषधीय गुण भी है। यही कारण है कि इसका बड़े पैमाने पर कारोबार होता है। कई बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा इसकी खरीदी की जाती है।