देश के प्रधानमंत्री (PM) नरेन्द्र मोदी और भारत सरकार (Indian government) की सर्वोच्च प्राथमिकता भले ही स्वच्छता अभियान (Cleanliness Campaign) हो, लेकिन बैतूल के आमला ब्लॉक के ग्रामीण अंचलों में इसका जरा भी असर नहीं दिख रहा है। कहने को यहां इस अभियान के सुचारू क्रियान्वयन के लिए बाकायदा अधिकारी नियुक्त हैं, जमकर पैसा भी खर्च हुआ है, कागजों पर खूब काम भी दिखाए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही हालात बयां कर रहे हैं।
वर्ष 2014 में गांधी जयंती से स्वच्छ भारत मिशन (Clean India Mission) की शुरुआत की गई थी। जिसके तहत शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक में स्वच्छता की अलख जगाना था। लेकिन आमला के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता के हालात बद से बदतर दिखाई पड़ रहे हैं। इसकी एक झलक विकासखण्ड की ग्राम पंचायत छावल में देखी जा सकती है। यहां केवल रस्म अदायगी के लिए शौचालय बने हैं। शौचालय देखकर ही अंदाजा लग जाता है कि केवल आंकड़े दिखाने भर के लिए बनाए गए हैं। उनकी हालत बेहद खस्ता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि ग्रामीणों को इस बात के लिए प्रेरित करने की जरा भी जहमत नहीं उठाई गई कि इनका उपयोग भी करना है। यही वजह है कि अधिकांश ग्रामीणों द्वारा शौचालय का उपयोग न कर वे बाहर ही शौच के लिए जा रहे हैं। यह केवल एक गांव की हकीकत नहीं है बल्कि ऐसे ही हालात ब्लॉक की अन्य पंचायतों के भी हैं।
स्वच्छ भारत अभियान के तहत हर ग्राम के प्रत्येक घर में शौचालय का निर्माण करवा ग्राम को खुले से शौच मुक्त करना था। लेकिन अभियान को लगभग 8 वर्ष का समय बीतने के बाद भी ब्लॉक की 68 पंचायतें खुले में शौच से मुक्त नहीं हो पाई हैं। सरकार से मिलने वाली राशि को खर्च दिखाकर और आंकड़ों में भले ही तस्वीर बदली हुई दिखा दी गई हो, लेकिन ग्रामीणों की मानसिकता बदलने का कार्य ना तो स्वच्छता प्रेरक करवा सके हैं और ना जनपद के अधिकारी ही यह करने में सफल हो सके हैं।
केवल शौचालय ही नहीं बल्कि इस ब्लॉक के ग्रामों में सामान्य साफ-सफाई तक नजर नहीं आती। अधिकांश ग्रामों में सड़क पर थमा और बहता गंदा पानी, जगह-जगह बेतरतीबी से लगे कचरे के ढेर देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्र में स्वच्छता अभियान का संदेश कितना पहुंच सका है। यह हाल देखकर जागरूक लोगों का तो यही कहना है कि जनपद के अधिकारियों की उदासीनता से यहां स्वच्छता अभियान को तो पूरी तरह पलीता ही लगता दिखाई पड़ रहा है। यही हाल रहे तो प्रधानमंत्री का सपना शायद ही कभी साकार हो पाए।