कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर चर्चित चल रही फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ 11 मार्च को रिलीज हुई। पहले ही दिन से भारत देश के थियेटरों में हाउसफुल चल रही है। हरियाणा सरकार ने तो इसे टैक्स फ्री कर दिया है।
मैंने लगभग 10 साल बाद सिनेमा हाल के दर्शन किए। यह फिल्म देखकर पता चलता है कि यथार्थ कितना भयंकर रहा होगा। इस फिल्म को देखने की दीवानगी इस अंदाज से लगाई जा सकती है कि थिएटर के बाहर 5 साल के बच्चे से लेकर 70 साल के बुजुर्ग तक मिलेंगे। द टाइम स्क्वायर न्यूयॉर्क में भी पहली बार किसी फिल्म का पोस्टर लगा है।
फिल्म “द कश्मीर फाइल्स” एक तरह से इतिहास की उन ‘फाइल्स’ को पलटने की कोशिश है, जिनमें भारत देश में सन् 1990 के वीभत्स नरसंहारों के चलते हुए सबसे बड़े पलायन की कहानी है। यह कोई डायलॉग भरी कहानी नहीं है। बल्कि यह लाखों कश्मीरी हिंदुओं पर हुए अत्याचारों की सच्ची घटना है।
देश में कश्मीरी पंडित ही शायद इकलौती ऐसी कौम है, जिसे उनके घर से आजादी के बाद जेहाद ने बेदखल कर दिया और करोड़ों की आबादी वाले इस देश के किसी भी हिस्से में कोई हलचल तक न हुई। ऋषि कश्यप की धरती उजाड़ दी गई और दिल्ली तमाशा देखती रही। जिस कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक होने वाले देश का दम बार बार बड़े-बड़े नेता भरते रहे हैं, उसके हालात की ये बानगी किसी भी इंसान को सिहरा सकती है।
32 साल पहले शुरू होती फिल्म की इस कहानी की शुरुआत ही एक ऐसे लम्हे से होती है जो क्रिकेट के बहाने एक बड़ी बात बोलती है। घाटी में जो कुछ हुआ वह दर्दनाक रहा है। उसे पर्दे पर देखना और दर्दनाक है। आतंक का ये एक ऐसा चेहरा है जिसे पूरी दुनिया को देखना बहुत जरूरी है।
नाच, गाने और कॉमेडी से हटकर गंभीर मुद्दे पर बनी इस फिल्म में बताया गया है कि कैसे कश्मीर सदियों से अखंड भारत का हिस्सा रहा है। एक प्रशासनिक अफसर, एक पत्रकार, एक डॉक्टर और एक आमजन को बिम्ब की तरह प्रस्तुत किया है। हमारे देश के लोकतंत्र में चारों स्तंभों की उस समय क्या मजबूरी थी कि वे इस विषय में तब खामोश थे।
आज का ब्रेनवाश युवा भी है और एक जेएनयू भी। फिल्म में बहुत सी गुत्थियों को सुलझाने का प्रयास, कई राज खुलते हैं तो कई फेक न्यूज और चलते आ रहे हैं प्रोपेगेंडा की धज्जियां उड़ाती है। तात्कालिक सरकारों की उदासीनता दिल को ठेस पहुंचाती है। क्या हुआ था कश्मीरी पंडितों के साथ उन्हीं की सरजमी पर, क्या कसूर था उन मासूम बच्चों, महिलाओं का, बस यही कि वे सब काफिर है। धिक्कार है देश के उन राजनीतिज्ञों पर जिन्होंने कत्लेआम करने वाले लोगों पर कोई कड़ी कार्यवाही नहीं की।
टीवी पर अफगानिस्तान और यूक्रेन से बेघर होते हुए लोगों पर आंसू बहाने वालों को शायद मालूम नहीं कि उस समय अपने ही देश में लाखों लोग बेहद जिल्लत और तकलीफों के साथ शरणार्थी बनने को मजबूर किए गए थे। शिव, सरस्वती और ऋषि कश्यप की घाटी में गोलियों की धड़-धड़ आवाज और रोंगटे खड़े कर देने वाले दृश्य देखकर रूह कांप जाती है।
फिल्म में अनुपम खेर की अदाकारी भी कमाल की है सभी नेताओं में असल कश्मीरियों का होना फिल्म को असलियत का जामा पहना देता है। बैकग्राउंड में कश्मीरी लोकगीत कल फ्री है। फिल्म हिंदी और अंग्रेजी दो तरह के सब टाइटल में अलग-अलग स्क्रीन पर चल रहे हैं। विवेक रंजन अग्निहोत्री का बहुत-बहुत धन्यवाद जिन्होंने इस फिल्म के माध्यम से कश्मीर की घटना का साक्षात्कार करवाया।
द कश्मीर फाइल्स
◆ कलाकार- दर्शन कुमार, मिथुन चक्रवर्ती, अनुपम खेर, पल्लवी जोशी, चिन्मय मांडलेकर और प्रकाश बेलवाडी
◆ लेखक- सौरभ एम पांडे और विवेक अग्निहोत्री
◆ निर्देशक- विवेक अग्निहोत्री
◆ निर्माता-तेज नारायण अग्रवाल, अभिषेक अग्रवाल, पल्लवी जोशी और विवेक अग्निहोत्री