बैतूल शहर के आसपास स्थित खेत पिछले कुछ समय से शाम होते ही आग से धधकते हुए नजर आते हैं। इस दौरान घंटों तक खेत में आग के शोले उठते रहते हैं। दरअसल, क्षेत्र में इन दिनों गन्ना कटाई तेजी से हो रही है। किसान शुगर मिल के अलावा खानसारी गुड़ भट्टी पर भी अपना गन्ना बेच रहे हैं। गन्ना कटाई के बाद उसकी सूखी पत्ती एवं गन्ने के बचे डंठल साफ करने किसान खेत में आग लगा देते हैं।
इसके बाद एक काली परत खेत में जम जाती है। पत्तियां जलाने से ना सिर्फ वातावरण ही दूषित हो रहा है बल्कि आग से उठी चिंगारी पड़ोसी किसान के खेत में जाने से फसल नुकसान, पाइप लाइन, वायर जलने संबंधी घटनाएं भी हो रही हैं। वर्तमान में गेहूं के बराबर रकबा गन्ने का भी है। किसान जहां गर्मियों में गेहूं की पराली जलाते हैं। वहीं अब गन्ने की पत्ती जला रहे हैं। जानकारों का कहना है कि धरती को जलाने से मिट्टी के पोषक तत्व, डंठल के कार्बनिक तत्व तथा कृषि उपज को बढ़ावा देने वाले सभी तत्व नष्ट हो जाते हैं। यदि ऐसा ही होता रहा तो मिट्टी का पोषक तत्व बिल्कुल नष्ट हो जाएगा और मिट्टी बंजर हो जाएगी, जिसका असर उत्पादन पर पड़ेगा।
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खेतों में आग लगने का मुख्य कारण खेतों से गुजरी बिजली लाइन के तारों का आपस में टकराने से निकलने वाली चिंगारी के साथ-साथ गन्ने की पत्तियां जलाने से निकलने वाली चिंगारी भी है। यह पड़ोसी किसान की फसल चपेट में लेती है। विशेषज्ञों की सलाह है कि खेतों की उर्वरा शक्ति, नमी और उत्पादन क्षमता बचाए रखने के लिए खेतों को जलाने से किसानों ने तौबा कर लेनी चाहिए एवं रोटावेटर जैसी आधुनिक मशीनों से पत्तियों को बारीक कर प्रबंधन पर जोर देना चाहिए।
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