कुछ स्थान खुद के सिवा और कहीं दर्ज नहीं होते, न किसी नक्शे में, न सरकारी रिकॉर्ड में और न ही लोगों की जानकारी में। बैतूल जिले के आमला शहर से महज 13-14 किलोमीटर दूर मोवाड़ गांव के पास स्थित सदियों पुराने किलेनुमा स्थल की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। यह मौजूद तो है पर इसके बारे में न तो कोई ठोस जानकारी आसपास के गांवों में किसी को है और न सरकारी कागजों में है।
12 द्वारों से बनी ये छोटी किलेनुमा इमारत 15 वीं या 16 वीं शताब्दी के आसपास बनी होगी। इसकी बनावट उस दौर में बने किलों से मेल खाती है। इस छोटे किले की खासियत है कि इसके चारों तरफ दरवाजे बने हुए हैं और आमने-सामने के द्वारों में सीध इतनी सटीक है कि एक द्वार से देखने पर दूसरे द्वार के बाहर का दृश्य बिल्कुल साफ दिखाई देता है।
सम्भवतः तत्कालीन राजाओं द्वारा इस जगह का उपयोग जंगल भ्रमण, शिकार या अवकाश प्रवास के लिए किया जाता रहा होगा परन्तु जानकारी और देखरेख के अभाव में ये जगह जर्जर सी हो गई है। ऊपरी परकोटे टूट चुके हैं और इसकी दुर्गति की कहानी ये है कि कई पेड़ जिनकी ही उम्र करीब 2 सदी की हो गई हैं, वे इसके बीच में छत से होते हुए ऊपर निकल गए हैं। रही-सही कसर लालची लोगों ने माया और गढ़े धन की खोज में खुदाई करके कर दी है।
लोगों का कहना है कि खेड़ला किला वाले राजा द्वारा बनवाया गया होगा इसे, परन्तु खेड़ला किला की बनावट और प्रयुक्त सामग्री इस किले से अलग है। वैसे लोगों के पास जानकारी तो नहीं है पर कुछ ग्रामीण बता रहे थे कि इसी मार्ग से छोटा महादेव जाने वाले कच्चे रास्ते पर ऐसी दो किलेनुमा सरंचना और थी जो कालांतर में अस्त्तित्व में नहीं रही।
बारहद्वारी तक आमला से हसलपुर, कन्हड़गांव, मोवाड़ होते हुए पहुँचा जा सकता है। मोवाड़ तक पक्की सड़क है और पक्की सड़क से सिर्फ 500 मीटर अंदर इस जगह तक बाइक भी आसानी से चली जाती है। कार से जाने पर थोड़ा सा पैदल चलना होगा। कभी दोस्तों-परिवार के साथ पचामा झरने की तरफ जाएं तो बारहद्वारी को भी याद रखें।
करीब आधी शताब्दी पुराने बरगद के विशाल वृक्ष के पास बनी ये जगह आपको टाइम मशीन में बैठा उस ऐतिहासिक दौर में पहुँचा देगी। थोड़ा-बहुत ध्यान प्रशासन दे दे तो ये जगह भी नक्शे में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकती है।
● फेसबुक पेज ‘शहर अपना सा-आमला’ से साभार…