कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर शुक्रवार को मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के भैंसदेही में लगे मेले में कुछ अलग ही नजारा था। लोग नदी पूर्णा नदी के तट पर आ रहे थे और छोटे-छोटे मासूम बच्चों को पालने में रख कर कुछ देर के लिए नदी में छोड़ रहे थे। उन्हें न इस बात की चिंता थी कि बच्चा नदी में गिर जाएगा और ना यह फिक्र कि पानी के कारण ठंड के इस मौसम में बच्चे को सर्दी हो जाएगी। वे तो बच्चों को मां पूर्णा की गोद में देखकर भावविभोर और बेहद खुश हुए जा रहे थे। इस बीच कोई बच्चा रो रहा था तो कोई कौतूहल से पूरा नजारा देख रहा था कि यह सब क्या हो रहा है और वह कहां आ गया।
दरअसल, यहां इन नौनिहालों पर कोई अत्याचार नहीं किया जा रहा था बल्कि यह सब धार्मिक-सामाजिक मान्यता और आस्था के चलते ऐसा कर रहे थे। क्षेत्र में मान्यता है कि लंबे समय तक संतान नहीं होने पर निःसन्तान दम्पती मां पूर्णा से यदि संतान सुख का आशीर्वाद मांगे तो संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है। इसके पश्चात संतान प्राप्ति पर लोग यहां आते हैं और मन्नत पूरी करते हुए बच्चों को मां पूर्णा की गोद में पालने में डाल कर झुलाते हैं। इसके अलावा एक मान्यता यह भी है कि मां पूर्णा की गोद में बच्चों को पालने में डालने से बच्चे पर मां पूर्णा का आशीर्वाद सदैव बना रहता है और उसे जीवन में सुख, समृद्धि, यश प्राप्त होता है। यही वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा पर सैकड़ों दम्पती भैंसदेही में मां पूर्णा के तट पर पहुंचते हैं और अपने मां पूर्णा की गोद में नौनिहालों को पालने में डालते हैं। इस साल भी यहां सैकड़ों लोग पहुंचे और बच्चों को पूर्णा नदी में पालने में झुलाया। पुण्य सलिला माँ पूर्णा नदी के तट पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर अलसुबह से ही स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लग गई थी। श्रद्धालुओं ने पूर्णा में डुबकियां लगाकर मंदिर में पूजा-अर्चना की। आदिवासी समुदाय की आस्था का यह मेला प्रतिवर्ष एक सप्ताह से अधिक समय तक भैंसदेही-गुदगाँव मार्ग पर पूर्णा नदी पर लगाया जाता है। इस मेले में क्षेत्र एवं दूर-दराज के आदिवासी एवं अन्य समुदाय के लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं।