बैतूल। प्रकाश पर्व दीपावली को अभी भले ही कुछ दिन बाकी है, लेकिन जिले के ग्रामीण अंचलों में लगने वाले हाट बाजारों में दीपावली की झलक अभी से दिखने लगी है। यहां आदिवासी वर्ग के ग्रामीण अपने पारंपरिक अनूठे अंदाज में गोवर्धन पूजा करते हुए नजर आने लगे हैं। गुरुवार को आठनेर में लगे साप्ताहिक (दीवाली) बाजार में भी आदिवासी ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से भगवान गोवर्धन की पूजा अर्चना करते हुए सभी के सुख-समृद्धि की कामना की। दीवाली का त्यौहार भी आदिवासी समाज के लोग अपने ही अंदाज में मनाते हैं। इनकी दीवाली लक्ष्मी पूजा के करीब एक सप्ताह पहले से शुरू हो जाती है और एक महीने बाद तक चलती रहती है। हर गांव में दिवाली का त्यौहार मनाने के लिए दिन तय किया जाता है फिर पूरा गांव एक ही दिन त्यौहार मनाता है। सभी लोग अपने-अपने रिश्तेदारों को भी दीवाली मनाने के लिए न्योता देते हैं और फिर सभी मिलकर दीवाली मनाते हैं। आम लोगों की दीवाली भले ही धनतेरस से शुरू होती है पर आदिवासी समाज के लोग एक सप्ताह पहले से ही दीवाली मनाना शुरू कर देते हैं। इसके लिए वे अपनी पारंपरिक वेशभूषा में वाद्य यंत्रों के साथ साप्ताहिक बाजारों में पहुंचते हैं और वहां सामूहिक रूप से नृत्य कर भगवान गोवर्धन की पूजा करते हैं। इसके साथ ही क्षेत्र और क्षेत्रवासियों की सुख समृद्धि की कामना करते हैं। पारंपरिक अंदाज में उनके द्वारा की जाने वाली यह पूजा अर्चना सभी के लिए कौतूहल का विषय बन जाती है। गुरुवार को आठनेर में लगे दीवाली के पहले लगे अंतिम बाजार में खासी चहल पहल खरीदी के लिए नजर आई। इसी दौरान आसपास के गांवों से आए आदिवासी ग्रामीणों ने पारंपरिक अंदाज में नृत्य कर भगवान गोवर्धन की पूजा अर्चना की। अन्य स्थानों पर लगने वाले साप्ताहिक बाजारों में ऐसा ही नजारा देखा जा सकता है। इस आयोजन में दिवाली के साथ ही आदिवासी संस्कृति की झलक भी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
देखें वीडियो: इन्होंने अनूठे अंदाज में की गोवर्धन पूजा
बैतूल। प्रकाश पर्व दीपावली को अभी भले ही कुछ दिन बाकी है, लेकिन जिले के ग्रामीण अंचलों में लगने वाले हाट बाजारों में दीपावली की झलक अभी से दिखने लगी है। यहां आदिवासी वर्ग के ग्रामीण अपने पारंपरिक अनूठे अंदाज में गोवर्धन पूजा करते हुए नजर आने लगे हैं। गुरुवार को आठनेर में लगे साप्ताहिक (दीवाली) बाजार में भी आदिवासी ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से भगवान गोवर्धन की पूजा अर्चना करते हुए सभी के सुख-समृद्धि की कामना की। दीवाली का त्यौहार भी आदिवासी समाज के लोग अपने ही अंदाज में मनाते हैं। इनकी दीवाली लक्ष्मी पूजा के करीब एक सप्ताह पहले से शुरू हो जाती है और एक महीने बाद तक चलती रहती है। हर गांव में दिवाली का त्यौहार मनाने के लिए दिन तय किया जाता है फिर पूरा गांव एक ही दिन त्यौहार मनाता है। सभी लोग अपने-अपने रिश्तेदारों को भी दीवाली मनाने के लिए न्योता देते हैं और फिर सभी मिलकर दीवाली मनाते हैं। आम लोगों की दीवाली भले ही धनतेरस से शुरू होती है पर आदिवासी समाज के लोग एक सप्ताह पहले से ही दीवाली मनाना शुरू कर देते हैं। इसके लिए वे अपनी पारंपरिक वेशभूषा में वाद्य यंत्रों के साथ साप्ताहिक बाजारों में पहुंचते हैं और वहां सामूहिक रूप से नृत्य कर भगवान गोवर्धन की पूजा करते हैं। इसके साथ ही क्षेत्र और क्षेत्रवासियों की सुख समृद्धि की कामना करते हैं। पारंपरिक अंदाज में उनके द्वारा की जाने वाली यह पूजा अर्चना सभी के लिए कौतूहल का विषय बन जाती है। गुरुवार को आठनेर में लगे दीवाली के पहले लगे अंतिम बाजार में खासी चहल पहल खरीदी के लिए नजर आई। इसी दौरान आसपास के गांवों से आए आदिवासी ग्रामीणों ने पारंपरिक अंदाज में नृत्य कर भगवान गोवर्धन की पूजा अर्चना की। अन्य स्थानों पर लगने वाले साप्ताहिक बाजारों में ऐसा ही नजारा देखा जा सकता है। इस आयोजन में दिवाली के साथ ही आदिवासी संस्कृति की झलक भी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
उत्तम मालवीय
मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।
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