हरे-भरे पेड़ों की कब्रगाह बना बैतूल का जिला अस्पताल, कर दिए जमींदोज

  • उत्तम मालवीय, बैतूल © 9425003881
    बैतूल का जिला अस्पताल परिसर हरे-भरे पेड़ों की कब्रगाह बन गया है। यहाँ परिसर में स्थित हरे-भरे और विशाल पेड़ों को पिछले कुछ दिनों में जमींदोज कर दिया गया है। इससे शहर के कई पर्यावरण प्रेमी बड़े मायूस, निराश और नाराज हैं। हालांकि बीच शहर में स्थित इन हरे-भरे पेड़ों का सफाया हो जाने के बाद भी विरोध के ऐसे स्वर सुनाई नहीं दिए जैसे कुछ साल पहले नेहरू पार्क के पेड़ काटे जाने पर सुनाई दिए थे।

    जिला अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों को प्राणवायु देने के लिए कई लोगों ने यहाँ पौधे लगाए थे। यह पौधे अब विशाल पेड़ का रूप ले चुके थे। इन पेड़ों से ना केवल पर्यावरण को लाभ पहुंच रहा था बल्कि मरीजों को भी उपयोगी शुद्ध हवा मिलती थी। मरीजों के साथ आए परिजन इन्हीं पेड़ों की छांव में बैठकर भीषण गर्मी में भी शीतलता के साथ राहत महसूस करते थे। यही नहीं हजारों पक्षियों के लिए तो यह पेड़ ही उनका आशियाना थे।

    इन पेड़ों को अब अस्पताल प्रबंधन ने जमींदोज करवा दिया है। काटे गए पेड़ों को परिसर में ही एक जगह एकत्रित कर दिया गया है। जो ऐसा महसूस होता है कि इन पेड़ों की चिता हो। अधिकांश काटे गए पेड़ उस ट्रॉमा सेंटर के आसपास के हैं, जहां मरीजों की टूटी हुई हड्डी जोड़ी जाती है। उसी के सामने लगे उपयोगी और मासूम पेड़ों का बड़ी बेदर्दी से जड़ से सफाया कर दिया गया है। यह देख वे लोग दर्द से कराह रहे हैं, जिन्होंने यह पेड़ लगाए थे। वे पूछ रहे हैं कि यह कैसा इलाज? दर्द से निजात दिलाने के बजाय जिंदगी ही खत्म कर दी…!

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    कहा जा रहा है कि पक्षियों की बड़ी मात्रा में एकत्रित होने वाली बीट और उससे चलने वाली बदबू के कारण यह निर्णय लिया गया है। मुझे यह स्वीकार करने में जरा भी संकोच नहीं कि यह एक समस्या थी। करीब 15 दिन पहले ही मुझे एक मित्र ने इस समस्या को लेकर कुछ फोटोग्राफ्स भी भिजवाए थे। मैंने उनका इस्तेमाल कर केवल इसलिए समाचार नहीं बनाया क्योंकि मुझे डर था कि अस्पताल प्रबंधन इसका एकमात्र हल यही निकलेगा कि पेड़ों को ही काट दिया जाएं। और आखिरकार हुआ वही, जिसका अंदेशा था।

    पर्यावरण प्रेमी लोकेश वर्मा का कहना है कि पेड़ों पर ही पक्षियों का बसेरा होता है। यदि केवल उनकी बीट से निजात पाने के लिए एक यही कदम उठाया जाए तो फिर तो दुनिया में एक भी वृक्ष नहीं बचेगा। दुनिया के सारे पेड़ों को काटना पड़ेगा। इसके साथ ही सारे पक्षियों का भी खुद ही सफाया हो जाएगा। ऐसा भी नहीं है कि देश के दूसरे किसी अस्पताल परिसर में पेड़ ही नहीं हैं। लोकेश कहते हैं शुद्ध हवा और स्वच्छ पर्यावरण के लिए अस्पतालों में पेड़ पौधों की अधिक दरकार हैं।

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    पेड़ होंगे तो पक्षी भी होंगे और पक्षी होंगे तो जाहिर है कि उनकी बीट भी होगी। फिर इसका समाधान क्या था? इसे लेकर वरिष्ठ पत्रकार विनय वर्मा कहते हैं कि पेड़ों के नीचे जहां भी बेंच लगी हैं, वहां पर शेड बनाए जा सकते थे। यह इसके साथ ही अस्पताल प्रबंधन द्वारा हर साल लाखों रुपये केवल साफ-सफाई के नाम पर खर्च किया जाता है। इस सफाई का दायरा थोड़ा और बढ़ाकर पूरे परिसर तक किया जा सकता था। यदि नियमित साफ-सफाई की जाती तो यह समस्या इतनी विकराल रूप लेती ही नहीं और ना पेड़ों को मौत की नींद सुलाने की जरूरत पड़ती। वैसे भी परिसर में भी साफ-सफाई उतनी ही जरूरी है जितनी अस्पताल के भीतर है।

    इस बार लोग इतने खामोश क्यों…?

    अब चलते हैं फ्लैश बैक में…! कुछ साल पहले शहर के नेहरू पार्क में भी इन्हीं कारणों का हवाला देकर वहाँ स्थित पेड़ों को आधा-आधा काट दिया गया था। उस समय पूरा शहर ही गुस्से से उबल पड़ा था। लोगों ने सोशल मीडिया पर जमकर अपना गुस्सा निकाला था और इस कार्य के लिए अधिकारियों को आड़े हाथों लिया था। इतना ही नहीं बल्कि शिकवा-शिकायतों, ज्ञापनों और प्रदर्शनों का लंबा दौर भी चला था। इस बार सरेआम इतने पेड़ काट दिए जाने पर भी शहर में ना किसी को दर्द हुआ, ना किसी की कराह निकली और न ही कहीं से उफ्फ तक सुनाई दी। यह चुप्पी आश्चर्यजनक है…!

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    कत्लेआम के बदले मिलेंगे महज छह हजार रुपये

    अब आपको पेड़ों के इस कत्लेआम के सबसे चौकाने वाले पहलू से अवगत कराते हैं। अस्पताल प्रबंधन ने 6 बड़े पेड़ों को काटकर उनकी लकड़ी ले जाने का ठेका दिया है। इसके बदले अस्पताल प्रबंधन को मात्र 6 हजार रुपये की राशि प्राप्त होगी। सूत्र बताते हैं कि प्रति पेड़ एक हजार रुपये की दर से यह ठेका दिया गया है। इसके बदले जितने पेड़ काटे जा रहे हैं, उतने पेड़ लगवाए जाएंगे। इस निर्णय को लेकर भी सवालिया निशान लग रहे हैं।

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