बैतूल। देश दुनिया और दिखावे से दूर शांत दुनिया, प्रकृति की गोद में जीवन यापन करने वाली जनजाति समाज की वृद्धाओं की आजीविका हाट बाजार ही है। वे पाढर, भैंसदेही, भीमपुर, चिचोली, शाहपुर आदि के सुदूर ग्रामीण अंचलों से अपनी बेल बागुड़ में फैली हुई जैविक देशी लौकी, कुम्हड़ा, तोरई, करेला, कद्दू , बल्लर, बेल, टमाटर के साथ ही ताजी हरी साग- सब्जी लिए हाथों में बटले, बाकड़े पहने आदिम संस्कृति गुदना और निश्छल हंसी लिए सुबह की बस से सदर बाजार आती हैं।
यहाँ वे अपनी वनोपज को बिना व्यापारी के सीधे ग्राहक को विक्रय कर अपनी आजीविका की सामग्री खरीद कर अपने गांव लौटती हैं। खास बात यह है कि जिस समय ये पहाड़ी सब्जियां बाजार में आना बंद होती है, उस समय सब्जियों के दाम आसमान में पहुंच जाते हैं।
नोट: सदर बाजार आए तो अपनी पॉकेट का और मोबाइल का जरूर ध्यान रखें।
(रविवार सदर बाजार बैतूल में घूमते- घूमते: लोकेश वर्मा)