इंदौर के सुप्रसिद्ध भिया राजीव नेमा इंदौरी जी के आह्वान पर 7 जून को विश्व पोहा दिवस मनाया जाता है। इंदौर विश्व की पोहा राजधानी कहलाता है। यह सरल और स्वादिष्ट नाश्ता यहाँ की पहचान बन चुका है। पोहे या इंदौरी भाषा में “पोए” हर इंदौरी का पसंदीदा नाश्ता है। खान पान में नये अविष्कार करना इंदौरियों कि खासियत है। यहां पोहे के अनगिनत प्रकार मिलते हैं। इतने सारे कि पोहा पसन्द न करने वाला भी कहीं न कहीं के पोहे खा ही लेगा।एंड
आंकड़े बताते हैं कि 175 क्विंटल से अधिक पोहे हर सुबह इंदौर में उदरस्थ कर लिए जाते हैं। जिसकी आपूर्ति के लिये आसपास के इलाकों में फैक्ट्रियां स्थापित हैं। इंदौर ही नहीं देश भर में पोहे भेजे जाते हैं यहां से। प्रातः काल पोहे खाना इंदौर में स्नान-ध्यान जितना ही पवित्र कार्य माना जाता है। जिरावन, सेंव, नुक्ती के बिना पोहे खाना अपशकुन माना जाता है। पोहे इन्दौर की रग-रग में समाए हैं। मुझे यकीन है कि एवरेज इंदौरी 33% पोहे से ही बना होता है।
इंदौर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, कहीं भी आप उतरेंगे तो प्रथम दर्शन आपको पोहे के ही होंगे। हर सुबह जगह-जगह पानी के भगोनों से उठती भांप के बीच रखे हुए पोहे के कड़ाह दिख जाएंगे। जिनमें हरी धनिया, नींबू, टमाटर और अनार दानों से सजा पोहे का एक पीला पहाड़ बना होगा। राजबाड़ा की दुकानों पर तो 24 घंटे पोहे मिलते हैं। आपका किसी भी वक्त मन हो पोहे खाने का, इंदौर निराश नहीं करता। कुछ जगहों पर रात्रिकालीन पोहे के स्टॉल भी लगते हैं। जिनसे हमारी मधुर यादें जुड़ी हैं।
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संभव है कि इंदौर में पोहा महाराष्ट्र से आया हो, परंतु इंदौरियों के पोहा प्रेम ने इसे खास बना दिया। यहां इतने पोहे पॉइंट्स हैं कि गिनना मुश्किल है। जैसे राजबाड़ा पर बेडेश्वर के पोहे, पोलो ग्राउंड पर हींग पोहे, मालवा मिल पर सुरेश के पोहे, जेल रोड पर अनंतानंत के पोहे, हेडसाब के उसल पोहे हो या प्रशांत उपहार गृह के सादे सच्चे पोहे, सभी उत्कृष्ट होते हैं।
हर इंदौरी उस्ताद के अपने खास तरीके हैं पोहे खिलाने के। मूल पोहे तो सादे ही होते हैं परंतु कुछ कारीगर हींग के पानी में पोहे बनाते हैं। परोसने के अंदाज भी निराले होते हैं। कोई उसल में देता है, कोई तरी में। यहाँ तक कि दही वाले पोहे भी मिल जाते हैं। ऊपर से कहीं बारिक सेव डालते हैं, कहीं मोटी सेंव, कभी सादी नुक्ती तो कभी चरकी। वैसे सब एक साथ भी डाल सकते हैं, लेकिन जीरावन और कतरे हुए प्याज हर जगह आपको मिलेंगे। जीरावन पोहे का चिर संगी है। पोहे की सादगी में रौनक वही लाता है।
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उबली हुई या तली हुई हरी मिर्च भी पोहे के साथ अक्सर मिल जाती है। कुछ लोग तली हुई मूंगफली भी डालते हैं, जो कि मुझे काफी पसंद है। एक जगह मैंने पनीर उसल पोहे भी खाए थे, जो बेमेल ही सही पर अलग जायका था। महत्वपूर्ण बात ये है कि, पोहे कभी अकेले नहीं खाए जाते। इंदौर वासी समोसे, कचोरी, आलू बड़े, भजिये और जलेबी जरूर खाते हैं इनके साथ। तत्पश्चात चाय पीने से यह अनुष्ठान पूर्ण होता है एवं पुण्यफल की प्राप्ति होती है। गुटका खाने वाले एक आहुति उसकी भी डालते हैं।
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चलिए काफी सारी बातें हो गईं इंदौरी पोहे के बारे में। अब आप फटाफट इंदौर जाइए और एक पूरा दिन इंदौरी पोहे चखने में ही बिताइए। शाम होते-होते, आपको यकीन हो जाएगा कि इंदौर विश्व की पोहा राजधानी क्यों कहलाती है…!
• लोकेश वर्मा, मलकापुर
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