लमटी वाले श्री हनुमान दद्दा: यहां आते ही ठीक हो जाती हर बीमारी, दूर हो जाती बाधाएं

हनुमान जी को भगवान शिव का 11 वां रुद्रावतार व चिरंजीवी माना जाता है। सनातन धर्म में हनुमान ही एक ऐसे भगवान हैं जिनकी पूजा कलयुग में सबसे ज्यादा की जाती है। यही कारण है कि पूरे भारत में हनुमान जी के कई प्राचीन और चमत्कारी मंदिर स्थित हैं।

भारत में शायद ही ऐसा कोई शहर, नगर या कस्बा हो, जहां हनुमान जी का मंदिर मौजूद नहीं हो। श्रीराम भक्त हनुमान को कलियुग का देवता भी कहा गया है। मान्यता है कि हनुमान आज भी धरती पर मौजूद हैं और जहां भी श्री राम कथा का आयोजन होता है, वे वहां पहुंच जाते हैं। यही कारण है कि राम कथा की जगह पर एक स्थान खाली छोड़ा जाता है।

आज हम आपको बैतूल नगर से 40 किलोमीटर दूर एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो बेहद खास है। ऐसा बताया जाता है यहाँ कोई भी भक्त पूरी आस्था और विश्वास के साथ जो मनोकामना रखता है वह पूरी हो जाती है। ये मन्दिर लमटी वाले हनुमान दद्दा के नाम से प्रसिद्ध है।

कभी करते थे शेर-चीते विचरण

सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में घने जंगलों के बीच आध्यात्मिक शांति प्रिय 200 वर्ष पुराना प्राचीन हनुमान दादा का स्थान है। ऐसा बताया जाता है कि पुरातन काल में यहां नीम के पेड़ से टिकी हुई मूर्ति थी। घनघोर जंगल होने से शेर चीते यहां विचरण करते थे।आसपास के ग्रामवासी मंगलवार, शनिवार यहां आते थे। बाद में धीरे-धीरे आस्था बढ़ी, विश्वास बढ़ा और चबूतरे का निर्माण किया गया। फिर सन 1970 में मंदिर का निर्माण हुआ। मूर्ति स्थापना का रहस्य किसी को भी नहीं पता है।

कैसी भी बीमारी हो, सब होती ठीक

लमटी वाले दद्दा की ऐसी कृपा है कि यहां आते ही बाधाएं, बीमारी ठीक हो जाती हैं। यहां के मुख्य पुजारी ने बताया कि कैसा भी भक्त आ जाए लमटी वाले दद्दा की कृपा से ठीक हो कर जाता है। शनिवार, मंगलवार पांच बार आते ही लकवा वाले मरीज यहां से चल के कर वापस लौटते हैं। हनुमान जी की ऐसी शक्ति है कि कैंसर, टीवी जैसी बीमारी से भी यहां रोगी ठीक होकर जाता है। अभी तक दद्दा की कृपा से हजारों लोग ठीक हो कर घर गए हैं।

यहां का भंवरगढ़ किले से है संबंध

मुख्य मंदिर के पीछे नकटी रानी का किला था। वर्तमान में खंडहर हो गया है। सिर्फ एक दीवार खड़ी है। ऐसा बताया जाता है कि इस किले से भंवरगढ़ के किले का संबंध था। दोनों के बीच एक सुरंग थी। जिससे राजा एवं रानी आया-जाया करती थी।

कैसे पहुंचे दद्दा के दरबार

बैतूल-भोपाल मार्ग पर बैतूल नगर से 40 किमी दूरी पर शाहपुर के पास आमढाना से लगा हुआ माचना नदी के किनारे हैं लमटी वाले दद्दा का मंदिर। शाहपुर नगर से मन्दिर जाने के लिए 2 किलोमीटर अंदर कच्चा मार्ग है। यह मार्ग थोड़ा खस्ताहाल है, जिसे प्रशासन ने सुधार करना चाहिए।

  • लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल)
  • उत्तम मालवीय

    मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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