बैतूल। जिले में एक ओर जहां प्रकृति ने भरपूर सौंदर्य बिखेरा है वहीं दूसरी ओर ऐसे भी कई स्थान है जो अपने आप में कोई न कोई विशिष्टता समेटे हुए हैं और उनका यह वैशिष्ट्य ही उन्हें एक अलग पहचान दिलवाता है। अभी तक हम दोस्तों ने जिन स्थानों पर सैर सपाटा किया है उनमें से शाहपुर ब्लॉक के मूढ़ा रेस्ट हाउस ने भी हमारे दिलों दिमाग में एक विशेष छाप छोड़ी है क्योंकि इस रेस्ट हाउस का निर्माण ही एक खास अंदाज में हुआ है।
●यहां देखें मूढ़ा की सुंदरता की और तस्वीरें…
जब भी किसी भवन का निर्माण करना होता है तो इंटीरियर की तैयारी तो आखिर में होती है सबसे पहले रेत, गिट्टी, ईंटा और लोहे की व्यवस्था करना होता है। इनके बगैर कोई भी भवन निर्माण सम्भव नहीं है, लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि मूढ़ा रेस्ट हाउस के निर्माण के लिए इनमें से किसी का भी उपयोग नहीं किया गया है। वन विभाग की भौंरा रेंज में स्थित है मूढ़ा रेस्ट हाउस जो कि शाहपुर और भौंरा दोनों ही स्थानों से करीब 20-21 किलोमीटर दूर है। यह रेस्ट हाउस भी वन विभाग का ही है।
वन विभाग का एम्बेसडर बन गया रेस्ट हाउस
वन विभाग ने इसका निर्माण इस अंदाज में कराया है कि यह रेस्ट हाउस ही विभाग का एम्बेसडर या प्रतीक नजर आता है। दरअसल, इसका निर्माण पूरी तरह से बांस और लकड़ी के सहारे किया गया है। दीवारों से लेकर, पिलर और छत तक सब कुछ वनों से प्राप्त होने वाले बांस व लकड़ियों से बने हैं। खिड़कियों में भी लोहे की जाली की जगह बांस की ही आकर्षक जालियां लगी है जो कि बेहद उम्दा कलाकृति नजर आती है। इसी तरह पूरा फर्नीचर भी बांस व लकड़ी का है।
चारों तरफ बिखरी है हरियाली
रेस्ट हाउस में पदस्थ कर्मचारियों का कहना है कि पूरे रेस्ट हाउस में ऐसी कोई भी सामग्री नहीं लगी है जिसे बाजार से लाना पड़ा हो। इस तरह यहाँ आने वाले हर व्यक्ति के लिए यह एक कौतूहल का विषय बन जाता है। यह तो हुई रेस्ट हाउस की विशिष्टता की बात, अब जरा चर्चा कर लें यहां की कुदरती खूबसूरती की। पहाड़ की बिल्कुल तलहटी में बसा यह स्थान यहां आने वाले हर व्यक्ति का मन मोह लेता है। रेस्ट हाउस के चारों ओर हरियाली बिखरी है।
मूढ़ा का सफर भूल पाना सम्भव नहीं
रेस्ट हाउस से बाहर निकलते ही ऊंचे और हरे-भरे पहाड़ नजर आते हैं। यही नहीं शाहपुर से लेकर भौंरा तक का सफर भी कम मजेदार नहीं है। मार्ग के दोनों ओर पहाड़ियां, हरियाली, ऊंचे-ऊंचे पेड़, घने वन, फसलों से लहलहाते खेत, ग्राम्य जनजीवन की झलक, कल कल बहती नदी और इनके बीच से मूढ़ा तक का सफर कभी भी भूल पाना सम्भव नहीं है।