▪️ उत्तम मालवीय, बैतूल अपडेट
बैतूल जिले की जनपद पंचायत शाहपुर की ग्राम पंचायत पावरझंडा में हुए प्रधानमंत्री आवास घोटाले की जांच में ऐसा कुछ जरूर है जिसे छिपाने का प्रयास किया जा रहा है। इस बात का खुलासा इससे होता है कि जांच से जुड़ी हुई जानकारी सूचना के अधिकार में देने से कन्नी काटी जा रही है।
जानकारी अति विस्तृत होने का बहाना बनाकर जांचकर्ता अधिकारी और जनपद सीईओ जानकारी देेने से स्पष्ट मना कर रहे हैं। यह जानकारी उन्हें ही देने से मना किया जा रहा है जो इस मामले में एक पक्ष है। अब ऐसा क्यों है, इसको लेकर जिला पंचायत सीईओ को चाहिए कि वे जनपद सीईओ से स्पष्टीकरण लें। यह कोई राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला नहीं है जिसकी जानकारी न दी जा सके।
यह बड़ा सवाल है कि जब यह जांच रिपोर्ट एफआईआर के लिए पुलिस को दी ही गई होगी तो फिर मामले से जुड़े पक्ष को क्यों नहीं दी जा सकती। अब ऐसी स्थिति में जांचकर्ता के नजरिए और जांच दोनों पर प्रश्न चिन्ह लगता है। इन हालातों में इस पूरे मामले की फिर से विस्तृत जांच होना जरूरी है क्योंकि इस जांच से डीएससी जारी करने वाले एसीईओ और तत्कालीन प्रभारी जनपद सीईओ एसएन श्रीवास्तव और तत्कालीन सीईओ कंचन डोंगरे की भूमिका स्पष्ट नहीं हो पाइ है। यदि इनकी भूमिका स्पष्ट होती तो इन्हें भी आरोपी बनाया जाता। इसके अलावा आवास प्रभारी को लेकर भी कोई स्पष्ट जानकारी जांच के अंदर नहीं है। जबकि आवास प्रभारी के बगैर न तो स्वीकृति होती है और न भुगतान होता है।
ब्लाक समन्वयक से ज्यादा भूमिका प्रधानमंत्री आवास में आवास प्रभारी की है, लेकिन उसको लेकर भी जांच में कोई स्पष्टता नहीं है। अन्यथा वह भी आरोपी बनता। इसी तरह पंचायत इंस्पेक्टर, एकाउंट अधिकारी की भूमिका को लेकर भी जांच में किसी तरह का कोई सवाल खड़ा न किया जाना भी संदेह को जन्म दे रहा है। ऐसी स्थिति में मामले की फिर से उच्च स्तरीय जांच किया जाना जरूरी है। यदि जांच नहीं होगी तो बहुत सारे रहस्यों पर से पर्दा नहीं उठेगा।
सबसे बड़ी बात यह है कि इतने बड़े घोटाले के वास्तविक आरोपी के भी बच जाने का अंदेशा रहेगा। बेहतर होगा कि जिला पंचायत सीईओ एक जांच दल बनाकर पूरे मामले की फिर से और विस्तृत जांच कराएं जिससे कि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके, अन्यथा पूरा मामला ही संदेहस्पद रहेगा।
इन सवालों का जवाब जरूरी
सवाल एक : क्या कारण है कि जांच से जुड़ी जानकारी देने में जनपद सीईओ आनाकानी कर रही है? आखिर क्या छिपाने का प्रयास किया जा रहा है?
सवाल दो : क्या कारण है कि मामले में आवास प्रभारी की भूमिका को लेकर भी किसी तरह से कोई जांच क्यों नहीं की गई और क्या आवास प्रभारी की कोई भूमिका नहीं है?
सवाल तीन : आरटीआई में जानकारी न देने के पीछे क्या यह मंशा है कि यह बात छिपाई जा सके कि क्यों पीसीओ और एकाउंट आफिसर की जांच नहीं हुई?
सवाल चार : क्या एफआईआर के लिए पुलिस को भी जांच से जुड़े मूल दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए है। यदि नहीं तो इसके बगैर एफआईआर कैसे हुई?
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